शिक्षा एक विकसित, सभ्य समाज की महत्वपूर्ण विशेषता है। एक समाज का विकास उसके द्वारा अपनी आने वाली पीढ़ी को प्रदान की गई शिक्षा पर निर्भर करता है ताकि वह न केवल उभरते विश्व में स्वयं को अनुकूल बना सके बल्कि जीवन के विभन्न क्षेत्रो में स्वयं को आगे बढ़ा सके। वर्तमान समय में भारत में शिक्षा सरकारी विद्यालयों और निजी विद्यालयों द्वारा प्रदान की जाती है। साथ ही भारतीय संविधान के विभिन्न लेखों के तहत, एक मौलिक अधिकार के रूप में 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को नि: शुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान की जाती है।
वहीं हाल ही में भारत में प्राथमिक शिक्षा की प्राप्ति दर में काफी हद तक की प्रगति को देखा गया है। वर्तमान में भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली न केवल आकार में, बल्कि प्रस्तुत किए गए पाठ्यक्रमों की विविधता और विभिन्न परिष्कृत विषयों को प्राप्त करने के स्तर में भी विश्व में सबसे उच्च श्रेणी में से है। भारत की बेहतर शिक्षा प्रणाली को अक्सर इसके आर्थिक विकास में मुख्य योगदानकर्ताओं में से एक के रूप में जाना जाता है। उच्च शिक्षा का विकास कृषि, उद्योग, बैंकिंग (Banking) या परिवहन जैसी राष्ट्रीय गतिविधियों जैसे अन्य क्षेत्र की तरह ही घातीय और प्रभावशाली रहा है। साथ ही पिछले एक दशक में उच्च शिक्षा में नामांकन में लगातार वृद्धि को देखा गया है।
भारत की सबसे विकसित शैक्षणिक प्रणालियों में से एक केरल में मौजूद है। वहाँ की उच्च शिक्षा न केवल शैक्षिक अनुसरण और ज्ञान में वृद्धि के लिए, बल्कि राष्ट्रीय विकास के लिए भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अब आप के मन में आवश्य यह प्रश्न उठा होगा कि केरल में उच्च शिक्षा की संरचना समग्र रूप से बाकी के राज्यों से अलग कैसे है? वास्तव में वहाँ की उच्च शिक्षा सभी राज्यों की जैसी ही है, केवल केरल में संस्थानों, छात्रों और शिक्षकों की संख्या के संदर्भ में परिमाणात्मक विस्तार पर अधिक ज़ोर दिया गया है।
परंतु कई शिक्षाविदों द्वारा यह भी देखा गया है कि यद्यपि केरल में उच्च शिक्षण संस्थानों की संख्या में वृद्धि हुई है, लेकिन शिक्षा में परिमाणात्मक विस्तार के साथ ही गुणात्मक गिरावट भी हुई है और मानकों में भी भारी गिरावट आई है। मानकों में गिरावट राज्य में उच्च शिक्षा की व्यवस्था के प्रतिकूल एक आलोचनीय विषय है। केरल की इस स्थिती में सुधार लाने के लिए उच्च शिक्षा में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत और समय-सिद्ध प्रबंधन अवधारणाओं को लागू करना चाहिए। वर्तमान अध्ययन "कुल गुणवत्ता प्रबंधन" जैसे प्रयासों पर प्रकाश डालता है जो देश की वर्तमान उच्च शिक्षा को बेहतर करने में काफी लाभदायक सिद्ध होगा, विशेष रुप से केरल में। उच्च शिक्षा में कुल गुणवत्ता प्रबंधन का अर्थ है पाठ्यक्रमों की गुणवत्ता, निविष्ट अनुदेशात्मक प्रक्रिया, संसाधन प्रबंधन प्रक्रिया और संरचना के साथ-साथ छात्र सहायता सेवा उत्पादन और विश्व कार्य और अन्य संगठनों के साथ संबंध में सुधार लाना।
यह माना जाता है कि उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए सरकार और उच्च शिक्षा अधिकारियों की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
अध्ययन के आधार पर निम्नलिखित अवधारणाएं सामने आती हैं:
• उच्च शिक्षा की गुणवत्ता शिक्षकों की गुणवत्ता पर अत्यधिक निर्भर करती है। शिक्षकों की गुणवत्ता और शिक्षित की गुणवत्ता के बीच एक महत्वपूर्ण संबंध होता है।
• उच्च शिक्षा की गुणवत्ता मुख्य रूप से नैतिक और शैक्षणिक सिद्धांतों की ताकत से आंकी जाती है।
• गुणवत्ता का आश्वासन शिक्षकों पर ही निर्भर नहीं है बल्कि, यह शैक्षणिक संस्थानों के साथ संबंधित शिक्षकों, छात्रों, माता-पिता, प्रबंधन और सरकार, सभी के सहक्रियात्मक संबंध का परिणाम होता है।
• उच्च शिक्षा की गुणवत्ता एक बार निर्धारित करके सदैव के लिए निश्चित करने का प्रयास नहीं है, बल्कि, यह सुधार और परिवर्तन की एक सतत प्रक्रिया है।
• केरल में उच्च शिक्षा के लिए मुद्दे कई हैं: वित्त में कमी; स्वायत्तता की कमी; पुराना पाठ्यक्रम; शिक्षक, मंत्रालयिक कर्मचारियों और प्रबंधन की जवाबदेही की कमी, आदि। ये सभी केरल में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं।
वहीं सबसे प्रमुख कारण भ्रष्टाचार, भारतीय शिक्षा प्रणाली में शिक्षा की गुणवत्ता को नष्ट कर रहा है और समाज के लिए दीर्घकालिक नकारात्मक परिणाम पैदा कर रहा है। भारत में शैक्षिक भ्रष्टाचार को काले धन के प्रमुख योगदानकर्ताओं में से एक माना जाता है।
संदर्भ:-
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Education_in_India
2. https://www.academia.edu/25670512/Education_in_INDIA
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