अद्वैत वेदान्त और नव प्लेटोवाद के मध्य समानता

मेरठ

 16-07-2019 02:22 PM
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

प्राचीन काल को यदि प्रयोगशाला की उपाधि दी जाए तो कदाचित यह कुछ गलत नहीं होगा। भारत की प्राचीन परम्परा और विश्व में अन्य कई परम्पराओं का आदान प्रदान काफी लम्बे समय से होता आ रहा है और यही कारण है कि विश्व भर के कई प्राचीन सिद्धांतों का मेल हम भारतीय सिद्धांतों में देखते हैं। ऐसा ही एक सम्बन्ध हम कश्मीरी शैव मत और नव प्लेटोवाद में देखते हैं। कई दशकों से चल रही शैक्षणिक बहस में हम ग्रीस के नव प्लेटोवाद और अद्वैत सिद्धांत के मध्य कुछ समानताएं पाते हैं। इन बहसों के बाद यह साफ़ हुआ कि परमाद्वैत जो कि कश्मीरी शैवमत भी जाना जाता है, का एक बड़ा भाग नव प्लेटोवाद के सामानांतर है। अब यह बिंदु हमें यह आयाम देता है कि कश्मीरी शैव मत को प्राचीन वैदिक ज्ञान से अलग करके नहीं देखा जा सकता है।

परमाद्वैत के दृष्टिकोण को यदि संक्षेप में देखा जाए तो ये प्रकाश-विमर्ष या उन्मेष-निमेश हैं और नव-प्लेटोवाद भी इसी के समानांतर द्विध्रुवीय ढांचे प्रोहोडोस-एपिस्ट्रोफ़ी (prohodos-epistrophe) पर कार्य करता है। नव प्लेटोवाद और परम अद्वैत के विषय में विभिन्न लेखकों ने अपने मत लिखे हैं जिनमें अभिनवगुप्ता, उत्पलदेव और क्षेमराज हैं और वहीँ नव प्लेटोवाद पर प्लोटीनस और प्रोक्लस के लेख प्रमुख हैं। प्लोटीनस ग्रीस के एक विद्वान और प्राचीन विश्व के दर्शन शास्त्री थे। अपने दर्शन एन्नीड्स (Enneads) में उन्होंने तीन प्रमुख सिद्धांतों को रखा जो हैं- एक, ज्ञान, और आत्मा। प्लोटीनस का जन्म 204/5 इसवी में रोमन साम्राज्य में हुआ था तथा उनकी मृत्यु 270 इसवी में काम्पनिया (रोमन साम्राज्य) में हुई थी। प्लोटीनस के आत्मविषयक या आध्यात्मिक लेखों ने कई धर्मों और साम्राज्यों को प्रभावित किया जैसे कि- पगान, इस्लाम, जेवीस, इसाई आदि। प्लोटीनस ने अपने जीवन के 38वें पायदान पर पहुँचने के बाद फारसी दर्शन और भारतीय दर्शन का अध्ययन करना शुरू किया। यह एक मुख्य कारण है कि उनके लेखों में भारतीय दर्शन और अध्यात्म का एक बड़ा प्रभाव देखने को मिलता है। अद्वैत और नव प्लेटोवाद में भी समानता दिखाई देने का यही कारण है। प्लेटो अध्यात्म की तरफ अग्रसर हुए और अपने अध्ययन में उन्होंने अध्यात्म को भी एक जगह दी। समय के साथ-साथ प्लेटो द्वारा बोये गए उस बीज का एक विकसित रूप नव-प्लेटोवाद में दिखाई देता है जिसका वाहक प्लोटीनस को कहना गलत नहीं होगा। अन्य ग्रीक (यूनानी) नव प्लेटोवाद से सम्बंधित दार्शनिक और विद्वान् प्रोक्लस हैं। प्रोक्लस का जन्म पूर्वी रोमन साम्राज्य में 8 फरवरी सन 412 को हुआ था और उनकी मृत्यु 17 अप्रैल 485 इसवी में हुयी थी। प्रोक्लस को आखिरी के कुछ वृहद् शास्त्रीय दर्शिनिकों में से एक माना जाता है। प्रोक्लस ने नव प्लेटोवाद को पूर्णरूप से विकसित किया।

