विश्व के अधिकांश देशों मुख्यतः यूरोपीय देशों में फैली रोमा/जिप्सी (Roma/ Gypsy) जाति मूलतः भारत भूमि से संबंधित मानी जाती है। यह बात सत्य है कि यह एक घुमन्तु जाति है, जो अपना कोई लिखित इतिहास नहीं रखती है। इसलिए कुछ समय पूर्व तक इनका भारतीय मूल से संबंध होने का शत प्रतिशत दावा करना थोड़ा कठिन था। किंतु जब कुछ विशेषज्ञों और विद्वानों द्वारा इन पर गहनता से अध्ययन किया गया, तो ज्ञात हुआ कि ये पारंपरिक रूप से ही नहीं वरन् आनुवांशिक रूप से भी भारतीय मूल से जुड़े हुए हैं, जो प्रवासन के बाद विश्व के विभिन्न भागों में फैले। चलिए नज़र डालते हैं भारतियों और रोमानियों के मध्य संबंध पर:
उत्पत्ति के आधार पर संबंध: इनकी उत्पत्ति उत्तरी पश्चिमी भारत (राजस्थान, पंजाब, दिल्ली आदि) से मानी जाती है, जो प्रवासन के बाद संपूर्ण विश्व में फैली।
आनुवांशिक संबंध:
एक अध्ययन के अनुसार वर्तमान में उत्तर भारत की अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आधुनिक यूरोपीय रोमा के वंशज हैं। वे लगभग 900 साल पहले बाल्कन पहुँचे और फिर पूरे यूरोप में फैल गए। बाल्कन रोमानी समूह का एक आनुवांशिक वर्ग हेप्लोग्रुप एच-एम82 (Haplogroups H-M82) है, जो लगभग 60% है। हेप्लोग्रुप एच यूरोप में असामान्य है, लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप और श्रीलंका में मौजूद हैं, जो यह इंगित करता है कि रोमा का मूल भारत में ही है।
रक्त संबंध
रोमा का रक्त समूह बी है, जो अधिकांशतः भारत में ही पाया जाता है। यह रक्त समूह भारत से ही विश्व के अन्य भागों में पहुंचा है। यूरोप में यह रक्त समूह बहुत कम मात्रा में या सिर्फ रोमा (38.96) में ही देखने को मिलता है। यह रक्त समूह सिकन्दर महान के आक्रमण के बाद ही यूरोप में चला गया था।
भारत से प्रवासन का कारण:
इनके प्रवासन के विषय में विभिन्न धारणाएं हैं। कुछ के अनुसार यह माना जाता है कि रोमाओं ने राजस्थान से 250 ईसा पूर्व में उत्तर पश्चिम (भारतीय उपमहाद्वीप का पंजाब क्षेत्र, सिंध और बलूचिस्तान) की ओर पलायन कर लिया था। मध्ययुगीन काल से भारत से यूरोप में प्रवास का कोई ज्ञात प्रमाण भी नहीं है, जिसे रोमा से निर्विवाद रूप से जोड़ा जा सके। मध्ययुगीन प्रवासन के विषय में मान्यता है कि उन्होंने मुस्लिमों के आक्रमण के बाद भारत से प्रवासन प्रारंभ किया, तो कुछ का मानना है कि हुणों के आक्रमण के बाद इन्होंने प्रवासन प्रारंभ किया था।
भाषायी संबंध:
इनका कोई लिखित इतिहास नहीं है इसलिए विभिन्न आधारों पर इन्हें भारतियों से जोड़ने का प्रयास किया जाता है, जिसमें भाषा का अहम स्थान है। भाषाई साक्ष्यों ने निर्विवाद रूप से दिखाया है कि भारत में रोमानी भाषा की जड़ें निहित हैं: इनकी भाषा में भारतीय भाषाओं की व्याकरणिक विशेषताएं स्पष्ट झलकती हैं और उनके साथ मूल शब्दकोष में भारतीय शब्दों का एक बड़ा हिस्सा देखने को मिलता है।
रोमानी शब्दावली पंजाबी भाषा से ज्यादा निकटता रखती है, तथा मारवाड़ी की कई ध्वन्यात्मक विशेषताएं साझा करती है। जबकि इसकी व्याकरण बंगाली के सबसे ज्यादा निकट है। रोमानी भाषा डोमरी से भी कुछ समानताएँ साझा करती है, डोमरी को एक समय में रोमानी की ‘बहन भाषा’ माना जाता था। लेकिन हाल के शोध से पता चलता है कि उनके बीच के अंतर काफी महत्वपूर्ण हैं, जो इन्हें दो अलग-अलग भाषा बनाते हैं।
