खरमोर या साइफिओटाइड्स इंडिकस (Sypheotides indicus) एक बड़े आकार का लम्बी टाँगों वाला भारतीय पक्षी है। इसे 'लीख या लिख' भी कहते हैं। सौभाग्य से ये मेरठ जिले में भी दिखाई दे जाता है। वर्षा ऋतु में कई वर्षों से यह पक्षी यहाँ आता रहा हैं, पर कुछ वर्षों से इसके दर्शन दुर्लभ होते जा रहे हैं। धीरे-धीरे यह पक्षी विलुप्ती की कगार पर पहुंच गया है।
एविबेस (Avibase) वेबसाइट (Website) के अनुसार वर्तमान में मेरठ जिले में लगभग 383 पक्षियों की प्रजातियां पाई जाती हैं, जिसमें से 30 प्रजातियां विश्व स्तर पर संकटग्रस्त प्रजातियों की सूची में शामिल हैं। इनमें से कुछ के नाम निम्न हैं:
अंग्रेजी में खरमोर को लेस्सर फ्लोरेकिन (Lesser florican) के नाम से जाना जाता है, यह काफी शर्मीला सा पक्षी होता है। नर और मादा बहुत कुछ एक से ही होते हैं। इसके सिर, गर्दन और नीचे का भाग काला और ऊपरी हिस्सा हलका सफेद रहता है। इसके सिर पर मोर की तरह कलगी होती है तथा पीठ पर सफेद रंग में V आकार का निशान होता है। नर खरमोर का रंग काला और पंख सफेद होते हैं। मादा नर से थोड़ी बड़ी होती है। इसका रंग भूरा हेाता है और यह आसानी से दिखाई नहीं देती है। वर्षा ऋतु में यह 3-4 अंडे देती है। इनका प्रजनन का मौसम दक्षिण पश्चिमी मानसून की शुरुआत के साथ उत्तर भारत में सितंबर से अक्टूबर और दक्षिणी भारत के कुछ हिस्सों में अप्रैल से मई तक होता है। इसका मुख्य भोजन घासपात, जंगली फल, पौधों की जड़ें, कीड़े मकोड़े, छिपकली, मेंढक टिड्डे और चींटियां हैं। इस पक्षी को झाड़ियों से भरे मैदान बहुत पसंद हैं, कभी-कभी इन्हें खेतों में भी देखा जा सकता है।
अन्य क्षेत्रीय नाम:
हिन्दी : लीख या लिख, छोटा चरत
गुजराती : खर मोर
मध्य प्रदेश : खर तीतर, भटकुकड़ी, भटतीतर
महाराष्ट्र : तन्नेर
पश्चिम बंगाल : छोटा डाहर, लिख
तमिलनाडु : वारागु कोझि
आन्ध्र प्रदेश : नेला नेमाली
केरल : चट्टा कोझि
कर्नाटक : चट्टा कोझि , कन्नौल
सिन्ध : खरमूर
विलुप्ति का संकट
कुछ वर्षों पहले तक खरमोर पूरे भारत में हिमालय से लेकर दक्षिण तट तक फैले हुए थे, परंतु अब धीरे-धीरे इनकी संख्या कम होने लगी है। वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई- देहरादून) के द्वारा, बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (Bombay Natural History Society -BHNS), कॉर्बेट फाउंडेशन (Corbett Foundation) और मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र तथा राजस्थान के वन विभागों के साथ मिलकर जुलाई-सितंबर 2017 के बीच लुप्तप्राय प्रजातियों के लिये किए गए सर्वेक्षण की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी जिसके अनुसार वर्तमान में भारत में खरमोर लगभग 264 ही बचे हुए हैं जबकि 2000 में इनकी संख्या 3,500 से भी नीचे थी। जिसका अर्थ है कि 2000 के बाद से उनकी आबादी में 80% गिरावट आई है।
खरमोर भारत की चार बस्टर्ड (Bustard) प्रजातियों में से एक है, इन सभी को अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की संकटग्रस्त जातियों की लाल सूची में रखा गया है जो जैविक प्रजातियों के संरक्षण की स्थिति की दुनिया की सबसे बड़ी सूची है। भले ही सरकार ने वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट (Wildlife Protection Act), 1972 की अनुसूची-1 के तहत इसे सबसे अधिक सुरक्षा प्रदान की हो, लेकिन उनकी संख्या में लगातार गिरावट आ रही है। आज मेरठ क्षेत्र में खरमौर का अस्तित्व संकट में है। शिकार और प्राकृतिकआवास तथा खान-पान की अनुपलब्धता इसके लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार है। यदि इनका पर्यावरण संरक्षण नहीं हुआ तो ये भी गिद्ध की तरह जिले से विलुप्त हो जायेंगे।
संदर्भ:
1. https://avibase.bsc-eoc.org/checklist.jsp?region=INggupme&list=howardmoore
2. https://avibase.bsc-eoc.org/species.jsp?avibaseid=FEA2C3CDFCACEEF2
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Lesser_florican
4. https://bit.ly/2Vk3qyl
5. https://bit.ly/2YtVOLo
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