न्याय दर्शन में प्रमाण के हैं चार प्रकार

मेरठ

 13-07-2019 12:27 PM
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

तर्कशास्त्र भारत की सबसे महत्वपूर्ण ज्ञान प्रणालियों में से एक है जिसे पढ़ने और सीखने के लिये कई लोग विदेश से भी भारत आते हैं। जैसा कि मनु स्मृति में भी वर्णित किया गया है कि सभी वैदिक ग्रंथों के साथ-साथ प्राचीन द्रष्टाओं की शिक्षाओं की व्याख्या केवल सही और सटीक तर्क के आधार पर ही की जा सकती है और इसे केवल सही तर्क के माध्यम से ही समझा जा सकता है। न्याय दर्शन तर्कशास्त्र की मुख्य धारा है, जो हिंदू धर्म की छह ज्ञानमीमांसाओं में से एक है। भारतीय दर्शन में न्याय दर्शन का सबसे महत्वपूर्ण योगदान है क्योंकि इसके द्वारा तर्कशास्त्र और कार्यप्रणाली का व्यवस्थित विकास सम्भव हो पाया। तर्क और ज्ञान-मीमांसा के अपने विश्लेषण के संदर्भ में भी यह बहुत महत्वपूर्ण है।

न्याय दर्शन में तर्कपूर्ण तरीके से काम करने को संदर्भित किया गया है। प्राचीन न्याय दर्शन के अनुसार न्याय का मुख्य उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना है जबकि नव्य न्यायदर्शन का मुख्य उद्देश्य मनुष्य की उस पीड़ा या दुःख को समाप्त करना है जो वास्तविकता को अनदेखा किये जाने पर उत्पन्न होती है। न्याय प्रणाली के अनुसार सही ज्ञान से ही इस पीड़ा का निवारण सम्भव हो सकता है। अध्यात्मविज्ञान में न्याय प्रणाली को वैशेशिका प्रणाली से भी संबंधित किया गया है। दोनों ही प्रणालियों को 14वीं शताब्दी में संयुक्त किया गया ताकि दोनों को एकीकृत कर तर्कशास्त्र का निर्माण किया जा सके। न्याय दर्शन के प्रवर्तक महर्षि गौतम थे तथा इसका प्रमुख ग्रंथ न्यायसूत्र है।

न्याय दर्शन में मुख्यतः प्रमाणों की चर्चा होती है और इस कारण इसे प्रमाणशास्त्र भी कहते हैं। प्रमाणशास्त्र यथार्थ ज्ञान को संदर्भित करता है अर्थात ‘कोई वस्तु जैसी है उसे वैसा ही समझना’। उदाहरण के लिये अगर किसी रस्सी को रस्सी ही समझा जाये तो वह यथार्थ ज्ञान है। लेकिन अगर रस्सी को सांप समझा जाये तो वह यथार्थ ज्ञान नहीं है। अतः न्याय दर्शन में प्रमाणों का समावेश होता है या यूं कहें कि यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति के साधन ही प्रमाण हैं।

न्यायदर्शन के अनुसार किसी घटना या वस्तु की सही पहचान करने के लिये प्रमाण के चार प्रकार हैं जोकि निम्नलिखित हैं:
प्रत्यक्ष:

प्रमाण की वह विधि जो प्रत्यक्ष रूप से सामने मौजूद हो या आंखों के सामने स्पष्ट, अलग और साक्ष्य हो। दूसरे शब्दों में कहें तो जो यथार्थ ज्ञान प्रत्यक्ष द्वारा प्राप्त हो प्रत्यक्ष प्रमाण कहलाता है। यह धारणा विभिन्न भाव अंगों जैसे दृष्टि, श्रवण, स्पर्श, स्वाद, गंध और मन द्वारा अनुभव की जाती है। उदाहरण के लिये कोई पहाड़ी जल रही है क्योंकि वहां धुंआ दिखाई दे रहा है। या यू कहें कि पहाड़ी में धुंआ दिखाई दे रहा है इसका मतलब वहां आग लगी है।