पारंपरिक संबंध:
रोमा जाति में उत्तर भारत के सांस्कृतिक और भौतिक लक्षण निहित हैं। उनके अधिकांश रीति-रिवाज़, आदतें और जीवन जीने के तरीके आदि पंजाब और उसके आस-पास के लोगों से मिलते जुलते हैं। यह भारतियों के समान ही देवी देवताओं में विश्वास करते हैं, किंतु समय के साथ इनके देवी देवताओं के नाम बदल गए हैं, लेकिन उनके द्वारा प्रतिपादित विचार और आदर्श समान हैं, जिसमें धार्मिक अनुष्ठान भी शामिल हैं। उदारहण के लिए अब सेंट सारा (St. Sarah.) देवी रोमाओं की भाग्य की देवी हैं। सेंट सारा की मूर्ति फ्रांस के दक्षिण में भूमध्य सागर तट के एक गाँव के चर्च के तहखाने में रखी गयी है। हर साल यहां 23 मई से 25 मई तक मेला लगता है, जहां दुनिया के सभी देशों के रोमा अपनी देवी को श्रद्धांजलि देने आते हैं। वे अपनी देवी के लिए मोमबत्तियाँ जलाते हैं और कपड़े आदि भेंट करते हैं। भूमध्यसागरीय जल में मूर्ति का प्रतीकात्मक विसर्जन किया जाता है। सेंट सारा कोई और नहीं बल्कि भारतीय देवी दुर्गा हैं जिनकी मूर्ति भारत में हर साल अक्टूबर के महीने में दुर्गा पूजा (पूजा) के दौरान जुलूस में ले जायी जाती है और उसके बाद, पास की नदी या तालाब में विसर्जित कर दी जाती है। इस प्रकार वे आज भी भारतीय संस्कृति का अनुसरण कर रहे हैं।
रोमों को अलग-अलग देशों में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है: फ्रांस में मानुष (Manush) (एक संस्कृत शब्द), जर्मनी में सिंती (Sinti), पूर्व यू.एस.एस.आर., बुल्गारिया आदि में त्सिगानी (Tsigani), पूर्व सोवियत संघ के मध्य एशियाई गणराज्यों में मुल्तानी (Multani), मध्य एशिया में जोट्स (Zotts) (जाट), स्पेन में काले (काला) और गिटानो (Gitano), कुछ अन्य देशों में कलदेरश (Kalderash), यूगोस्लाविया में बडगुलजीय (Badguljiye) आदि।
रोमानी लोगों और उनके भारतीय समकक्षों के बीच इन समानताओं को उजागर करने के लिए, रोमा ने पहली बार 1971 में खुद को संगठित किया, जब पहली विश्व रोमानी कांग्रेस लंदन में आयोजित की गई थी। दूसरी कांग्रेस जिनेवा में 1978 में आयोजित की गयी, तब उन्होंने औपचारिक रूप से खुद को भारतीय मूल के व्यक्ति के रूप में घोषित करने का प्रस्ताव पारित किया। तीसरी रोमानी कांग्रेस 1981 में गोटिंगेन (W. Germany) में आयोजित की गई थी और यहाँ उन्होंने नाज़ियों द्वारा रोमा के 5 लाख रोमा लोगों के नरसंहार को याद किया। चौथा विश्व रोमानी कांग्रेस 1990 में वारसॉ (पोलैंड) में आयोजित किया गया था। भारत में भी, भारतीय रोमानी अध्ययन संस्थान का औपचारिक उद्घाटन स्वर्गीय ज्ञानी जैल सिंह (पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री) द्वारा 24 दिसंबर, 1973 को चंडीगढ़ में किया गया था। यह संस्थान आज भी भारत में क्रियान्वित है तथा भारतीय और रोमानियों के मध्य घनिष्ठता बढ़ाने का कार्य कर रही है।
संदर्भ:-
1.https://www.jatland.com/home/Roma
2.http://historyofjattsikhs.blogspot.com/2016/01/the-roma-gypsies-descended-from-jatt.html
3.https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.107535/page/n269
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