संगीत प्रायः हर देश की ज़रूरत बन चुका है। भारत में कोई भी उत्सव या आयोजन ऐसा नहीं है जिसमें संगीत उत्पन्न करने वाले वाद्ययंत्रों का प्रयोग ना होता हो। शादी-बारातों में बजने वाला बैंड (Band) आज हर शादी की ज़रूरत बन गया है जिसके निर्माण कार्य के विकास के लिये मेरठ को विशेष रूप से जाना जाता है।
मेरठ में स्थित जली कोठी विश्व भर में पीतल से बने वाद्ययंत्रों के निर्माण का केंद्र है। यहां अंदर प्रवेश करते ही आप चारों ओर से इन उपकरणों की आवाज़ों को सहज ही सुन सकते है। पीतल से बने इन वाद्ययंत्रों को बनाने की शुरूआत दरसल 1885 में नादिर अली एंड कंपनी (Nadir Ali and Company) ने की जोकि जली कोठी की एक गली में स्थित है। नादिर अली एंड कंपनी भारत के सबसे बड़े और सबसे पुराने, कंपन से बजने वाले वाद्ययंत्रों के निर्माता के रूप में जानी जाती है। इस कंपनी की शुरूआत नादिर अली ने अपने चचेरे भाई इमाम बक्श के साथ की। इसके बाद वे अपने वाद्ययंत्रों का निर्यात यूरोप में भी करने लगे। आज मेरठ स्थित इस छोटे से क्षेत्र में 95% से भी अधिक पीतल से बने वाद्ययंत्रों का निर्माण किया जा रहा है जिनका प्रयोग कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक किया जाता है। पीतल से बने वाद्ययंत्रों के निर्माण के संदर्भ में मेरठ भारत के सबसे बड़े उत्पादकों तथा एशिया के सबसे बड़े निर्यातकों में से एक है। यहां स्थित जली कोठी में 100 से भी अधिक वाद्ययंत्र निर्माता हैं जो विशेष रूप से पीतल बैंड के निर्माण और विपणन के लिये जाने जाते हैं। इन वाद्ययंत्रों में बिगुल, कॉर्नेट (Cornets), यूफोनियम (Euphoniums), ट्यूबा (tubas) आदि शामिल हैं। जली कोठी में बैंड बाजे से सम्बंधित हर काम होता है चाहे वह मरम्मत का हो, निर्माण का हो, या बैंड वालों की पोशाक का।
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https://meerut.prarang.in/posts/867/nadir-ali-company-of-meerut
जहां मेरठ साम्प्रदायिक दंगों से गूंजने वाली आवाजों के लिये जाना जाता है वहीं कुछ आवाजें ऐसी भी हैं जो यहां के गौरव को बढ़ाती हैं और वो आवाजें पीतल से बने इन वाद्ययंत्रों की हैं। किंतु वर्तमान समय में इन उद्योगों को कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। दरसल सस्ते चीनी वाद्ययंत्रों, जो किसी भी प्रकार के वाद्ययंत्र की आवाज़ को बजा देते हैं, ने पीतल से बने इन वाद्ययंत्रों के उद्योगों को बुरी तरह प्रभावित किया है। इसके अतिरिक्त कराधान, उच्च बिजली शुल्क, बिजली कटौती और कच्चे माल की बढ़ती लागत आदि भी ऐसे कारक हैं जो इन वाद्ययंत्रों के निर्माण और विपणन को प्रभावित कर रहे हैं। इन उद्योगों को बढ़ाने में सबसे बड़ी समस्या कुशल यांत्रिकी को ढूंढना है क्योंकि आज की युवा पीढ़ी इस नुकसान से अवगत है और इसलिये वे इन उद्योगों से दूर रहना पसंद कर रही है। यह एक अति विशिष्ट उद्योग है तथा बाज़ार में अन्य उद्योगों के आ जाने से इसकी तरफ कोई अधिक रूझान नहीं दिखा रहा है। किंतु सत्य तो यह है कि यह उद्योग हमेशा जीवित रहेगा क्योंकि जहां समस्याएं हैं वहीं पीतल से बने इन वाद्ययंत्रों की मांग देश में ही नहीं विदेश में भी निरंतर बढ़ती जा रही है।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2Y1yPXI
2. https://bit.ly/2JDD2Nk
3. https://bit.ly/32yrrGE
4. https://bit.ly/2XXrSH7
5. https://meerut.prarang.in/posts/867/nadir-ali-company-of-meerut
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