क्या है लुगदी साहित्य या पत्रिकाएं और कैसे है मेरठ से इनका सम्बन्ध?

मेरठ

 20-07-2019 11:14 AM
ध्वनि 2- भाषायें

जब भी आप ट्रेनों और बसों में सफर करते होंगे तो आपकी नज़र स्टेशनों पर लुगदी पत्रिकाओं के विपणन पर अवश्य गयी होगी जो किसी भी भाषा के लिए पाठक वर्ग तैयार करने का काम करती है। लुगदी साहित्य या लुगदी पत्रिकाएं वे किताबें हैं जो बड़ी मात्रा में काल्पनिक पात्रों और घटनाओं को संदर्भित करती हैं। इनमें लिखी गयी सभी घटनाएं और पात्र काल्पनिक और रोमांचक होते हैं जो पाठकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इनमें लिखा गया लेख बहुत ही रोमांचक और अल्प होता है जिस कारण पाठक इसे कम समय में ही पूरा पढ़ सकता है। इन पत्रिकाओं की गुणवत्ता को बहुत अच्छा नहीं माना जाता है तथा लुगदी कागज़ पर छपने की वजह से इसे लुगदी साहित्य या लुगदी पत्रिका कहा जाता है। इन किताबों की कहानियाँ अपराध, जासूसी, भूत-प्रेत, शिकार आदि से जुड़ी होती हैं। सस्ते दाम, भरपूर मनोरंजन और सरल भाषा के चलते ये किताबें आम पाठकों के बीच हमेशा से ही लोकप्रिय रही हैं। 1990 के दशक में लुगदी उपन्यासों की बिक्री अपने चरम पर थी तथा लोग इन्हें पढ़ने में बहुत अधिक रूचि लेते थे।

मेरठ अपने महान प्रकाशन जगत के लिये जाना जाता है जो लुगदी साहित्य का महत्वपूर्ण केंद्र भी है। मेरठ ने एक समय पर लुगदी साहित्य के प्रकाशकों, लेखकों और कलाकारों को एक मंच प्रदान किया। भारत में लुगदी साहित्य उद्योग का अनुमान 70 करोड़ के करीब है जिसमें से 20-25 करोड़ की भागीदारी मेरठ की है। मेरठ ने लुगदी साहित्य जगत को वेद प्रकाश और सुरेंद्र मोहन पाठक जैसे दिग्गज दिये जिनके जासूसी उपन्यासों को पूरे देश भर में सराहा गया। इनके जासूसी उपन्यासों की लगभग एक लाख से भी अधिक प्रतियां यहां छपाई जाती थी। लेकिन आज परिदृश्य बहुत बदल सा गया है। जो बिक्री लाखों में थी अब घटकर हज़ारों में हो गई है।

पिछले दो दशकों में मनोरंजन के अन्य साधनों जैसे टेलीविज़न (Television), मोबाइल (Mobile), कंप्यूटर (Computer) इत्यादि में अत्यधिक वृद्धि हुई जिसके कारण लोगों ने लुगदी कथाओं को पढ़ने से खुद को दूर किया जो पहले मनोरंजन का सबसे अच्छा साधन हुआ करता था। समय बदलने के साथ-साथ लुगदी कथाओं के लिये प्रतिभाशाली लेखकों में भी कमी आयी। इसके अतिरिक्त लुगदी साहित्यों के लिये तुच्छ लेखन ने भी पाठकों की रुचि को कम किया और खराब लेखन के कारण पाठकों ने इसे पढ़ना बंद कर दिया। इस कड़ी में ग्राफिक (Graphic) कला के विकास और उपयोग ने लुगदी साहित्य उद्योग को बहुत बड़ा झटका दिया। ग्राफिक कला के आगमन से पिछले कुछ वर्षों में हाथ से बनाये गये पेंट कवर डिज़ाइन (Paint Cover Design) बेहद कम हो गए क्योंकि वे अधिक समय लेने वाले होते हैं। इसके अलावा लागत में कटौती करने के लिए कवर कला का पुनर्चक्रण भी किया जाता है। 90 के दशक के शुरुआती दिनों की तुलना में लुगदी उपन्यासों की बिक्री अब घटकर केवल 50% ही रह गई है किंतु फिर भी कुछ छोटे शहरों ने लुगदी पत्रिकाओं के लिए एक बाज़ार अभी भी बनाए रखा है। आज भी छोटे और बड़े शहरों में इन किताबों का बाज़ार क्रमशः 70% और 30% है।

कुछ अच्छी लुगदी पत्रिकाओं में ‘द 65 लाख हाइस्ट’ (The 65 Lakh Heist), ‘द कोलाबा कॉन्सपिरेसी’ (The Colaba Conspiracy), ‘पॉइज़ंड ऐरो’ (Poisoned Arrow), ‘द लाफिंग कॉर्प्स’ (The Laughing Corpse), ‘अनीता: ए ट्रॉफी वाइफ’ (Anita: A Trophy Wife), आदि शामिल हैं जिन्हें पढ़कर आप आज भी मनोरंजित हो सकते हैं।

संदर्भ:
1. https://bit.ly/2SkOWyk
2. https://bit.ly/30yX80I
3. https://bit.ly/2XNyU5Z
4. https://bit.ly/2NVwH3Q

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