भारत में VOC (डच ईस्‍ट इंडिया कंपनी)

मेरठ

 28-06-2019 01:23 PM
उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक

औपनिवेशिक भारत का अपना एक इतिहास है, जहां लगभग तीन शतक से भी लम्‍बे समय तक यूरोपीय उपनिवेशों ने व्‍यापार तथा शासन किया, जिसमें पुर्तगाली, फ्रांसीसी, ब्रिटिश, डेनिश, तुर्की और डच शामिल थे। पुर्तगालियों के बाद डच भारत आए, नीदरलैण्‍ड के निवासी मुख्‍यतः डच कहलाते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में डचों की उपस्थिति 1605 से 1825 तक रही। 1605 ई में डचों ने आंध्र प्रदेश के मसूलीपटनम में अपनी पहली फैक्ट्री (Factory) स्थापित की। बाद में उन्होंने भारत के अन्य भागों में भी अपने व्यापारिक केंद्र स्थापित किये। डच व्‍यापारियों ने काली मिर्च और मसालों के व्यापार पर एकाधिकार स्थापित कर आर्थिक दृष्टि से अत्यधिक लाभ कमाया। कपास, अफीम, नील, रेशम और चावल वे प्रमुख भारतीय वस्तुएं हैं जिनका व्यापार डचों द्वारा किया जाता था।

डच सूरत और डच बंगाल की स्थापना क्रमशः 1616 और 1627 में की गयी थी। डचों ने 1656 ई में पुर्तगालियों से सीलोन जीत लिया और 1671 ई में पुर्तगालियों के मालाबार तट पर स्थित किलों पर भी कब्ज़ा कर लिया। 1741 ई. में कोलाचेल के युद्ध में डच-अंग्रेज संघर्ष के मध्य त्रावणकोर के राजा मार्तंड वर्मा द्वारा डच ईस्ट इंडिया कंपनी को हराया गया, इसके साथ ही मालाबार क्षेत्र में डच शक्ति का पूर्णतः पतन हो गया।

1814 ई की एंग्लो-डच संधि के अंतर्गत डच कोरोमंडल और डच बंगाल एक बार फिर से डच उपनिवेशों के अधीन आ गए थे, लेकिन 1824 ई में हस्ताक्षरित एंग्लो-डच संधि के प्रावधानों के तहत यह पुनः ब्रिटिश शासन के अधीन आ गए क्योंकि इसमें डचों के लिये 1 मार्च 1825 ई तक सारी संपत्ति और क्षेत्रों को ब्रिटिशों को हस्तांतरित करना बाध्यकारी बना दिया गया। 1825 ई के मध्य तक डच भारत में अपने सभी व्यापारिक क्षेत्रों से वंचित हो चुके थे। एक समझौते के तहत ब्रिटिशों ने आपसी फेर-बदल के तरीके के आधार पर खुद को इंडोनेशिया के साथ व्यापार से अलग कर लिया और बदले में डचों ने भारत के साथ अपना व्यापार बंद कर दिया। क्यू लेटर्स ने सभी डच उपनिवेशों को अंग्रेजों के अधीन कर दिया, ताकि उन्हें फ्रांसीसियों द्वारा अधिग्रहित न किया जा सके।

डचों ने भारत में रहने के दौरान सिक्कों की ढलाई का भी कारोबार किया। जैसे-जैसे उनके व्यापार में वृद्धि होती गयी उन्होंने कोचीन, मसूलीपटनम, नागापटनम, पोंडिचेरी और पुलीकट में टकसालों की स्थापना की। डचों द्वारा जारी किये गए सभी सिक्के स्थानीय सिक्का ढलाई के नमूनों पर आधारित थे।

पूर्व के साथ व्यापार में ब्रिटिश शक्ति के उदय ने डचों के व्यापारिक हितों के प्रति एक चुनौती प्रस्तुत की जिसके परिणामस्वरूप दोनों के मध्य संघर्ष हुए। जिसमें ब्रिटिशों की विजय हुयी, क्योंकि उनके पास पर्याप्‍त संसाधन थे। ब्रिटिशों द्वारा एक के बाद एक लगभग सभी डच क्षेत्रों को अपने कब्जे में ले लिया गया। देखते ही देखते डच उपनिवेशों का पतन हो गया।

