गांधीजी का मानना था कि भारत की वास्तविक स्वतंत्रता की राह रचनात्मक कार्यों से गुज़रती है और उसके लिए, स्वतंत्रता के लिये रथ के दो पहिए - रचनात्मक कार्यक्रम और राजनीतिक अभियान हैं , जिनके एक साथ चलने से ही एक निडर, आत्म-निर्भर और मानवीय समाज बन सकता है।
असहयोग आंदोलन के निलंबन के बाद, मेरठ के लोगों ने महात्मा गांधी के नक्शे कदम पर ईमानदारी से खादी का काम करने का फैसला किया । कीर्ति प्रसाद, (सचिव, मेरठ की जिला कांग्रेस कमेटी) ने एक रिपोर्ट पेश की, जिसके तहत मेरठ के जिले में 60,000 चरखे थे और 1922 में 65% आबादी ने खादी पहना। जिला कांग्रेस कमेटी के समर्थन के साथ 8 सितंबर, 1924 को एक चरखा संघ की स्थापना की गई थी और यह निर्णय लिया गया था कि संघ में चरखा और बुनाई का काम प्रतिदिन तीन घंटे के लिए किया जाएगा। खादी को और प्रचलित करने के लिए स्पिनिंग प्रतियोगिताओं का आयोजन विभिन्न स्थानों में किया गया। मज़दूरों और किसानों के कल्याण के लिए 1926 में एक मज़दूर आश्रम खोला गया। इस संगठन के प्रेरणा स्त्रोत लाला बलवन्त सिंह और गौरी शंकर शर्मा थे। 7-8 महीनों के भीतर, मेरठ शहर और छावनी में तीन चरखा प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया, और इनाम में चरखा दिया गया।
7 और 8 नवंबर, 1927 को गढ़मुक्तेश्वर में प्रोफेसर धर्मवीर सिंह की अध्यक्षता में एक किसान सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें किसानों को अपने घरों में चरखे को लोकप्रिय बनाने का प्रयास करने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया। स्वदेशी के प्रति उनका उत्साह इतना प्रबल था कि 3 मार्च, 1928 को मेरठ के बाज़ारों में पारंपरिक होली के त्यौहार के स्थान पर विदेशी कपड़ों का एक अलाव जलाया गया , इसी वर्ष सुश्री स्लेड और मीरा बहन ने 22 अक्टूबर, 1928 को गांधी आश्रम का दौरा किया। गांधी आश्रम खादी और स्वदेशी के प्रचार के लिए एक प्रमुख केंद्र बन चुका था। परमात्मा शरण की प्रवक्ता में मेरठ कॉलेज (Meerut College) के छात्रों ने विदेशी कपड़ों का प्रभावी ढंग से बहिष्कार करने के लिए 'मैत्री सेवा संघ' के नाम से एक संगठन शुरू किया। ब्रिटिश साम्राज्यवाद के आर्थिक आधार को स्वदेशी, खादी और चरखे के माध्यम से गंभीरता से चुनौती दी गई, जिसका असर ब्रिटिश सरकार द्वारा 1920 के दशक के अंत और 1930 के दशक की शुरुआत में महसूस किया गया।
गांधीजी 1929 में मेरठ पहुंचे और 27 से 30 अक्टूबर, तक यहां रहे। उन्होंने जिले में बड़ी संख्या में सभाओं को संबोधित किया।
आज उत्तर भारत में खादी ग्रामोदय का सबसे बड़ा केंद्र मेरठ शहर में है। खादी ग्रामोद्योग सेक्टर के चतुर्मुखी विकास के लिए उत्तर प्रदेश खादी ग्रामोद्योग अधिनियम संख्या 10, 1960 के अन्तर्गत बोर्ड का गठन एक सलाहकार बोर्ड के रूप में हुआ था। तदोपरान्त उत्तर प्रदेश खादी ग्रामोद्योग बोर्ड संशोधित अधिनियम संख्या 64, 1966 द्वारा उपरोक्त अधिनियम को संशोधित किया गया जिसके फलस्वरूप बोर्ड को खादी ग्रामोद्योग की योजनाओं को प्रदेश में क्रियान्वित करने का अधिकार प्राप्त हो गया। इस प्रकार खादी ग्रामोद्योग बोर्ड एक स्वायत्तशासी संस्था के रूप में पुनर्गठित हुआ तथा अप्रैल 1967 में उद्योग निदेशालय, जिला से समस्त खादी ग्रामोद्योगी योजनाएं बोर्ड को स्थानान्तरित कर दी गयीं। इससे पूर्व ये योजनायें प्रथम एवं द्वितीय पंचवर्षीय योजनाकाल में उद्योग निदेशालय के अन्तर्गत संचालित की जा रही थी।
