पारिस्थितिकी तंत्र पृथ्वी की आत्मा के सामान है। यदि पारिस्थितिकी तंत्र को समझना है तो सबसे पहले हमें इसकी परिभाषा को समझने की आवश्यकता है। पारिस्थितिकी तंत्र इस विषय का अध्ययन है कि जीव अपने भौतिक वातावरण और एक दूसरे से कैसे संपर्क एवं तालमेल रखते हैं। पृथ्वी पर जीवों का बंटवारा जैविक अर्थात जीवित जीव और अजैविक अर्थात निर्जीव तत्वों के आधार पर हुआ है। पारिस्थितिकी कई सतहों का अध्ययन करती है जो कि जीव, जनसँख्या, समुदाय, पारिस्थितिकी तंत्र और जीवमंडल आदि पर आधारित है। पारिस्थितिकी तंत्र को समझने के लिए हम अपनी दैनिक दिनचर्या में हो रहे विभिन्न तथ्यों पर नज़र फेर सकते हैं जैसे कि एक बगीचे या जंगल को ही ले लीजिये। वहां पर उपस्थित विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ और जीव और उनका एक दूसरे के साथ सम्बन्ध। यही उपरोक्त कहा गया कथन पारिस्थितिकी तंत्र को समझने का सबसे आसान तरीका है।
पारिस्थितिकी तंत्र पृथ्वी की आत्मा के साथ-साथ श्वास भी है और इसपर यदि कोई भी प्रभाव पड़ता है तो वह हम सीधे तौर पर देख सकते हैं। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो जब से मानव ने अपना बसाव शुरू किया है तब से अनेकों सभ्यताओं ने जन्म लिया है। सभ्यताओं के उदय के साथ ही साथ पारिस्थितिकी तंत्र में भी कई परिवर्तन आये हैं। मानवों का उदय पृथ्वी पर कई समस्याएं लाया है जैसा कि हम जो भी चीज़ें प्रयोग में लाते हैं वो सभी पृथ्वी पर ही उत्पादित या इस पर ही पायी जाती हैं। मानवों के आगमन से ही यहाँ पर उपस्थित जंगलों को खेतों में परिवर्तित कर दिया गया, लम्बी इमारतों का निर्माण हुआ, कारखाने बने और ये सब पृथ्वी के ही गर्भ में पाए जाने वाले तत्वों और खनिजों से बने हैं।
प्राचीन सभ्यताओं की बात की जाए तो मीसो अमेरिका (Mesoamerica) की माया सभ्यता और भारत की सिन्धु सभ्यता, दोनों ही सभ्यताओं पर मौसम और पारिस्थिकी तंत्र में हुए बदलाव से काफी फर्क पड़ा और वे काफी हद तक विलुप्त हो गयीं। माया सभ्यता की बात की जाए तो वो 11वीं शताब्दी में एक लम्बे सूखे के कारण विलुप्त हुयी थी। ऐसा लंबा प्राकृतिक परिवर्तन करीब 2000 वर्षों में नहीं हुआ था। नासा (NASA) के अध्ययन से यह पता चला कि माया सभ्यता के लोग वर्षा जंगल को लम्बे समय तक काटते रहे जिससे वहां की प्रकृति में परिवर्तन हुआ और मौसम में बदलाव आया। जंगल का कटाव बढती आबादी को मद्देनज़र रखते हुए किया गया था। वहीं सिन्धु सभ्यता के दौरान मेघालायन काल की शुरुआत हुयी जब पृथ्वी का तापमान बड़ी तेज़ी से बढ़ा था और इसका परिणाम यह हुआ कि नदियों में जल की कमी हो गयी और सिन्धु सभ्यता के विलोपन की नींव पड़ी। ऐसे ही दुनिया भर में कई अन्य सभ्यताएं भी हैं जो कि पारिस्थितिकी तंत्र में हुए परिवर्तनों के कारण काल के गाल में समा गयीं। ये परिवर्तन मानव द्वारा ही पनपाये गए थे। वर्तमान काल में औद्योगिक क्रान्ति के बाद तकनिकी में आये बड़े परिवर्तन की वजह से जिस प्रकार से मानव पृथ्वी के गर्भ से खनिजों का दोहन कर रहा है और इसपर उपस्थित जंगलों को काट रहा है, इससे पारिस्थितिकी तंत्र पूरी तरह से बदल सकता है, या यूं कहें बदल चुका है। बढ़ती हुयी जनसँख्या और केमिकलों (Chemicals) का नदियों और समुद्रों में जाना भी इस तंत्र के लिए हानिकारक है। आज ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming), ओज़ोन (Ozone) परत में आई दिक्कत आदि इस बात को पूरी तरह सिद्ध कर रही हैं कि पृथ्वी एक बड़े परिवर्तन की ओर अग्रसर है। मानवों की बढ़ती जनसंख्या और शौक ने कई ऐसे जानवरों को भी विलुप्तता पर पंहुचा दिया जिनका इस पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र से अत्यंत ही महत्वपूर्ण जोड़ था।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2Hcmri7
2. https://bit.ly/2yMNlIJ
3. https://bit.ly/2KA21jM
4. https://bit.ly/2rzYDwT
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