सांस्कृतिक मानवविज्ञानी, डॉ. बॉक वैन डर पोल, जिन्‍होंने कई वर्षों तक डचों की विरासत पर शोध किया था और “VOC in India” नाम की एक पुस्‍तक प्रकाशित की, कहते हैं भारत में कोच्चि डचों का प्रमुख केंद्र था। डच अपनी विरासतों जैसे सड़कों और घरों का नाम मुख्‍यतः वर्षा वाले पेड़ों के नाम पर रखते थे। यह पौधों और वनस्‍पतियों में विशेष रूचि रखते थे। डचों ने पुर्तगालियों से जो किला लिया वह वास्‍तव में बहुत बड़ा था, जिसे इन्‍होंने विभाजित किया। इन्‍होंने सात दुर्गों की किलेबंदी की। जिनमें से कुछ आज ध्‍वस्‍त हो गए हैं तथा कुछ शेष हैं। डचों और पुर्तगालियों के मध्‍य अंतर को समझने के लिए कैथोलिक धर्म और प्रोटेस्टेंटवाद के इतिहास को समझना सबसे बेहतर विकल्‍प है। डचों द्वारा बनवाए गए गिरजाघरों में किसी भी प्रकार के कोई चित्र नहीं हैं। कोच्चि के किलों में बने घरों के बरामदे में डच वास्‍तुकला स्‍पष्‍ट झलकती है। कोच्चि में डचों का कब्रिस्‍तान भारत में अन्‍य डच उपनिवेशों के कब्रिस्‍तान की तुलना में अधिक शांत और सुदंर है। 1970 में श्रीमती वैन स्पाल की मृत्यु के साथ, कोच्चि किले में डच विरासत समाप्त हो गई।

भारत के आज भी नीदरलैण्‍ड के साथ मधुर संबंध हैं। पिछले वर्ष (2018) नीदरलैण्‍ड की रानी मैक्सिमा, अपनी चार दिवसीय भारत यात्रा पर आईं। भारत में तैनात नीदरलैंड दूतावास के अधिकारियों के साथ, कड़ी सुरक्षा के बीच उन्‍होंने मेरठ का दौरा भी किया। मेरठ में क्रिकेट की गेंद बनाने वाले कारखाने में इनका ज़ोर शोर से स्‍वागत किया गया। भारत आने का इनका मुख्‍य उद्देश्‍य दोनों के मध्‍य आर्थिक और व्‍यापारिक संबंधों को मज़बूत बनाना था।

संदर्भ:
1. http://www.millenniumpost.in/nation/queen-maxima-mesmerises-meerut-villagers-301886
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Dutch_India
3. https://www.thehindu.com/features/metroplus/digging-up-dutch-legacy/article2388796.ece
4. https://rangandatta.wordpress.com/2014/02/12/its-all-dutch-with-bauke-van-der-pol/
5. https://dutchindianheritage.net/voc-in-india-bibliography/
6. https://bit.ly/2ZTvbQQ
7. http://hubert-herald.nl/INHOUD.htm
चित्र सन्दर्भ:
1. https://www.youtube.com/watch?v=2ktE-gHwCqg
2. इस लेख में प्रयुक्त मुख्य चित्र में डच ईस्ट इंडिया कंपनी का आगमन चित्रण है।
3. इस लेख में प्रयुक्त द्वितीय चित्र में भारत में डच किले को दिखाया गया है।
4. तृतीय चित्र में डच ईस्ट इंडिया कंपनी का ध्वज चित्रित है।
5. इस लेख के अंतिम चित्र में डच गवर्नमेंट हाउस (Dutch Government House) दिखाया गया है जो कोच्ची (केरल) में है।

RECENT POST

  • अपने युग से कहीं आगे थी विंध्य नवपाषाण संस्कृति
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:28 AM


  • चोपता में देखने को मिलती है प्राकृतिक सुंदरता एवं आध्यात्मिकता का अनोखा समावेश
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:29 AM


  • आइए जानें, क़ुतुब मीनार में पाए जाने वाले विभिन्न भाषाओं के शिलालेखों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:22 AM


  • जानें, बेतवा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित, हमीरपुर शहर के बारे में
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:31 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस के मौके पर दौरा करें, हार्वर्ड विश्वविद्यालय का
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:30 AM


  • जानिए, कौन से जानवर, अपने बच्चों के लिए, बनते हैं बेहतरीन शिक्षक
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, उदासियों के ज़रिए, कैसे फैलाया, गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और सच्चाई का संदेश
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:27 AM


  • जानें कैसे, शहरी व ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के बीच अंतर को पाटने का प्रयास चल रहा है
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:20 AM


  • जानिए क्यों, मेरठ में गन्ने से निकला बगास, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए है अहम
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:22 AM


  • हमारे सौर मंडल में, एक बौने ग्रह के रूप में, प्लूटो का क्या है महत्त्व ?
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:29 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id