अनुमान:
प्रमाण की वह विधि जो केवल अनुमान पर आधारित हो अनुमान कहलाती है। अर्थात यदि यथार्थ ज्ञान अनुमानों द्वारा प्राप्त हो तो वह अनुमान प्रमाण है। एक अनुमान को मान्य होने के लिये कुछ अन्य आवश्यकताओं को पूरा करना होता है। इसके अनुसार दो वस्तुओं की उपस्थिति के बीच संबंध होना चाहिए अर्थात सभी परिस्थितियों में जहां एक मौजूद है वहीं दूसरे को भी उपस्थित होना चाहिए। उदाहरण के लिये अगर कहीं धुंआ है तो वहां आग भी होनी चाहिए या अगर कहीं आग है तो वहां धुंआ भी होना चाहिए।

उपमान:
प्रमाण की वह विधि जिसमें यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति तुलना के माध्यम से हो या वह प्रमाण जो किसी नाम और वस्तु के बीच संबंध स्थापित करने से प्राप्त हो उपमान प्रमाण कहलाता है। उदाहरण के लिये एक आदमी को बताया जाता है कि एक निश्चित विवरण वाला जानवर एक गाय है। जब वह पहली बार किसी ऐसे जानवर को देखता है, जो विशेष रूप से उस विवरण पर उचित बैठे तो वह तुलना करके निष्कर्ष निकालता है कि जो जानवर उसे दिखाई दे रहा है वह एक गाय है।

आप्तवाक्य या शब्द:
 किसी वस्तु की पहचान स्थापित करने का चौथा तरीका है गवाही। अर्थात् कथित और अप्रमाणित वस्तुओं का ज्ञान जो आधिकारिक स्रोतों के बयान जैसे वेद या संतों और ऋषियों के कथनों से व्युत्पन्न होता है। ज्ञान के इस स्रोत की पश्चिमी विद्वानों द्वारा बहुत आलोचना की गई क्योंकि उनके अनुसार वेदों के अधिकार की पूरी स्वीकृति उचित तर्क के विकास में एक सीमित कारक और बाधा है।

किंतु यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि भारतीयों के लिए उनके सिद्धांत और दर्शन केवल अकादमिक हित के लिये ही नहीं थे, वे वास्तव में उन विचारधाराओं को जीते थे और उन्हें अपने व्यावहारिक विज्ञान में लागू करते थे।

संदर्भ:
1.http://www.yogagurukula.in/philosophy.html
2.https://en.wikipedia.org/wiki/Nyaya
3.https://en.wikipedia.org/wiki/Pratyaksha

RECENT POST

  • आइए देखें, अपने अस्तित्व को बचाए रखने की अनूठी कहानी, 'लाइफ़ ऑफ़ पाई' को
    द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य

     24-11-2024 09:17 AM


  • आर्थिक व ऐतिहासिक तौर पर, खास है, पुणे की खड़की छावनी
    उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक

     23-11-2024 09:26 AM


  • आइए जानें, देवउठनी एकादशी के अवसर पर, दिल्ली में 50000 शादियां क्यों हुईं
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     22-11-2024 09:23 AM


  • अपने युग से कहीं आगे थी विंध्य नवपाषाण संस्कृति
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:28 AM


  • चोपता में देखने को मिलती है प्राकृतिक सुंदरता एवं आध्यात्मिकता का अनोखा समावेश
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:29 AM


  • आइए जानें, क़ुतुब मीनार में पाए जाने वाले विभिन्न भाषाओं के शिलालेखों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:22 AM


  • जानें, बेतवा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित, हमीरपुर शहर के बारे में
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:31 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस के मौके पर दौरा करें, हार्वर्ड विश्वविद्यालय का
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:30 AM


  • जानिए, कौन से जानवर, अपने बच्चों के लिए, बनते हैं बेहतरीन शिक्षक
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, उदासियों के ज़रिए, कैसे फैलाया, गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और सच्चाई का संदेश
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:27 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id