जैसा कि यह वर्तमान में हुई कई संगोष्ठियों में यह काफी हद तक मान लिया गया है कि नव प्लेटोवाद और अद्वैत सिद्धांत की एक शाखा परमाद्वैत में बहुत समानता है, तो यहाँ पर परमाद्वैत या कश्मीरी शैव मत के दर्शन और उसके कर्णधारों के बारे में अध्ययन करना अत्यंत ज़रूरी हो जाता है। जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि कश्मीरी शैव मत के प्रमुख संत या दार्शनिक अभिनवगुप्ता, उत्पलदेव और क्षेमराज हैं। इन तीनों दार्शनिकों में अभिनवगुप्ता का जन्म 950 में कश्मीर में हुआ था और मृत्यु 1016 में मंगम कश्मीर में हुई थी। इन्होंने अपने जीवन काल में कुल 35 रचनाएं कीं जिनमें सबसे प्रमुख तन्त्रालोक थी जिसमें कुला और त्रिका का दार्शनिक रूप था जिसे वर्तमान में कश्मीरी शैव मत कहा जाता है। उन्होंने प्रकाश-विमर्ष या उन्मेष-निमेश के विषय में अपने दर्शन में लिखा। उत्पलदेव जिनका जन्म 900-950 इसवी में हुआ था, इनको कश्मीर शैव मत के महान शिक्षकों में से एक माना जाता है। उत्पलदेव को प्रत्याभिज्ना जो कि तांत्रिक शैव मत कहा जाता है के धर्मशास्त्रीय दर्शनशास्त्र का ज्ञाता कहा जाता है। उन्होंने इश्वर-प्रत्याभिज्ना-करिकस की रचना की। उत्पल देव के एक विद्यार्थी लक्ष्मनगुप्ता ने अभिनवगुप्ता का मार्गदर्शन किया था। इस कड़ी के अगले दार्शनिक रजनक क्षेमराज हैं जो कि 10वीं शताब्दी के उत्तरार्ध और 11वीं शताब्दी के शुरुवाती दौर में जन्मे थे तथा ये अभिनवगुप्ता के उत्तम विद्यार्थियों में से एक थे। क्षेमराज तंत्र, योग, काव्य और नाटक के एक कुशल शिक्षक थे।

अब दोनों ही विषयों का जब अध्ययन किया जाता है तो यह पता चलता है कि नवप्लेटोवाद और कश्मीरी शैव मत या परमाद्वैत में अभूतपूर्व समानताएं है। दोनों ही दिव्यता के आधार पर कार्य करते हैं और दोनों के दर्शन में दिव्यता का एक प्रमुख स्थान है।

संदर्भ:
1. https://pdfs.semanticscholar.org/247b/aff42ea9e9401a81ba3da49024a50995c53b.pdf
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Plotinus
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Proclus
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Abhinavagupta
5. https://en.wikipedia.org/wiki/Utpaladeva
6. https://en.wikipedia.org/wiki/Kshemaraja
चित्र सन्दर्भ:-
1.
https://www.youtube.com/watch?v=lghgVGqXv5g

RECENT POST

  • अपने युग से कहीं आगे थी विंध्य नवपाषाण संस्कृति
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:28 AM


  • चोपता में देखने को मिलती है प्राकृतिक सुंदरता एवं आध्यात्मिकता का अनोखा समावेश
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:29 AM


  • आइए जानें, क़ुतुब मीनार में पाए जाने वाले विभिन्न भाषाओं के शिलालेखों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:22 AM


  • जानें, बेतवा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित, हमीरपुर शहर के बारे में
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:31 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस के मौके पर दौरा करें, हार्वर्ड विश्वविद्यालय का
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:30 AM


  • जानिए, कौन से जानवर, अपने बच्चों के लिए, बनते हैं बेहतरीन शिक्षक
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, उदासियों के ज़रिए, कैसे फैलाया, गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और सच्चाई का संदेश
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:27 AM


  • जानें कैसे, शहरी व ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के बीच अंतर को पाटने का प्रयास चल रहा है
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:20 AM


  • जानिए क्यों, मेरठ में गन्ने से निकला बगास, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए है अहम
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:22 AM


  • हमारे सौर मंडल में, एक बौने ग्रह के रूप में, प्लूटो का क्या है महत्त्व ?
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:29 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id