आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा प्रणाली विश्व की सबसे प्राचीन पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली है, जिनमें मानवीय शरीर और उसमें होने वाले विकारों का गहनता से वर्णन किया गया है तथा आज भी इनमें अनुसंधान जारी है। जिनके कई उल्लेखनीय परिणाम भी उभरकर सामने आए हैं। वर्ष 2017 में तीन पश्चिमी वैज्ञानिकों को उनके कार्य के लिए नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया है, जिसने आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा प्रणाली के शोधकर्ताओं के लिए एक आशा की किरण जगा दी है। वास्तव में यह पुरस्कार औषधी और फिजियोलॉजी के क्षेत्र में दिया गया था।
अमेरिकी वैज्ञानिक जेफरी सी. हॉल (Jeffrey C. Hall), माइकल रोसबाश (Michael Rosbash) और माइकल डब्ल्यू. यंग (Michael W. Young) को आणविकतंत्रों को नियंत्रित करने वाली सर्कैडियन दवा (circadian rhythm )पर कार्य करने के लिए संयुक्त रूप से नोबेल पुरस्कार दिया गया। यह दवा आयुर्वेद और पारंपरिक चीनी चिकित्सा जैसी सभी प्राचीन चिकित्सा प्रणालियों और प्रकृति के दैनिक, मासिक और मौसमी चक्रों के साथ आहार और जीवन शैली के गहन अध्ययन पर आधारित थी।
आयुर्वेद में जैविक घड़ी (Body Clock) का उल्लेख मिलता है, इन वैज्ञानिकों ने इस घड़ी की कार्यप्रणाली का गहनता से अध्ययन किया। इन्होंने इस घड़ी की समय सारणी को जानने के लिए फलमक्खियों पर अध्ययन किया, जिसमें वे दैनिक जैविक लय को नियंत्रित करने वाले जीन को अलग करने में सफल रहे। इस जीन को पीरियड (period) या अवधि नाम दिया गया। यह जीन पीरियड (PER) नाम के एक प्रोटीन को संकेत करता है, जो रात में बढ़ता तथा दिन में घट जाता है। इस प्रकार यह प्रोटीन 24-घण्टे के चक्र को नियमित करता है।
इनके शोध का दूसरा लक्ष्य यह जानना था कि सर्कैडियन दोलनों (circadian rhythm) को कैसे उत्पन्न और निरंतर किया जा सकता है।जेफरी हॉल और माइकल रोसबाश ने अनुमान लगाया कि पर(PER) प्रोटीन अवधि जीन की गति विधि को अवरुद्ध करता है। उन्होंने तर्क दिया कि एक निषेधात्मक प्रतिक्रिया में पाश (लूप) सेपीरियड (PER) प्रोटीन स्वयं के संश्लेषण को रोक सकता है और इस तरह एक सतत, चक्रीय लय में स्वयं के स्तर को नियंत्रित कर सकता है।
18वीं शताब्दी के दौरान, खगोल विदजीन जैक्स डी' आर्ट सडीमैरन ने मिमोसा पौधों का अध्ययन किया, और पाया कि पत्तियां दिन के दौरान सूर्य की ओर खुलती हैं और शाम को बंद हो जाती हैं। उन्होंने सोचा कि अगर पौधे को लगातार अंधेरे में रखा जाए तो क्या होगा? उन्होंने पाया कि दैनिक सूर्य के प्रकाश की अनुपस्थिति में भी पत्तियों ने अपने सामान्य दैनिक चक्र का पालन किया। पौधों की भी अपनी जैविक घड़ी होती है। इस नियमित रूपांतरण को सर्कैडियन लय के रूप में संदर्भित किया जाता है।
मनुष्यों सहित सभी बहुकोशिकीय जीव, सर्कैडियन लय को नियंत्रित करने के लिए समान प्रणाली का उपयोग करते हैं। हमारे जीन का एक बड़ा हिस्सा जैविक घड़ी द्वारा नियंत्रित किया जाता है और, परिणामस्वरूप, शरीर की आंतरिक घड़ी सर्कैडियन लय हमारे शरीर को सावधानी पूर्वक दिन के विभिन्न चरणों में ढालता है। यह घड़ी मानवीय व्यवहार हार्मोन के स्तर, नींद, शरीर के तापमान और चयापचय जैसे महत्वपूर्ण कार्यों को नियंत्रित करता है। बाह्य वातावरण और आंतरिक जैविक घड़ी के मध्य असंतुलन है, हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
संदर्भ:
1. https://swarajyamag.com/science/this-years-nobel-prize-in-medicine-puts-fresh-focus-on-ayurveda
2. https://lifespa.com/nobel-prize-validates-ayurvedic-circadian-clock/
3. https://bit.ly/2wO0NJB
4. https://www.nobelprize.org/prizes/medicine/2017/press-release/
5. http://indiafacts.org/nobel-prize-medicine-means-ayurvedic-research/
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