खादी तथा ग्रामोद्योग बोर्ड का उद्देश्य छोटे-छोटे उद्योगों तथा कम पूँजी निवेश के उद्योगों को स्थापित कराकर अधिक से अधिक रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना है। ‘ग्रामोद्योग’ का अर्थ है, ऐसा कोई भी उद्योग जो ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित हो तथा जो विद्युत के उपयोग या बिना उपयोग के कोई माल तैयार करता हो या कोई सेवा प्रदान करता हो।
बोर्ड के उद्देश्य
खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड ग्रामीण क्षेत्र में छोटे-छोटे कुटीर उद्योग स्थापित कर ग्रामीण क्षेत्र में अधिक से अधिक रोजगार के अवसर प्रदान कर रहा है। इससे प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर व्यापार स्थापित कर रोजगार के अधिक अवसर प्रदान करना है।
मूलभूत उद्देश्य
शासन द्वारा इस निदेशालय की स्थापना निम्न उद्देश्यों को दृष्टिगत रखकर की गयी
1. कुटीर एवं ग्रामीण उद्योगों से संबंधित सांख्यकीय आधार (डाटा बेस) को सुदृढ़ किया गया तथा इन उद्योगों हेतु नीति निर्धारण में प्रदेश शासन को आवश्यक सहयोग दिया गया।
2. प्रदेश में कुटीर एवं ग्रामीण उद्योगों के व्यापक तथा समन्वित विकास हेतु आवश्यक परियोजनाओं/योजनाओं की संरचना तथा कार्यान्वित की जाने वाली समस्त परियोजनाओं का प्रभावी अनुश्रवण।
3. कुटीर एवं ग्रामीण उद्योगों हेतु शासन द्वारा स्वीकृत धनराशि का आहरण वितरण करना तथा उसका सम्पूर्ण लेखा-जोखा रखना।
4. कुटीर एवं ग्रामीण उद्योगों से संबंधित विभिन्न संस्थाओं/शासकीय विभागों से प्रभावी समन्वय स्थापित करना।
5. अन्य कार्य जो प्रदेश शासन द्वारा निदेशालय को समय-समय पर आवंटित किये जायें आदि ।
बोर्ड के अधिनियम की धारा के अनुसार बोर्ड के निम्नलिखित कार्य हैं:-
1. प्रदेश में खादी तथा ग्रामोद्योग की स्थापना, इसका संगठन विकास एवं विनियमन करना तथा अपने द्वारा बनायी गयी योजनाओं को क्रियान्वित करना।
2. खादी के उत्पादन एवं अन्य ग्रामोद्योग में लगे हुए अथवा उसमें अभिरूचि रखने वाले व्यक्तियों के प्रशिक्षण की योजना बनाना तथा उनका संगठन करना।
3. कच्चे माल तथा उपकरण की व्यवस्था के लिए सुरक्षित भण्डार बनवाना और उन्हें खादी के उत्पादन अथवा ग्रामोद्योग में लगे हुए व्यक्तियों को ऐसी मितव्ययी दरों पर देना जो बोर्ड की राय में उपयुक्त हों।
4. खादी एवं ग्रामोद्योगी वस्तुओं के प्रचार तथा क्रय-विक्रय की व्यवस्था करना।
5. खादी उत्पादन की विधियों में अनुसंधान करना एवं अन्य ग्रामोद्योग विकास से सम्बन्धित समस्याओं के लिए समाधान सुनिश्चित करना।
6. खादी तथा ग्रामोद्योगी वस्तुओं के विकास के लिए स्थापित संस्थाओं का अनुश्रवण करना या उनके अनुरक्षण में सहायता करना।
7. खादी तथा ग्रामोद्योगी वस्तुओं का उत्पादन कार्य करना, उनके लिए सहायता देना और प्रोत्साहन प्रदान करना।
8. खादी के कार्य तथा ग्रामोद्योग में लगे व्यक्तियों और संस्थाओं जिनके अन्तर्गत सहकारी समितियाँ भी हैं, से समन्वय करना।
9. खादी निर्माताओं द्वारा ग्रामोद्योग में लगे व्यक्तियों से सहकारी प्रयास को बढ़ावा देना तथा उसे प्रोत्साहित करना।
10. किसी अन्य विषय का कार्यान्वयन, जो राज्य सरकार द्वारा नियमों के अन्तर्गत निर्धारित किया जाए।
11. आवश्यकता अनुसार बोर्ड की विभिन्न गतिविधियों जैसे - सर्वेक्षण, मार्केटिंग (Marketing), उत्पाद पैकेजिंग (Packaging), हाथ कागज़, खादी डिज़ाइनिंग (Designing) या अन्य खादी तथा ग्रामोद्योग के विषयों से सम्बंधित विशेषज्ञों/सलाहाकारों की सेवाएं प्राप्त करना।
सन्दर्भ:
1. https://bit.ly/2UY0dV0
2. http://meerutdivision.nic.in/khadi/khadi_main.pdf
चित्र सन्दर्भ:
1. https://bit.ly/2r2qAwa
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.