सकल घरेलू उत्‍पाद से ज़्यादा ज़रूरी है प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि

मेरठ

 17-05-2019 10:30 AM
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

किसी भी देश की आर्थिक स्थिती को मापने के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी- ग्रोस डोमेस्टिक प्रोडक्ट/Gross Domestic Product) का प्रयोग एक पैमाने या मापक के रूप में किया जाता है। जीडीपी शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम अमेरिकी अर्थशास्त्री साइमन ने 1935-44 के दौरान किया था। भारत में जीडीपी की गणना प्रत्येक तीन महीने में की जाती है। जीडीपी का आंकड़ा अर्थव्यवस्था के प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों में उत्पादन की वृद्धि दर पर आधारित होता है। जीडीपी के अंतर्गत कृषि, उद्योग व सेवा, यह तीन प्रमुख घटक आते हैं। इन क्षेत्रों में उत्पादन बढ़ने या घटने की औसत के आधार पर जीडीपी दर तय होती है। जीडीपी को दो तरह से प्रस्‍तुत किया जाता है, क्‍योंकि उत्‍पादन की कीमतें महंगाई के साथ घटती बढ़ती रहती हैं। यह पैमाना है ‘कांस्टेंट प्राइस’ (Constant price) जिसके अंतर्गत जीडीपी की दर व उत्‍पादन का मूल्‍य एक आधार वर्ष में उत्‍पादन की कीमत पर तय होता है जबकि दूसरा पैमाना ‘करंट प्राइस’ (Current price) है जिसमें उत्‍पादन वर्ष की महंगाई दर शामिल होती है।

प्रति व्यक्ति जीडीपी एक देश के आर्थिक उत्पादन को मापने का एक तरीका है जो उस देश की जनसंख्या पर निर्भर करता है। इसके अन्तर्गत देश के सकल घरेलू उत्पाद को इसकी कुल आबादी से विभाजित किया जाता है। जो इसे, देश के नागरिकों के जीवन स्तर का सबसे अच्छा माप बनाता है। यह बताता है कि देश का प्रत्येक नागरिक कितना समृद्ध है।

देशों के बीच प्रति व्यक्ति जीडीपी की तुलना करने के लिए उनकी ‘क्रय शक्ति समानता जीडीपी’ का उपयोग किया जाता है। यह समान वस्तुओं की तुलना करके देशों के बीच तुलना बताता है। इससे हमें एक ऐसी तुलना मिलती है जो देश की मुद्राओं के बीच सिर्फ उनकी विनिमय दर की तुलना नहीं करती है बल्कि उन देशों की मुद्राओं द्वारा कुछ समान वस्तुओं को खरीदने की शक्ति की तुलना करती है।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ- International Monetary Fund) के आंकड़े की 2017 की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रति व्यक्ति औसत सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लिहाज से भारत उस वर्ष एक पायदान ऊपर चढ़ कर 126वें स्थान पर पहुंच गया था। हालांकि, वह अभी भी अपने दक्षेस समकक्षों की तुलना में नीचे था। मुद्राकोष की सूची में खनिज और तेल सम्पन्न, कतर देश शीर्ष स्थान पर था।

यह रैंकिंग अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की अक्टूबर 2017 की क्रय शक्ति समानता पर आधारित आंकड़ों पर की गई थी। भारत में प्रति व्यक्ति औसत जीडीपी वर्ष 2016 में 6,690 डॉलर के मुकाबले बढ़कर 2017 में 7,170 (4,65,619 रुपये) डॉलर हो गयी और यह 126वें पायदान पर पहुंच गया। 2017 की क्रेडिट सुइस रिपोर्ट (Credit Suisse Report) के मुताबिक, भारत में 2.45 लाख करोड़पति हैं और देश की कुल घरेलू संपदा 5000 अरब डॉलर है।

प्रति व्यक्ति औसत 1,24,930 डॉलर के जीडीपी के साथ कतर 2017 में सबसे समृद्ध राष्‍ट्र बना। इसके बाद मकाऊ (प्रति व्यक्ति जीडीपी -1,14,430 डॉलर) और लक्जमबर्ग (1,09,109 डॉलर) का स्थान था। ब्रिक्स देशों में प्रति व्यक्ति औसत जीडीपी के लिहाज से भारत का स्थान सबसे नीचे था।

भारत जैसे बड़े देशों में जीडीपी से ज्यादा प्रतिव्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद मह्त्वपूर्ण है। क्योंकि मात्र जीडीपी से हम देश में रह रहे नागरिकों के जीवन स्तर का स्टीक अनुमान नहीं लगा सकते हैं। ऐसे देशों के लिए जहां जनसंख्या वृद्धि बहुत अधिक नहीं है, प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद और कुल जीडीपी वृद्धि के बीच का अंतर न्यूनतम होता है। लेकिन अफ्रीका, दक्षिण एशिया और भारत के लोगों की तरह तेजी से बढ़ती आबादी वाले देशों के लिए, जीडीपी में वृद्धि की गणना करना अत्यधिक कठिन हो सकता है। उदाहरण के लिए, 2016 में, 24 देशों में समग्र सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि हुई थी, लेकिन प्रति व्यक्ति जीडीपी में गिरावट देखी गयी थी। उदाहरण के लिए, अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था में कुल मिलाकर 2.2% की वृद्धि हुई, लेकिन प्रति व्यक्ति आधार पर 0.5% की गिरावट आई।

संदर्भ:
1. https://bit.ly/2AFRKin
2. https://bit.ly/2W6bW8C
3. https://bit.ly/2Jo2Qy2
4. https://bit.ly/2w0hfI8

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