 
                                            समय - सीमा 276
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                                            मेरठ के कुछ स्थानों पर चीड़ के वृक्षों को देखा जा सकता है। यह हिमालयी उपोष्णकटिबन्धीय पाइन (Pine) वनों की एक प्रजाति है, जो भारत के क्षेत्र में सर्वाधिक मात्रा में पाए जाते हैं। चीड़ के वन मुख्यतः हिमालय की निचली ऊंचाईयों में लगभग 3,000-कि.मी. तक फैले हैं। जिसमें पश्चिम में पाकिस्तान के पंजाब से पाक अधिकृत कश्मीर और उत्तर में भारतीय राज्य जैसे जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, सिक्किम, नेपाल, भूटान इत्यादि क्षेत्र शामिल हैं। हिमालय के अन्य जैव क्षेत्रों के समान ही चीड़ के वन नेपाल में काली गण्डकी बांध से बँटा हुआ है, जिसमें पश्चिमी भाग कुछ सूखा हुआ है और पूर्वी भाग अधिक गीला और सघन है क्योंकि यहाँ पर बंगाल की खाड़ी से आने वाले मानसून के बादल नमी लाते हैं। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन और मानव द्वारा फैलाई गयी अव्यवस्था के कारण कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में इनकी कमी आ रही है।
 
चीड़ हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा और ऊना जिलों के निचले हिस्सों में होते हैं, लेकिन हिमाचल प्रदेश के पूर्वी हिस्सों और उत्तर प्रदेश की पहाड़ियों के निचले इलाकों में, यह शोरिया रोबस्टा (Shorea robusta), एनोगेइसस लैटिफोलिया (Anogeissus latifolia), और कॉर्डिया वेस्टिटा (Cordia vestita) के साथ भी विकसित होते हैं। चीड़ के वन जैव विविधता की दृष्टि से काफी समृद्ध नहीं हैं। यह कुछ स्थानीय पक्षियों, बाघ, तेंदुए, मृगों आदि का घर हैं। इस क्षेत्र में पक्षियों की लगभग 480 प्रजातियां मौजूद हैं। किंतु वनों में आ रही गिरावट के कारण इनके प्राकृतिक निवास को क्षति पहुंच रही है।
वनों में अतिचारण, ईंधन की लकडि़यों की अत्यधिक कटाई, खेती के लिए वनों का कटान बड़ी मात्रा में वनों को हानि पहुंचा रहा है। 1975 के बाद से, निचले क्षेत्रों के वनों के अत्यधिक दोहन के कारण जंगलों में भारी कमी आयी है, जिसके चलते कटाव एक गंभीर समस्या बन गया है। गर्मियों में वनों पर आग लगना सामान्य बात है। कहीं यह आग अत्यधिक गर्मी के कारण स्वतः लग जाती है तो कहीं मानव द्वारा जान बूझकर लगायी जाती है। चीड़ के जंगलों में भी अत्यधिक गर्मी के कारण स्वतः ही आग लग जाती है। बीते कुछ वर्षों में उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश के चीड़ के जंगलों पर लगी आग ने बड़ी मात्रा में इसे हानि पहुंचाई है। उत्तर प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों के देवदार के वृक्ष पिछले तीन दशकों से खराब हो रहे हैं। उत्तर प्रदेश के 34,46,655 हेक्टेयर के जंगलों में से 40,000 हेक्टेयर से अधिक के जंगल आग की चपेट में आ गए जिनमें से अधिकांश चीड़ के थे।
 
उत्तर प्रदेश में मुख्यतः उष्णकटिबंधीय अर्ध सदाबहार (0.21%), उष्णकटिबंधीय नम पर्णपाती (19.68%), उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती (50.66%), उष्णकटिबंधीय काँटीले (4.61%) और तटीय और दलदली वन (2.35%) पाए जाते हैं। उत्तर प्रदेश के वन पर आयी 2011 की रिपोर्ट के अनुसार 305 वर्ग किमी वनों की गिरावट के बाद 16,583 वर्ग किमी क्षेत्र वनाच्छादित रह गया था। उत्तर प्रदेश में, सड़कों, सिंचाई, बिजली, पीने के पानी, खनन उत्पादों आदि की बढ़ती मांगों की पूर्ति हेतु वन भूमि का अतिक्रमण किया जा रहा है, जिसके चलते वनों को भारी हानि पहुंच रही है। वनों पर आयी गिरावट का वन संसाधनों, मृदा और जल संसाधनों और जैव-रासायनिक चक्रों की प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इसके साथ ही ग्रीन हाउस गैसों (Greenhouse Gases) में भी अप्रत्याशित वृद्धि देखने को मिल रही है।
वनों में होने वाली गिरावट को रोकना है तो इसमें सार्वजनिक भागीदारी को बढ़ाना होगा, तथा स्थानीय लोगों को वनों में कमी के कारण होने वाले भावी खतरों के प्रति जागरूक करना होगा। ताकि वे वन संरक्षण हेतु सक्रिय भूमिका अदा कर सकें। लोगों की भागीदारी हेतु इन्हें कुछ विशेष अधिकार और आर्थिक सहयोग देना होगा। वैसे भी वन हमारे उद्योग के समान हैं, जिन पर दीर्घकालिक निवेश की आवश्यकता है।
संदर्भ:
1. https://www.worldwildlife.org/ecoregions/im0301
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Himalayan_subtropical_pine_forests
3. https://bit.ly/31X5JLl
4. https://www.downtoearth.org.in/indepth/forests-of-fire-19957
5. http://www.wealthywaste.com/forest-cover-in-uttar-pradesh-an-overview
6. https://www.zmescience.com/other/did-you-know/different-types-forests/
चित्र सन्दर्भ:-
1.	https://pxhere.com/en/photo/1452213
 
                                         
                                         
                                         
                                        