क्या है भाषा परिवर्तन और मूल भाषाओं पर इसका प्रभाव?

ध्वनि II - भाषाएँ
06-09-2019 12:13 PM
क्या है भाषा परिवर्तन और मूल भाषाओं पर इसका प्रभाव?

भाषा एक ऐसा माध्यम है जिसके ज़रिए हम अपनी भावनाओं को व्यक्त कर पाते हैं या एक दूसरे से साझा कर पाते हैं। विश्व में कई प्रकार की भाषाएं बोली जाती हैं लेकिन इनमें से भारत का स्थान कुछ खास ही है। क्योंकि यहां केवल मातृभाषा का ही नहीं बल्कि क्षेत्रीय भाषाओं का भी प्रयोग किया जाता है, अर्थात जितने क्षेत्र उतने प्रकार की भाषाएं। किन्तु वर्तमान में इन क्षेत्रीय भाषाओं की लोकप्रियता कम होती जा रही है जिसका प्रमुख कारण है भाषा परिवर्तन।

भाषा परिवर्तन वह घटना या प्रक्रिया है जिसमें किसी क्षेत्र की अधिकतर जनसंख्या अपनी मूल या पुरानी भाषा को छोड़ कर नई भाषा का अनुसरण करने लगती है। यह एक प्रकार की सामाजिक घटना है जिसमें एक भाषा की जगह अन्य कोई दूसरी भाषा ले लेती है। भाषा परिवर्तन मुख्य रूप से समाज की रचना और आकांक्षाओं में अंतर्निहित परिवर्तनों के कारण होता है। नई भाषा का उपयोग किसी अन्य भाषा को बोलने वाले समुदाय के साथ संपर्क में आने के परिणामस्वरूप किया जाता है। इस प्रकार भाषा परिवर्तन से जहां नई भाषा का प्रसार होता है वहीं पुरानी भाषा को नुकसान भी पहुंचता है। यह घटना अक्सर अनियोजित और अस्पष्टीकृत होती है।

भारत की भाषा हिन्दुस्तानी है जिसे हिंदी-उर्दू, हिन्दवी, देहलवी या रेख़्ता भी कहा जाता है। यह एक इंडो-आर्यन (Indo-Aryan) भाषा है जिसका मूल उत्तर भारत की खड़ी बोली से है। मुख्य रूप से यह प्राकृत, संस्कृत, फारसी और अरबी भाषा का संयोजन है। यदि हिंदी और उर्दू के मेल को हिन्दुस्तानी कहा जाए तो यह भाषा दुनिया में तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है जिसका अस्तित्व 13वीं शताब्दी से देखने को मिलता है। एक उभरती हुई आम बोली के रूप में हिन्दुस्तानी भाषा ने बहुत बड़ी मात्रा में फारसी, अरबी और तुर्की शब्दों को खुद में आत्मसात किया और मुगल विजय के रूप में उत्तर भारत के अधिकांश हिस्से में अपने प्रभाव को स्थापित किया। इसका उपयोग लगभग हर समाज द्वारा किया जाता है जिनमें हिन्दू, मुस्लिम आदि समाज शामिल हैं। इसके विकास केंद्रो में दिल्ली, लखनऊ, आगरा और राजपूत दरबार के आमेर और जयपुर को गिना जाता है।

भारत की कई क्षेत्रीय भाषाएं आज तेज़ी से विलुप्त हो रही हैं जिनमें उत्तर भारत की चार प्रमुख भाषाएं जाटू, गुरजरी, अहीरी और ब्रज भाषा शामिल हैं। यहाँ इन भाषाओं के साथ कई लोक सभ्यताएँ जुड़ी हुई हैं किन्तु इन भाषाओं को हिन्दुस्तानी भाषा द्वारा ही प्रतिस्थापित किया गया है जिस कारण इनका प्रयोग वर्तमान समय में बहुत ही कम किया जा रहा है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इनमें से बहुत सी भाषाओं का बहुतायत में प्रयोग किया जाता था किन्तु पीढ़ी दर पीढ़ी भाषा परिवर्तन के कारण इनकी लोकप्रियता कम होती जा रही है। भाषाओं के हनन के कारण इनसे जुड़ी लोक सभ्यताएँ भी विलुप्त होने लगी हैं। मेरठ कॉलेज के एक अध्यापक के अनुसार, “ये भाषाएँ अपने साथ किंवदंतियाँ, पौराणिक कथाएँ, और क्षेत्र सम्बन्धी जानकारी लेकर चलती थीं। इनके माध्यम से किसी क्षेत्र की संस्कृति की ओर तीव्र संकेत प्राप्त होता था। परन्तु इन भाषाओँ की मृत्यु के साथ इनके क्षेत्रों की संस्कृति भी मरती जा रही है”।

यह बात सही है कि हिन्दुस्तानी भाषा हमारे द्वारा समझी जाने वाली एक आम भाषा है और इस कारण हमें इसे निरंतर आगे बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए, किन्तु हमें अपने आस-पास की क्षेत्रीय भाषाओं को भी नहीं भूलना चाहिए क्योंकि एक सुचारू और विकसित सभ्यता के विकास के लिए हमें सभी भाषाओं को एक साथ लेकर चलना होगा।

सन्दर्भ:-
1.
https://bit.ly/2lzkJPQ
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Hindustani_language
3. https://bit.ly/2lEVtru