प्रत्येक कलाकार के कुछ विशेष उपकरण होते हैं, जिसके बिना उसकी कला अधूरी होती है, जैसे संगीतकार की वाद्य यंत्र बिना, लेखक की कलम के बिना, फोटोग्राफर (Photographer) की कैमरे (Camera) के बिना और चित्रकार की पेंसिल (Pencil), रंग, ब्रश (Brush) इत्यादि के बिना। एक चित्रकार पेंसिल, रंग, ब्रश के माध्यम से अनगिनत अनोखी कहानियों को अपनी तस्वीर में उकेर देता है। ब्रश एक ऐसा साधन है जो कृत्रिम और प्राकृतिक संसाधनों से तैयार किया जाता है। मेरठ के निकट बिजनौर से 55 किमी दूर स्थित अफगान शासक शेर शाह सूरी (1540-1545 ई. के बीच उत्तर भारत के शासक) द्वारा बसाया गया शेरकोट अपने नेवले के बालों से बनाए गए ब्रश के लिए प्रसिद्ध है। यह ब्रश अपनी संवेदनशीलता और रंग धारण करने की अद्भुत क्षमता के कारण अनेक चित्रकारों की पसंद है। कृत्रिम ब्रश इस प्रकार के बेहतर परिणाम नहीं दे पाते हैं, जिस कारण एक दौर में यह उद्योग शेरकोट में काफी प्रसिद्ध हुआ। यह ब्रश 3 रुपये से लेकर 100 रुपये या उससे अधिक में बेचा जाता है। इन ब्रशों को तैयार करने के लिए व्यापक रूप से नेवलों का शिकार किया जाता है। प्रत्येक वयस्क नेवले से लगभग 30-40 ग्राम बाल निकलते हैं, जिनमें से केवल 20 ग्राम, पेंटब्रश के लिए उपयुक्त होते हैं। यह बाल 3,000-5,000 रुपये प्रति किलोग्राम के दाम पर बिकते हैं। ब्रशों के निर्माण के लिये सालाना 50,000 नेवले मारे जाते हैं। सामान्यतः भूरे, सुर्ख और छोटे भारतीय नेवले इस व्यापार से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।
लेकिन विगत कुछ वर्षों में इस उद्योग में काफी तेज़ी से गिरावट आई। शेरकोट में 2014 तक 450 इकाइयां थीं, लेकिन अब केवल 150 रह गयी हैं, जिसमें लगभग 10,000 से अधिक लोग कार्यरत हैं। वास्तव में इसकी गिरावट का प्रमुख कारण नेवले को लुप्तप्राय वन्य प्राणियों की सूची के अंतर्गत संरक्षित कर दिया गया है। भारत में नेवले की 6 प्रजातियां पायी जाती हैं, जिन्हें वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची 2 के तहत सूचीबद्ध किया गया है, जिसका अर्थ है इनका शिकार या व्यापार करना अवैध होगा। इसमें 10,000 रुपये का जुर्माना और 7 साल तक का कारावास हो सकता है। जिस कारण राज्य और केंद्र सरकार से भी इस उद्योग को कोई सब्सिडी (Subsidy) नहीं मिलती। परिणामतः कच्चे माल की कमी के कारण, इसका कारोबार 10 करोड़ रुपये से 40% घटकर 6 करोड़ रुपये रह गया है।
इसके साथ ही इस व्यापार में भारत चीन से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना भी कर रहा है। भारत में ज्यादातर ब्रश हाथ से तैयार किए जाते हैं, जबकि चीन मशीनों (Machines) से ब्रश बनाता है तथा उन्हें कम कीमतों पर बाज़ार में बेचता है। नेवले के संरक्षण के बाद अब अधिकांश चित्रकारों ने इन ब्रश का प्रयोग बंद कर दिया है, तो वहीं कुछ अभी भी इनका प्रयोग कर रहे हैं। पहले प्रतिष्ठित कंपनियां इन ब्रश का निर्माण करती थीं, लेकिन अवैध व्यापार और पर्यावरण संबंधी चिंताओं के कारण, अब उन्होंने नेवले के बाल का उपयोग बंद कर दिया है।
हालांकि, खरीदारों की मांगों की वजह से, छोटे निर्माता अभी भी इसका निर्माण कर रहे हैं। बालों का अवैध खुदरा और थोक कारोबार, कपड़ा पार्सल (Parcel) की आड़ में रेलगाड़ियों और मालगाड़ियों के माध्यम से किया जाता है। प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय आपूर्तिकर्ता नियमित रूप से भारत से हेयर ब्रश (Hairbrush) आयात करते हैं। इस तरह के सीमा पार व्यापार को नियंत्रित करना इसलिए मुश्किल है क्योंकि अधिकांश लोग इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं कि नेवले का शिकार गैरकानूनी है। इसके अतिरिक्त, नेवले के बाल को केवल प्रशिक्षित विशेषज्ञ ही पहचान सकते हैं, और यहां तक कि एक्स-रे स्कैनर (X-ray scanner) भी उनका पता कठिनाई से लगा पाते हैं।
पिछले साल (2018) बिजनौर में वन्यजीव अपराध नियंत्रण विभाग के नेतृत्व में फैक्ट्रियों (Factories) से डेढ़ क्विंटल नेवले के बाल बरामद किए गए, जिन्हें ब्रश बनाने के लिए उपयोग किया जा रहा था। इस उद्योग में पैसे कमाने के लिए हज़ारों नेवलों की अवैध हत्या करके उनके बालों से ब्रश बनाए जा रहे हैं। यह बाल देश के विभिन्न राज्यों से एकत्रित किए गए हैं। इस स्थिति को देखते हुए नेवलों का जीवन संरक्षण के बाद भी संकटमय बना हुआ है जिसके लिए कड़े कदम उठाने और जागरूकता फ़ैलाने की आवश्यकता है।
संदर्भ:
1. https://www.tourmyindia.com/blog/mongooses-killing/
2. https://bit.ly/2J03pvi
3. https://indiasendangered.com/bijnor-seizure-unearths-massive-mongoose-massacre/
4. https://bit.ly/2Fwu8i7
5. https://bit.ly/2KCK2Mc
6. https://en.wikipedia.org/wiki/Sherkot
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