एक नए सदस्य का किसी घर में आना एक हर्षोल्लास की बात होती है परन्तु यह हर्ष सभी के लिए नहीं होता। और यह कथन कहने का सार यही है कि यदि होता तो आज अनाथालयों में करीब 3 करोड़ से भी अधिक नवजात व मासूम न रह रहे होते। भारत आज दुनिया के उन शीर्ष देशों मे से आता है जहाँ पर अनाथालयों में बच्चों की संख्या बड़ी तेज़ी से बढ़ रही है। अनाथ बच्चों में सबसे ज्यादा संख्या बच्चियों की है, लड़कों की संख्या इनमें काफी कम है। भारत में अनाथ बच्चों में 3 प्रमुख प्रकार के बच्चे पाए जाते हैं 1- जिनके माँ बाप होते हैं पर पालने में सक्षम नहीं हैं, 2- ऐसे बच्चे जो कि समाज द्वारा अपनाए ना जा सकने योग्य थे और 3- जिनके माँ-बाप अब इस दुनिया में नहीं हैं।
भारत में महिलाओं की स्थिति सोचनीय है और जब लैंगिक आंकड़े पर हम नज़र डालते हैं तो यह अंदाज़ा लगता है कि भारतीय समाज के ढाँचे में किस प्रकार से महिलाओं को एक सीमित स्थान मिला है। लड़कियों की अपेक्षा लड़कों को यहाँ के समाज में अधिक दर्जा प्राप्त है और यही कारण है कि भारत में गर्भपात कराना एक व्यापार बन चुका है। कहीं पर ऐसा भी होता है कि जब लड़की पैदा हो भी जाती है तो लोग उसको अनाथालयों में छोड़ आते हैं और यह एक बड़ा कारण है कि भारत के अनाथालयों में अनाथ लड़कियों की संख्या ज्यादा है। अगर राष्ट्रीय अपराध विभाग की रिपोर्ट को देखा जाए तो 2007-11 के दरमियान कुल 3,500 बच्चे जो कि 12 वर्ष से कम थे, को उनके माँ बाप ने छोड़ दिया। वहीं करीब 1,000 लोगों पर कार्यवाही की गयी जिन्होंने बच्चा पैदा होने से पहले ही या बाद में उसका क़त्ल किया या करने की कोशिश की। राष्ट्रीय स्तर पर देखा जाए तो राष्ट्रीय अपराध विभाग की रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान में सबसे ज्यादा बच्चे अपने परिवार द्वारा छोड़ दिए जाते हैं। लड़कियों को छोड़ने में गुजरात की स्थिति सबसे भयावह है और यह भारत में सबसे ज्यादा है।
हाल ही में रामपुर से एक ऐसी खबर आई जिसने सबको यह साफ़ कर दिया कि लैंगिक असमानता एक अत्यंत महत्वपूर्ण बिंदु हैं जो कि अनाथालयों को और भी ज्यादा घनत्व वाला बना रहा है। रामपुर के समीप मिलक की एक घटना ने मानसिकता और मानवता दोनों को प्रदर्शित किया जहाँ पर एक बच्ची का जन्म मात्र 6.5 महीने में ही हो गया। बच्ची एक असाध्य रोग से पीड़ित थी। जन्म के समय उसको बढ़ा हुआ भग-शीश्न था जिसकी वजह से घर वालों को लगा कि वह बच्ची लड़की नहीं लड़का है अतः लोगों ने उसको निजी अस्पताल में भरती कराया परन्तु जब वहां पर पता चला कि नवजात बच्चा नहीं बच्ची है तो उसके परिवार ने उसे अपनाने से मना कर दिया और अस्पताल पर बच्चा बदलने का इलज़ाम लगा दिया, जिसके बाद उस बच्ची की देखभाल बाल कल्याण समिति के पास चली गयी। रामपुर बरेली में ऐसे कई अनाथालय हैं जहाँ पर इस स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। जिस प्रकार से बच्चों के अनाथालयों में छोड़ने की दर है उस स्तर पर बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया अत्यंत कम है। हाल में हुए एक अध्ययन से यह पता चला है कि लोग बच्चे गोद लेने में अधिकतर हिचकिचाते हैं और यदि लेते भी हैं तो ज्यादातर लोगों की पसंद 5 साल से कम के बच्चे होते हैं। रामपुर में भी एक अनाथालय है जहाँ से व्यक्ति बच्चा गोद ले सकता है, रामपुर के अनाथालय का पता निम्नवत है-
राजकीय बाल गृह रामपुर,
मोहल्ला अंगूरी बाग, पुलिस चौकी के पास जुल्फिकार इंटर कॉलेज गंज, रामपुर
संपर्क: राकेश कुमार सक्सेना
फ़ोन नम्बर- 05957518024117, 7518024117
इमेल :- rbg.rampur@gmail.com
संदर्भ:
1. https://www.soschildrensvillages.ca/girl-child-endangered-child-abandonment-india
2. https://bit.ly/2N8HyqD
3. https://bit.ly/2KAti8l
4. https://bit.ly/31V4gpK
5. http://childadoption.in/uttar-pradesh-child-adoption/
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