जहां पहले कुत्तों का उपयोग केवल घर की रखवाली करने के लिए ही किया जाता था, वहीं वर्तमान समय में इनका उपयोग विभिन्न सैन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भी किया जा रहा है। भारत में भी विभिन्न सेनाओं द्वारा कुत्तों की नस्लों का उपयोग विभिन्न सैन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जा रहा है। किंतु इससे पूर्व इन नस्लों को उचित प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि ये सेनाओं द्वारा विभिन्न कार्यों के लिए इस्तेमाल किए जा सके। भारत में इनके प्रशिक्षण का कार्य रिमाउंट एंड वेटरनरी कोर (Remount and Veterinary Corps-RVC) मेरठ में किया जाता है।
रिमाउंट एंड वेटरनरी कोर भारतीय सेना की एक प्रशासनिक और परिचालन शाखा है और भारतीय सेना की सबसे पुरानी संरचनाओं में से एक है। भारतीय सेना की यह शाखा सेना द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले सभी जानवरों के प्रजनन, पालन और प्रशिक्षण के लिए उत्तरदायी है।
शुरूआती दौर में 1779 में कोर (Corps) को बंगाल में स्टड डिपार्टमेंट (Stud Department) के रूप में उभारा गया था जिसके बाद 14 दिसंबर 1920 को सैन्य वेटरनरी कोर आधिकारिक तौर पर स्थापित किया गया। 1947 में विभाजन के कारण भारतीय और पाकिस्तानी सेनाओं के लिए 2:1 के अनुपात में पशु चिकित्सा और सैन्य फार्म निगमों का विभाजन किया गया। संयुक्त रिमाउंट, पशु चिकित्सा और फार्म कॉर्पोरेशन (Farm corporation) को मई 1960 में स्वतंत्र कोर के रूप में अलग किया गया। पशु कोर ने प्रथम विश्व युद्ध में जानवरों को पशु चिकित्सा प्रदान की। अप्रैल 1985 में, RVC के प्रजनन आधार को 2,700 से 3,973 जानवरों तक विस्तारित किया गया, ताकि पशु उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त हो सके। आरवीसी, सद्भावना परियोजना के तहत जम्मू-कश्मीर और उत्तर-पूर्व भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में पशु चिकित्सा सहायता प्रदान करने में भी शामिल रहा है। आरवीसी ने संयुक्त राष्ट्र के कई अभियानों में भी भारतीय दल के हिस्से के रूप में सहायता प्रदान की।
आरवीसी, वर्तमान में भारत में एकमात्र प्रशिक्षण सुविधा है जो विशेष रूप से सैन्य घोड़ों और कुत्तों को प्रशिक्षित करने के लिए बनायी गयी है। मेरठ छावनी में 200 एकड़ में फैले इस अत्याधुनिक प्रशिक्षण केंद्र में अब तक कुत्तों की केवल दो नस्लों लैब्राडोर (Labrador) और जर्मन शेफर्ड (German shepherd) को ही प्रशिक्षित किया गया है। प्रशिक्षण में दौड़ना, ऊंचाई से कूदना, रस्सी के पुल पर चढ़ना, दीवारों पर चढ़ना, विस्फोटक का पता लगाना आदि शामिल हैं। प्रशिक्षित किये गये इन कुत्तों को किसी भी तरह से विचलित नहीं किया जा सकता। प्रशिक्षण के बाद कुत्तों को देश भर में लड़ाकू कुत्तों के रूप में तैनात किया जाता है तथा सेना द्वारा उन्हें विभिन्न कार्यों जैसे गश्त, ट्रैकिंग (Tracking), हमला, बम का पता लगाना, विस्फोटक का पता लगाना, खोज और बचाव आदि के लिए उपयोग किया जाता है।
लैब्राडोर और जर्मन शेफर्ड के अतिरिक्त अब आरवीसी, प्रशिक्षण में स्वदेशी नस्ल को भी शामिल करने लगी है। यह स्वदेशी नस्ल मुधोल हाउंड (Mudhol Hound) है जोकि कर्नाटक में पाये जाने वाले कुत्तों की एक प्रजाति है। इस नस्ल का अपना एक लंबा और विविध इतिहास है। यह माना जाता है कि इस नस्ल का उपयोग मराठों द्वारा मुगलों और ब्रिटिश सेनाओं के खिलाफ किया गया था। कहा जाता है कि इस नस्ल को मध्य और पश्चिमी एशिया के व्यापारियों और आक्रमणकारियों द्वारा भारत लाया गया था। दक्कन के गाँवों में, मुधोल हाउंड को आमतौर पर कारवां हाउंड के रूप में जाना जाता है। भारतीय सेना अपनी पहली भारतीय कैनाइन (Canine) नस्ल को शामिल करने के लिए पूरी तरह तैयार है जिसके अंतर्गत छह मुधोल हाउंड को जम्मू-कश्मीर में गार्ड ड्यूटी (Guard Duty) के लिए प्रशिक्षित किया गया है। इन कुत्तों को कठोर प्रशिक्षण से गुज़रना पड़ता है ताकि ये सैन्य उद्देश्यों की पूर्ति कर सकें।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2KuFNzH
2. https://bit.ly/2OI0225
3. https://bit.ly/2ZFsbbc
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