पुरातत्त्व एक ऐसा विषय है जो मनुष्य के प्राचीन इतिहास को मनुष्य द्वारा प्रयोग में लाई गयी वस्तुओं के आधार पर मापता है। पुरातत्त्व विषय के कारण ही आज वर्तमान काल में यह पता चल पाया है कि हमारे पूर्वज कैसे दिखते थे, वे कैसे औज़ार प्रयोग में लाते थे, वे किस प्रकार से अपना जीवन बसर करते थे, आदि। भारतीय पुरातत्त्व अनेक प्रकार की भिन्नताओं से भरा हुआ है। हाल ही में मेरठ के समीप बसे सिनौली नामक पुरास्थल से कुछ ऐसे साक्ष्य उभर कर सामने आये जो भारत ही नहीं बल्कि पूरे एशिया महाद्वीप के इतिहास को बदल कर रख देने वाले हैं। सिनौली कब्रगाह संस्कृति करीब 1800-2000 ईसा पूर्व की और सिंधु घाटी सभ्यता के समकालीन मानी जा रही। यह कई भारतीय पौराणिक कथाओं को सिद्ध करता है जिनमें विशाल रथों आदि का विवरण है।
पुराणों में वर्णित रथों, सिंहासनों आदि का पहला भौतिक प्रमाण सिनौली गांव में मिला है। यहाँ पर प्राप्त वस्तुओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि यहाँ पर ऐसे और भी कब्र और पुरावशेष दबे हुए होंगे। यहां एक ‘शाही कब्रगाह’ मिली है जिसमें कुल आठ कब्रें मौजूद हैं। प्राप्त कब्रों में तीन कब्रें खाटनुमा ताबूतों में हैं और उनके साथ हथियार, विलासिता का सामान और पशु-पक्षियों के साथ तीन रथ दफनाए हुए मिले हैं। इस तरह का ‘ताबूत’ भी पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के लिए नई खोज है। ‘सिनौली कब्रगाह संस्कृति’ ईसा पूर्व 1800-2000 साल पुरानी (ताम्र-कांस्य युग) और सिंधु घाटी सभ्यता की समकालीन मानी जा रही है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ए.एस.आइ.) के अनुसार यह उत्खनन भारतीय इतिहास के लिए एक नए मोड़ की तरह है। यहाँ पर हुयी खुदाई के बाद यहाँ से कई पुरावशेष मिले, जो भारतीय उपमहाद्वीप में पहली बार मिले हैं और आज से 4000 साल पहले की उन्नत संस्कृति को दर्शाते हैं। अभी तक रथ और शाही कब्रें मात्र मेसोपोटामिया की सभ्यता से ही प्राप्त हुए थे। 2000 ईसा पूर्व के आसपास मेसोपोटामिया और अन्य संस्कृतियों में जिस तरह के रथ युद्ध में इस्तेमाल किए जाते थे और जिस तरह की तलवारें, ढाल और मुकुट थे, उसी काल के आसपास हमारे पास भी वो चीजें थीं, जो तकनीकी रूप से काफी उन्नत थीं और अन्य सभ्यताओं के समकालीन या उससे थोड़ा पहले ही हमारे यहां आ गई थीं। इन कब्रगाहों से पता चलता है कि हमारा शिल्प और जीवनशैली परिष्कृत थी। यहाँ से मिले प्रमाणों से यह पता चलता है कि लकड़ी में तांबा जड़ने की जो निर्माण तकनीक इस्तेमाल की गई है, उसमें कील से ठोकने और उत्कीर्ण कर लगाने दोनों का पद्धतियों का इस्तेमाल किया गया है। रथ को खींचने वाले जीव पर अभी तक पर्दा पड़ा हुआ है परन्तु विभिन्न उत्खननों में 2006 ईसा पूर्व के आसपास घोड़े के कंकाल के अवशेष मिले हैं तो घोड़े की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। सिनौली में मृतक को जलाने और दफनाने दोनों के प्रमाण प्राप्त होते हैं। यह इस बात पर भी ज़ोर देते हैं की अमीर तबके को दफनाया जाता रहा होगा। विभिन्न कब्रों के उत्खनन से बेशकीमती पुरावशेषों, घोड़ों, जानवरों आदि का मिलना यह सिद्ध करता है। सिनौली में इसके पहले इस गांव से 20 किलोमीटर की दूरी पर 2005 में ही उत्खनन शुरू किया गया था जहां से 160 कब्रें मिली थीं। उत्खनन के दौरान आठ दफनाए गए शवों के अवशेष मिले हैं, जिसमें से तीन ताबूत में हैं, तीन द्वितियक यानी हड्डियां इकट्ठा कर दफनाए गए हैं जिसमें से दो एक साथ हैं और शेष दो सांकेतिक रूप से दफन हैं यानी उनकी स्मृति में सामान दफनाए गए हैं। इन कब्रों के साथ जो सामान मिला है उससे इनके ‘शाही कब्रगाह’ होने का अंदाज़ा लगाया जा रहा है और साथ ही इनमें से कुछ के ‘योद्धा’ होने के संकेत मिलते हैं। साथ ही दो ऐसे सामान मिले हैं जो पहले के किसी उत्खनन में भारतीय उपमहाद्वीप में नहीं मिले हैं। पहला, तीन रथ जो लकड़ी के थे लेकिन उनके ऊपर तांबे और कांस्य का काम था। समय के साथ लकड़ी मिट्टी बन गई और तांबा हरा पड़ गया है, लेकिन तांबे की वजह से रथ की रूपरेखा सुरक्षित है। दूसरी महत्त्वपूर्ण खोज है लकड़ी की टांगों वाले तीन खाटनुमा ताबूत। तीन में से दो ताबूतों के ऊपर तांबे के पीपल के पत्ते के आकार की सजावट है। यहाँ पर ताम्र की बनी हुयी तलवारें और खंजर तथा ढाल भी मिले हैं जो कि यह इशारा करता है कि यहाँ पर योद्धा निवास करते थे तथा वे लड़ाई के गुण भी जानते थे।© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.