कल हम भाई बहन के पवित्र रिश्ते को समर्पित त्यौहार रक्षाबंधन को मनाने जा रहे हैं। यह परंपरा सदियों पूर्व से चली आ रही है। इस त्यौहार में प्रमुखतः बहनें अपने भाई के हाथ पर रक्षा सूत्र बांधकर उनके कुशल भविष्य की कामना करती हैं। किंतु इस रक्षा सूत्र को कई पुरूष भी भाई-चारे के नाते एक दूसरे की कलाई पर बांधते हैं। पर्यावरण सुरक्षा की दृष्टि से वृक्षों पर भी रक्षा सूत्र बांधे जाते हैं। रक्षा बंधन कब से प्रारंभ हुआ इसका प्रत्यक्ष इतिहास कहीं भी मौजूद नहीं है। भविष्य पुराण के अनुसार जब देव और दानवों का युद्ध अपने चरम पर पहुंच गया तथा देवताओं की हार लगभग निश्चित हो गयी, तब इन्द्र विचलित होकर बृहस्पति के पास गए। गुरु बृहस्पति ने इन्द्र को श्रावण पूर्णिमा के दिन कलाई पर एक पवित्र धागा बांधने की सलाह दी। इसे इन्द्राणी (इन्द्र की पत्नी) द्वारा बनाया गया था। इस पवित्र धागे की अद्वीतीय शक्ति से इन्द्र युद्ध में विजयी हुए तथा इस श्रावण पूर्णिमा से रक्षा बंधन की शुरूआत हुयी। यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय का प्रतीक माना जाता है।
भविष्य पुराण के उत्तर पर्व के अध्याय 137 में भगवान श्री कृष्ण ने युद्धिष्ठिर को पूर्णिमा के दिन दाहिनी कलाई में रक्षा सूत्र को बांधने की रस्म के विषय में बताया है। जिसके अंतर्गत श्रावण मास में हुए पर्यावरणीय परिवर्तनों का उल्लेख करते हुए श्री कृष्ण कहते हैं कि श्रावण माह में आने वाली पूर्णिमा के दिन ब्राह्मणों और ऋषियों को स्नान कर अपनी क्षमता अनुसार वेदों के अनुरूप देवताओं और पितरों को दान करना चाहिए। उन्होंने कहा कि शूद्रों को भी मंत्रोच्चारण के साथ स्नान करना चाहिए तथा दान करना चाहिए। इस दिन दोपहर (तीन बजे से पूर्व) में एक नए सूती या रेशम के कपड़े में चावल या जौं, सरसों के बीज और लाल गेरू को रखकर एक छोटी सी पोटली या रक्षा सूत्र तैयार करना चाहिए। पुरोहित को इस रक्षा सूत्र को रक्षा की कामना के साथ राजा की कलाई में बांधना चाहिए। राजा की ही तरह ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों और शूद्रों को भी प्रार्थना करने के बाद उनके रक्षा बंधन समारोह का समापन करना चाहिए। स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबन्धन का प्रसंग मिलता है। महाभारत की कथा से हर कोई परिचित हैं। इसमें भी रक्षा सूत्र की पवित्रता का विशेष उल्लेख किया गया है। एक युद्ध के दौरान जब भगवान श्री कृष्ण की उंगली कट गयी, तो द्रौपदी ने श्री कृष्ण के हाथ में अपने वस्त्र का एक टुकड़ा बांधा, जिसके बदले में भगवान श्री कृष्ण ने संकट में उनकी रक्षा करने का वचन दिया। वामनावतार में भगवान विष्णु ने तीन पग में तीनों लोक नापकर राजा बलि का अहंकार समाप्त किया तथा उन्हें रसातल में भेज दिया। राजा बलि ने अपनी अटूट शक्ति से भगवान श्री विष्णु को दिन के चारों पहर अपने साथ रहने के लिए विवश कर दिया। जिस कारण माता लक्ष्मी परेशान हो गयीं, नारद की सलाह पर उन्होंने बालि के हाथ में रक्षा सूत्र बांधकर उन्हें अपना भाई बना दिया तथा विष्णु जी को वापस अपने साथ ले गयीं। आज भी रक्षाबंधन के इस त्यौहार की पवित्रता का महत्व यथावत बना हुआ है।© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.