ठोस कचरा प्रबंधन मेरठ शहर में बनिया पारा, केसरगंज, आदि जैसे क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के सामने प्रमुख मुद्दा बना हुआ है। खाली ज़मीनों को डंपिंग ग्राउंड (Dumping ground) के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है और वे एक बार उपयोग होने वाले प्लास्टिक (Plastic) और अन्य खतरनाक कचरे से भरे हुए हैं।
स्वच्छता के संदर्भ में यहाँ मल तंत्र नहीं है। यह कचरा हमारी सड़कों को दूषित करता है। कुछ साल पहले तक नाली में पानी बेहता था, अब यह सभी प्रकार के मल-मूत्र से भरा हुआ है और बीमारी के लिए एक स्रोत बना हुआ है। कई लोगों ने समस्या का हल खोजने के लिए नगर निगम को लिखा है, लेकिन उन्होंने नाले पर एक सीमा बनाने के अलावा कुछ नहीं किया है।
कचरे के इन ढेरों से निकलने वाली दुर्गंध लोगों को शहरों में प्रवेश करते ही नमस्कार करती है। इन शहरों में लाखों टन कचरा और ई-कचरा (e-waste) डंप किया जा रहा है, जो कई बीमारियों का प्रजनन मैदान बनके न केवल शहरवासियों बल्कि आसपास रहने वाले ग्रामीणों को भी प्रभावित कर रहा है।
समस्या के स्तर का अंदाजा कुछ उदाहरणों से लगाया जा सकता है। आगरा में प्रतिदिन 900 मीट्रिक टन ठोस कचरा उत्पन्न होता है। पिछले पांच वर्षों में, लगभग 1.30 करोड़ मीट्रिक टन कचरा 75 एकड़ कुबेरपुर डंपिंग स्थल पर छोड़ दिया गया है, जो ताजमहल से सिर्फ 8 किमी दूर है। इसी तरह मेरठ, प्रतिदिन, 1,000 टन ठोस अपशिष्ट का उत्पादन करता है, जिसे शहर की सीमा के बाहर तीन जगहों पर ढेर किया जाता है, जिससे आस-पास के ग्रामीणों के लिए जीवन मुश्किल हो जाता है। इलाके में कचरे के ढेरों को लेकर हाल ही में कई हिंसक विरोध प्रदर्शन भी हुए हैं।
खराब स्वच्छता प्रबंधन के साथ कुछ और कारणों से यह मुद्दा बढ़ गया है। मेरठ गाजियाबाद को प्रतिदिन 200 टन कचरा डंप करने की अनुमति देता है। एनजीटी समिति के आदेश पर गाज़ियाबाद मैनेजमेंट कमीटी (Ghaziabad Management Committee - GMC) प्रताप विहार लैंडफिल (Landfill) में मल ढेर न करने पर मजबूर हो गई थी। इसी वजह से गाजियाबाद में ठोस मल प्रबंधन संकट में पड़ गया था।
किसी भी ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नीति के अभाव में, यह समस्या हर रोज़ तेज़ी से बढ़ेगी। इसे कम करने के लिए उपलब्ध तकनीकों में से कुछ इस प्रकार हैं:
1. जमा-वापसी योजना- यह उपभोक्ता को बोतल वापस करने के लिए प्रेरित करती है या जिसके लिए उसे मुआवज़ा दिया जाता है, और यह उत्पाद के जीवन चक्र को बढ़ाते हुए लैंडफिल पर दबाव कम करता है।
2. जापान (Japan) का कामिकात्सु- निवासियों ने अपने कचरे को 34 श्रेणियों में अलग कर दिया। इस क्षेत्र में 80% कचरे का पुनर्चक्रण किया जाता है, जबकि केवल 20% ही भूमि में जाता है।
3. स्वीडन (Sweden) में अपशिष्ट-से-ऊर्जा- घर और व्यवसाय के मालिक कचरे को खतरनाक कचरे और रिसाइकिल (Recycle) करने योग्य सामग्री में फ़िल्टर (Filter) करते हैं और अलग कर देते हैं, जो बाद में विभिन्न अपशिष्ट-प्रबंधन प्रणालियों, जैसे कि भस्मक और पुनर्चक्रण, और लैंडफिल के लिए थोड़ी मात्रा में भेजे जाते हैं।
4. भारत में, पणजी में, पूरा शहर न्यूनतम 6 अंशों में कचरे को अलग करता है। पुनर्चक्रण के लिए सूखे कचरे को आगे 18-20 अंशों में अलग किया जाता है, जैविक कचरे को कंपोस्ट (compost) किया जाता है।
5. विजयवाड़ा नगर निगम ने विकेंद्रीकृत वर्मीकम्पोस्टिंग (Vermicomposting) सुविधाओं के माध्यम से जैविक कचरे के सरल और प्रभावी प्रबंधन को प्रदर्शित किया है।
वर्तमान में, मेरठ में, प्रशासन ने उन सभी सार्वजनिक सुविधाओं के लिए खाद बनाना अनिवार्य कर दिया है जो दैनिक आधार पर 100 किलो या उससे अधिक कचरा पैदा करती हैं। 100 किलो के मानदंड के अलावा, यहां तक कि आरडब्ल्यूए (रेज़िडेंट वेलफेयर एसोसिएशन / Resident Welfare Association) जैसे संस्थान जहां 500 से अधिक परिवार निवास करते हैं, या 10 से अधिक कमरे वाले होटल (Hotel), या 50 से अधिक बिस्तर वाले अस्पताल, या 5,000 वर्ग फुट से अधिक परिसर वाले या 500 से अधिक छात्रों वाले बड़े विद्यालय आदि को भी अपने कचरे का कम्पोस्ट के रूप में प्रबंधन करना होगा।
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