इस असीम ब्रह्माण्ड में असंख्य ग्रह-उपग्रह हैं, कुछ पृथ्वी के आकार के कुछ इससे बड़े तो कुछ इससे छोटे। किंतु जीवन मात्र पृथ्वी पर ही संभव है, यदि पृथ्वी के प्रारंभिक चरण की बात की जाए तो यह भी मात्र एक आग, धूल, विरान पहाड़ों का गोला थी। जिसमें जीवन योग्य वातावरण बनने के लिए कई वर्षों का समय लगा। लेकिन पृथ्वी पर जीवन कब से प्रारंभ हुआ यह एक बहुत बड़ा रहस्य है। जिसे जानने के लिए वैज्ञानिक कई वर्षों से प्रयासरत हैं।
यह माना जाता है कि पृथ्वी पर जीवन लगभग 3.5 अरब साल पहले शुरू हो गया था, जिसका प्रमाण पृथ्वी पर मौजूद सबसे प्राचीन चट्टानों से पाए गए जीवाश्मों से मिलता है। यह चट्टानें अत्यंत दुर्लभ हैं क्योंकि भूगर्भिक प्रक्रियाओं के माध्यम से पृथ्वी की आकृतियों में परिवर्तन होता रहा है, जिस कारण पुरानी चट्टानों को नई चट्टानों द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया था। इसके पश्चात भी विश्व के कुछ स्थानों (जैसे अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया) पर इनके अवशेष शेष रह गए हैं, इन चट्टानों से प्राप्त जीवाश्मों से अनुमान लगाया गया है कि जीवन की शुरूआत 3.5 अरब वर्ष पूर्व हो गयी थी। पृथ्वी पर जीवन के सबसे पुरातन साक्ष्य ग्रीनलैंड में स्ट्रोमेटोलाइट्स (stromatolites) नामक साइनोबैक्टीरिया (cyanobacteria) के जीवाश्म से पाए गए हैं। पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के 4.1-अरब-वर्षीय जिक्रोन में उच्च मात्रा में जैविक प्रक्रियाओं में उपयोग होने वाला कार्बन पाया गया है।
इन सभी साक्ष्यों के बाद भी यह अनुमान लगाना कठिन है, कि पृथ्वी में वास्तव में जीवन कब प्रारंभ हुआ था। इसके विषय में अनेक सिद्धान्त दिये जा चुके हैं कुछ कहते हैं कि धूमकेतु या क्षुद्रग्रहों के द्वारा अन्य ग्रहों से जीवन पृथ्वी पर लाया गया। कुछ मानते हैं कि पृथ्वी में जीवन स्वतः ही उभरा। अधिकांश वैज्ञानिक इस तथ्य से सहमत हैं कि जीवन की शुरूआत RNA से हुयी है। RNA, DNA के समान ही होता है तथा आज भी हमारी कोशिकाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
भौतिकी और जीव विज्ञान के माध्यम से पृथ्वी पर जीवन के उद्भव और क्रमिक विकास को जानने का प्रयास किया गया है। ऊष्मप्रवैगिकी के दूसरे नियम के अनुसार ब्रह्माण्ड पूर्ण संयोजन से वियोजन की ओर बढ़ता है। यह एक ऐसे चरण पर पहुंचता है, जहां सभी घटक एक समान हो जाते हैं। इसे उच्चतम एन्ट्रापी (entropy) कहा जाता है, जहां ऊर्जा का स्तर समान हो जाता है। जीवन की शुरूआत भी परमाणुओं के संगठित या एक समान रूप धारण करने के पश्चात ही हुयी। इंग्लैंड के अनुसार जीव एक निश्चित वातावरण में ही उत्पन्न हो सकता है। भौतिकी के अनुसार परमाणु ऊर्जा के अव्यवस्थात्मक प्रवाह का सामना करने के लिए स्वयं को पुनर्व्यवस्थित कर लेते हैं। परमाणु परिस्थिति के अनुरूप स्वयं को ढाल लेते हैं और यही जीव की प्रकृति है।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2YjDd4l
2. https://bit.ly/2ZevIgr
3. https://bit.ly/30WGHLP
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