हाल ही में बिजनौर में गन्ने के खेतों में दर्जनों तेंदुओं को बचाया गया है। किंतु पर्याप्त बजट के अभाव में इन शावकों की देख-रेख करना विभाग के लिए एक चुनौती बन गया है। विगत वर्षों तक इनकी संख्या मात्र दो या तीन हुआ करती थी, जिन्हें कानपुर चिड़ियाघर में स्थानांतरित कर दिया जाता था, किंतु इस वर्ष इनकी संख्या काफी अच्छी है, जिनकी देखरेख के लिए पर्याप्त सुविधाओं का होना आवश्यक है। फिलहाल इन्हें कानपुर चिड़ियाघर भेजा जा रहा है। शावक आमतौर पर अप्रैल के अंतिम सप्ताह में पैदा होते हैं, जब गन्ने की फसल होती है तथा बड़ी मादा तेंदुओं को खेतों से बाहर भगा दिया जाता है। जिस कारण शावक खेत में ही छूट जाते हैं।
भारतीय तेंदुआ वास्तव में चीते की एक उप प्रजाति है। जिसे IUCN रेड लिस्ट (IUCN Red List) में अतिसंवेदनशील श्रेणी में रखा गया है। 2014 में, पूर्वोत्तर को छोड़कर भारत में बाघों के आवासों के आसपास तेंदुओं की एक राष्ट्रीय गणना की गई। सर्वेक्षण किए गए क्षेत्रों में 7,910 तेंदुओं का अनुमान लगाया गया तथा पूरे देश में 12,000-14,000 तेंदुए होने का अनुमान लगाया गया।
भारतीय तेंदुआ भारत, नेपाल, भूटान और पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में पाया जाता है। इनमें नर और मादा दोनों की शारीरिक संरचना में भिन्नता होती है, नर 4 फीट 2 इंच से 4 फीट 8 इंच के बीच बढ़ते हैं तथा इनकी पूंछ 2 फीट 6 इंच से 3 फीट लंबी होती है और इनके शरीर का वज़न 50 से 77 किग्रा तक होता है। मादाएं आकार में छोटी होती हैं, इनके शरीर का आकार 3 फीट 5 इंच से 3 फीट 10 इंच के मध्य होता है, पूंछ का आकार 76 सेमी से 87.6 सेमी तक होता है। इनका वज़न 29 से 34 किलो तक हो सकता है।
भारतीय तेंदुआ उष्णकटिबंधीय वर्षावनों, शुष्क पर्णपाती वनों, समशीतोष्ण वनों और उत्तरी शंकुधारी वनों में निवास करता है। तेंदुए एकांतप्रिय और निशाचर होते हैं, जो अपनी चढ़ाई करने की क्षमता के लिए जाने जाते हैं। यह दिन में पेड़ों की शीर्ष शाखा पर विश्राम करते हैं। यह बहुत चुस्त होता है तथा 58 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकता है, क्षैतिज रूप से 6 मीटर से अधिक तथा उर्ध्वाधर रूप से 3 मीटर तक की छलांग लगा सकता है। यह अस्थिर और अवसरवादी शिकारी है, जो अपने मज़बूत सिर और जबड़ों से बड़े से बड़े शिकार को दबोच लेता है। तेंदुए क्षेत्रानुसार किसी भी मौसम में प्रजनन करते हैं, मादाएं 90 से 105 दिनों के भीतर शावक को जन्म दे देती हैं। एक बार में मादा तीन से चार शावकों को ही जन्म देती है। एक तेंदुए का औसत जीवनकाल 12 से 17 वर्ष के मध्य होता है।
अवैध वन्यजीव व्यापार के लिए भारतीय तेंदुओं का शिकार उनके अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा बन रहा है। कृषि में उपयोग की जाने वाली भूमि के विस्तार, मनुष्यों द्वारा अतिक्रमण और संरक्षित क्षेत्रों में उनके वन्य जीवों के निवास स्थान का नुकसान और शिकार इनकी संख्या में कमी का सबसे बड़ा कारण है। भारत में तेंदुओं और मनुष्यों के मध्य संघर्ष होना काफी आम बात है। वर्ष 2016 में मेरठ छावनी में एक निर्माणाधीन जगह पर एक तेंदुआ घुस गया जिसने दो मजदूरों को घायल किया। बड़ी मेहनत मसक्कत के बाद उस तेंदुए को पकड़ा गया। इस प्रकार की घटनाएं हमारे देश में काफी आम हैं, विशेषकर मेरठ शहर में।
जंगली पशुओं की शहर के बीच में घुसपैठ की समस्या पूरे भारत में है, 2011 में मैसूर में दो हाथी अपने झुण्ड से बिछड़ गये, जिन्होंने शहर के बीच में घुसकर तबाही मचाना प्रारंभ कर दिया। उत्तराखण्ड में नरभक्षी बाघों का प्रकोप आम समस्या है, आये दिन बाघ द्वारा लोगों पर हमला करने या मार देने की खबर सामने आ ही जाती है। आज हम इस प्रकार की समस्या के लिए अक्सर बेज़ुबान पशुओं को ज़िम्मेदार ठहराते हैं। जबकि यह मानव द्वारा किए गये कृत्यों का ही परिणाम है।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2JZsOYj
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Indian_leopard
3. https://bit.ly/2WTR1CT
4. https://www.theatlantic.com/photo/2014/02/a-leopard-runs-wild-through-meerut-india/100688/
5. https://bit.ly/2WiHd8a
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