राग भैरवी को अक्सर 'रागों की रानी' के रूप में वर्णित किया जाता है। यह राग विनाश की हिंदू देवी से अपना नाम लेता है, और बहुमुखी मनोदशा को जोड़ता है। कुछ के लिए यह 'भय, आतंक और अराजकता' पैदा कर सकता है वहीँ दूसरों के लिए 'प्यार और धर्मपरायणता का सुखद माहौल'। इसे सूर्योदय पर या वैकल्पिक रूप से एक संगीत कार्यक्रम में अंतिम टुकड़े के रूप में बजाया जाता है।
यह भैरवी थाट का आश्रय राग है। हालांकि इस राग का गाने का समय प्रातःकाल है पर इस राग को गाकर महफिल समाप्त करने की परंपरा प्रचार में है। आजकल इस राग में बारह स्वरों का स्वतंत्र रूप से प्रयोग करने का चलन बढ़ गया है जिसमें कलाकार कई रागों के अंगों का प्रदर्शन करते हैं। यह राग भाव-अभिव्यक्ति के लिए बहुत अनुकूल तथा प्रभावकारी है। इसके पूर्वांग में करुण तथा शोक रस की अनुभूति होती है। और जैसे ही पूर्वार्ध और उत्तरार्ध का मिलाप होता है तो इस राग की वृत्ति उल्हसित हो जाती है।
ऐसा कौन संगीत मर्मज्ञ अथवा संगीत रसिक होगा जिसने राग भैरवी का नाम ना सुना हो या इसके स्वरों को ना सुना हो। इस राग के इतने लचीले, भावपूर्ण तथा रसग्राही स्वर हैं की श्रोतागण मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। इस राग का विस्तार मध्य तथा तार सप्तक में किया जाता है। इस राग में जब शुद्ध रिषभ का प्रयोग किया जाता है तो इसे सिंधु-भैरवी कहा जाता है।
इस राग की प्रकृति चंचल है अतः इसमें ख्याल नही गाये जाते। इसमें भक्ति तथा श्रृंगार रस की अनुभूति भरपूर होती है अतः इसमें भजन, ठुमरी, टप्पा, ग़ज़ल, आदि प्रकार गाये जाते हैं।
इस रविवार प्रारंग आपके लिए लेकर आया है, दरबार फेस्टिवल (DarbarFestiwal) यूटयूब चैनल द्वारा प्रदर्शित चलचित्र जिसमे डॉ प्रभा अत्रे द्वारा राग भैरवी का गायन प्रस्तुति द्रिश्यन्वित है।
सन्दर्भ:-
1. http://www.tanarang.com/hindi/bhairavi_hindi.htm
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