औपनिवेशिक काल से पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप में भारतीय चित्रकला शैली का एक विशेष स्थान था। जो ब्रिटिशों के आगमन के बाद कहीं विलुप्त हो गया, जिसका प्रमुख कारण ब्रिटिशों की इसके प्रति उदासीनता थी। इन्होंने 18वीं शताब्दी के अंत में भारत में चित्रकला का एक नया रूप प्रस्तुत किया, जिसे ‘कंपनी पेंटिंग’ (Company Painting) के नाम से जाना गया। यह चित्रकला कल्पना से ज्यादा वास्तविकता पर आधारित थी, जिन्हें पानी वाले रंगों से तैयार किया गया था। इस शैली ने लंबे समय तक भारतीय चित्रकला को दबा कर रखा।
बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में बंगाल स्कूल ऑफ आर्ट (Bengal School of Art) या बंगाल स्कूल ने भारतीय चित्रकला को एक बार फिर से पूनार्जीवित किया जिसने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक विशिष्ट भूमिका निभाई। इस दौरान भारत में भारतीय राष्ट्रवादी नेताओं ने स्वदेशी की अवधारणा को बढ़ावा दिया। यह ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध आत्मनिर्भर बनने का एक आंदोलन था, जो मुख्यतः बंगाल में प्रभावी हुआ। इस आंदोलन का प्रमुख उद्देश्य ब्रिटिश निर्माताओं का बहिष्कार करने के साथ-साथ पश्चिमी साहित्य, कला, संस्कृति को समाप्त कर घरेलू और स्थानीय उत्पादों, उद्योगों, कला और संस्कृति को बढ़ावा देना था।
इन परिस्थितियों में उद्भव हुआ बंगाल स्कूल (कलकत्ता और शांतिनिकेतन में) का, जिसकी अगुवाई श्री रबिन्द्रनाथ टैगोर के भतीजे श्री अवनीन्द्र टैगोर ने की तथा ब्रिटिश अर्नेस्ट बिनफील्ड हैवेल ने इनका समर्थन किया, जो 1896 से 1905 तक कलकत्ता के गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ़ आर्ट (Government College of Art) के प्राचार्य थे, जहाँ उन्होंने छात्रों को मुगल लघुचित्रों की प्रतियां तैयार करने के लिए प्रोत्साहित किया, जिसके विषय में इनकी विचारधारा थी कि वे पश्चिमी जगत के 'भौतिकवाद' के विपरीत भारत के आध्यात्मिक गुणों को व्यक्त करते थे। हैवेल भारतीय कला को जीवित करने हेतु अवनीन्द्र टैगोर के प्रयासों से काफी प्रभावित हुए थे और देखते ही देखते अवनीन्द्र जी का यह प्रयास एक राष्ट्रवादी कला आंदोलन बन गया। अवनीन्द्र जी ने पाश्चात्य कला शैली का बहिष्कार करते हुए, एशिया चित्रकला की ओर रूख किया, जिसमें जापानी और चीनी कला शैलियाँ भी शामिल थीं, जो पाश्चात्य कला शैली से पूर्णतः भिन्न और स्वतंत्र थी। जापानी चित्रकार ओकाकुरा काकुज़ो ने उन्हें बहुत प्रेरित किया और बंगाल स्कूल के कई कलाकारों द्वारा उनकी पेंटिंग में जापानी वाश (Japanese Wash) तकनीक का प्रयोग किया गया था।
बंगाल स्कूल के कलाकारों की वैसे तो प्रमुखतः व्यक्तिवादी शैली थी, किंतु इनके चित्रों में अन्य भारतीय चित्रकला शैली जैसे अजंता, मुगल, राजस्थानी, पहाड़ी इत्यादि की भी स्पष्ट झलक दिखाई दी। इस स्कूल के सबसे प्रतिष्ठित चित्रों में अवनीन्द्र टैगोर द्वारा बनाया गया 'भारत माता' का चित्र था, जिसमें भारत माता की चार भुजाएं राष्ट्रीय आकांक्षाओं का प्रतीक थीं। बंगाल स्कूल के चित्रकारों ने अद्भुत परिदृश्यों के साथ-साथ ऐतिहासिक विषयों और दैनिक ग्रामीण जीवन के दृश्यों को भी चित्रित किया। इन चित्रों के निर्माण में टैगोर जी के शिष्य नंदलाल बोस और असित कुमार हलदार जैसे चित्रकारों का विशेष योगदान रहा।
भारत में बंगाल स्कूल का प्रभाव 1920 के दशक में आधुनिकतावादी विचारों के प्रसार के साथ कम हो गया। किंतु इस आंदोलन ने भारतीय चित्रकला को एक विशिष्ट पहचान दिलवाई। बंगाल से आज भी कई सर्वश्रेष्ठ चित्रकार उभरकर आ रहे हैं। गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ़ आर्ट एंड क्राफ्ट (Government College of Art and Craft) में एक विभाग है जो लगभग एक सदी से छात्रों को टेम्पेरा (Tampera) और वाश पेंटिंग (Wash Painting) की पारंपरिक शैली का प्रशिक्षण दे रहा है।
संदर्भ:
1. https://www।artisera।com/blogs/expressions/how-the-bengal-school-of-art-changed-colonial-indias-art-landscape
2. https://www।sothebys।com/en/articles/how-the-bengal-school-of-art-gave-rise-to-indian-nationalism
3. http://ngmaindia।gov।in/sh-bengal।asp
4. https://en।wikipedia।org/wiki/Bengal_School_of_Art
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