 
                                            समय - सीमा 266
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                                            हिसपिड हेयर (Hispid Hare) या हिसपिड खरगोश एक बहुत ही दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजाति है। जोकि भारत से लगभग विलुप्त हो चुकी है। यह केवल कुछ ही सीमित इलाकों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और असम में हिमालय की तलहटी के कुछ अलग हिस्सों तक मौजूद हैं। जिला रामपुर उन स्थान में से एक है जहाँ इस दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजाति को देखा गया है क्योंकि रामपुर कॉर्बेट नेशनल पार्क (Corbett National Park) और पीलीभीत टाइगर रिज़र्व (यह हिमालय की तलहटी में भारत-नेपाल सीमा और उत्तर प्रदेश में तराई क्षेत्र में स्थित है। यह भारत के 50 टाइगर रिज़र्व प्रोजेक्ट/Tiger Reserve Project में से एक है।) के बहुत करीब हैं। बाघों के रहने के स्थल के अलावा, इन दोनों रिज़र्व में अति दुर्लभ हिसपिड हेयर भी देखे गये हैं।
 
हिसपिड हेयर को ‘असम खरगोश और ब्रिसली खरगोश’ भी कहा जाता है क्योंकि इनके मोटे, गहरे भूरे रंग के बाल होते हैं। इनके कान छोटे होते हैं और इनके पिछले पैर आगे के पैरों की तुलना में अधिक बड़े नहीं होते हैं। एक वयस्क का वज़न लगभग 2.5 किलोग्राम होता है और ये ज़्यादातर सवाना के उष्णकटिबंधीय घास के मैदानों में रहना पसंद करता है। ये ज्यादा सामाजिक नहीं होते हैं परंतु कभी-कभी इन्हें जोड़े में रहते देखा गया है। इनके आहार में मुख्य रूप से छाल, अंकुर बीज और घास की जड़ें और फसलें आदि शामिल हैं। हालांकि ये खरगोश जैसे दिखते तो हैं परंतु ये थोड़े से भिन्न होते हैं। खरगोश लॅपोरिडे (Leporidae) कुल से संबंधित है जबकि ये ख़ास खरगोश/हेयर लेपस (Lepus) जाति से संबंधित हैं। इसके अलावा एक अंतर ये भी है कि खरगोश नवजात शिशु हेयर के नवजात शिशु से कम विकसित होते हैं। आप इस विडियो के माध्यम से एक हिसपिड हेयर को अपने शिशुओं के लिए ज़मीन खोदते हुए देख सकते हैं।
वर्तमान में यह प्रजाति बहुत ही दुर्लभ है इसलिए इसे 1986 में IUCN रेड लिस्ट में लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध किया गया। 2004 में भारत और नेपाल में इस प्रजाति को देखा गया था। इनकी आबादी में गिरावट के मुख्य कारण खेती, वानिकी, चराई, भोजन के लिए शिकार, जंगलों का कटाव व बढ़ता हुआ मानव निवास हैं। इसके अतिरिक्त फसलों को इनसे बचाने के लिये किया गया शिकार भी इसकी विलुप्ति का कारण है। मानस नेशनल पार्क में हिसपिड हेयर का विस्तृत मूल्यांकन किया गया जिससे पता चलता है कि हिसपिड हेयर के जीवन को बचाने के लिए उनके आवासों को संरक्षित करने की आवश्यकता है। घास के मैदानों का वार्षिक शुष्क मौसम में जलाया जाना भी इनके आवास अभाव का एक कारण है।
 
इनके आवासों के प्रबंधन और संरक्षण के लिये पश्चिम बंगाल के जलदापाड़ा वन्यजीव अभयारण्य में हिसपिड हेयर का एक पारिस्थितिक अध्ययन किया गया था। इस अध्ययन में बताया गया है कि हिसपिड एक शर्मीली और एकांत में रहने वाली प्रजाति है जो भारत में दुधवा और मानस राष्ट्रीय उद्यान के अलावा उत्तरी पश्चिम बंगाल के जलदापाड़ा वन्यजीव अभयारण्य के लंबी घास के मैदानों में पाये जाते हैं। ये ज्यादातर उन स्थानों में निवास करते हैं जहां घास की ऊंचाई 3 मीटर से अधिक होती हो, ताकि ये आसानी से छिप सकें। इस अध्ययन में अप्रत्यक्ष रूप से लघु वनस्पतियों, भूमि आवरण और दीर्घ वनस्पतियों के माध्यम से जलदापाड़ा वन्यजीव अभयारण्य में हिसपिड हेयर की आबादी का आकलन भी किया गया था।
संदर्भ:
1.	http://www.animalinfo.org/species/caprhisp.htm
2.	https://en.wikipedia.org/wiki/Hispid_hare
3.	https://bit.ly/30vCdg0
4.	https://en.wikipedia.org/wiki/Pilibhit_Tiger_Reserve
5.	https://bit.ly/2LWVnrL
6.	https://www.youtube.com/watch?v=LYJ4ZrueW9k
 
                                         
                                         
                                         
                                         
                                        