कुष्ठ रोग(leprosy), जिसे हेन्सन रोग(Hansen’s disease) के रूप में भी जाना जाता है, बैक्टीरिया माइकोबैक्टीरियम लेप्राई(Bacteria Mycrobacterium Laprae) या माइकोबैक्टीरियम लेप्रोमैटोसिस(Mycrobacterium lepromatosis) द्वारा दीर्घकालिक संक्रमण है।प्रारंभ में, संक्रमित व्यक्ति में इन लक्ष्णों का पता नहीं चलता और आमतौर पर 5 से 20 साल तक इसी तरह रहता है।विकसित होने वाले लक्षणों में नसों, श्वसन तंत्र, त्वचा और आंखों के ग्रैनुलोमा(Granulomas) शामिल हैं। इसके परिणामस्वरूप एक व्यक्ति में दर्द महसूस करने की क्षमता में कमी आ जाती है , जिससे बार-बार चोट लगने के कारण संक्रमण के कुछ हिस्सों को गहरा नुकसान होता है । जिसमे कमजोरी एवं खराब दृष्टि जैसे लक्षण भी शामिल है।
खाँसी के माध्यम से या कुष्ठ रोग से संक्रमित व्यक्ति की नाक से तरल पदार्थ के साथ संपर्क में आने से यह रोग फैलता है । यह गर्भावस्था के दौरान अजन्मे बच्चों में या यौन संपर्क के माध्यम से नहीं फैलता है। जो लोग गरीबी में जीवन यापन कर रहे हैं, उनमें कुष्ठ रोग अधिक सामान्यतः होता है। आनुवंशिक कारक भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
कुष्ठ रोग ने हजारों वर्षों से मानवता को प्रभावित किया है। इस बीमारी का नाम ग्रीक शब्द लेप्रा(lepra), लेपिस;(lepis) "स्केल" से लिया गया है, जबकि शब्द "हैनसेन की बीमारी" का नाम नॉर्वेजियन चिकित्सक गेरहार्ड आर्माउर हैनसेन(Gerhard Armauer Hansen) के नाम पर रखा गया है।
संकेत और लक्षण
कुष्ठ रोग के प्रारंभिक संकेत पे ध्यान दे तो इसमे अक्सर त्वचा पर पीले या गुलाबी रंग के धब्बे बनने शुरू होते है खासकर जो तापमान या दर्द के प्रति असंवेदनशील हो । यह कभी-कभी हाथों एवं पैरों में सुन्नता तथा कोमल तंत्रिओ में नुकसान जैसी समस्याओं को बढ़ाता है । द्वितीयक संक्रमण, और भी ज्यादा हानिकारक होता है जिसमे उत्तक नुकसान तथा पैरों और हाथो की उंगलियां छोटी हो जाती हैं और विकृत हो जाती हैं।
जहाँ भारत कुष्ठ रोग के मामलों को नियंत्रित करने में सफल हो रहा है वही दूसरी ओर इस बीमारी से प्रभावित लोगों के सामाजिक समावेश की खबरे हमे आये दिन सुनने को मिलती है । हाल के दिनों में, कुष्ट रोगियों को पीड़ित किये जाने तथा इन मामलो में पुलिस की निष्क्रियता जैसे कई चौंकाने वाले मामले सामने आए हैं। 20 जनवरी को मेरठ से एक घटना की सूचना मिली , जहां कुष्ठ आश्रय में रहने वाले 48 से अधिक परिवारों को दो गुंडों द्वारा तीन वर्षों तक शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान किया जा रहा था।ये मामले ऐसे समय में सामने आए जब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) द्वारा आयोजित कुष्ठ रोग पर एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला नई दिल्ली में चलाई जा रही थी।यहां तक कि कानून भी इस बीमारी से पीड़ित लोगों के साथ पक्ष रखने में विफल रहता है और उनके मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है। हिंदू दत्तक और रखरखाव अधिनियम, 1956 के तहत, यदि कोई व्यक्ति कुष्ठ रोग से पीड़ित है, तो उसकी पत्नी उसके पति को रखरखाव का दावा किए बिना उससे अलग रहने की हकदार है।कुष्ठ प्रभावित व्यक्तियों के पुनर्वास का मसला एक कठिन काम है। छत्तीसगढ़ को छोड़कर, अधिकांश राज्यों ने उन्मूलन लक्ष्यों को प्राप्त किया, लेकिन कुष्ठ रोग के ताजा मामलों की घटना एक चिंता का विषय है।
ऊपर दिया गया चित्र कुष्ठ रोग से पीढित एक वृद्ध का है, जिसे सन 1930 के आसपास एक अज्ञात फोटोग्राफर (Photographer) द्वारा लिया गया था ।
कुष्ट रोग से पीड़ित पुरुष व महिलाये खासकर बुजुर्गो के रहने के लिए जिनको सरकार द्वारा संचालित सुविधाओं का निर्माण किया गया अब वह यहाँ , रहने वालों के लिए एक जीवित नरक बन गया है। इस घर के अस्तित्व का एकमात्र संकेत मुख्य सड़क पर छोटा सा साइन बोर्ड है जो सुविधा के नाम पर प्रकाश डालता है। टूटी हुई खिड़की के शीशे, दीवारों से झड़ चूका पेंट तथा कुछ और अन्य चीजें हैं जो सरकारी कुष्ठ रोग की विशेषता बताते हैं, जो पेड़ों और विभिन्न प्रकार के कवक और खरपतवार से घिरा हुआ है। जबकि बुनियादी सुविधाओं की कमी वहाँ रहने वालों के लिए एक बड़ी समस्या है, स्वस्थ खाद्य पदार्थों की आपूर्ति एक और क्षेत्र है जो यहाँ रहने वाले सभी लोगों के लिए एक बड़ा विवाद बन चूका है ।हालांकि, अधिकारियों के पास बताने के लिए एक अलग कहानी है। मेरठ के कुष्ठ जिला कुष्ठ रोग अधिकारी के द्वारा , बजट की सभी अफवाहों की उपेक्षा करते हुए कहा कि वह कुष्ठरोगी घर में रहने वाले लोगों की तरह असहाय है ।वहीं मेरठ के मुख्य चिकित्सा अधिकारी का यह कहना है की , "यह मामला उनके ज्ञान में नहीं था और वह यह सुनिश्चित करेंगे की सभी सुनिश्चित सुविधा के लिए एक निश्चित राशि आवंटित की जाए और इस संबंध में त्वरित कार्रवाई की जाएगी।
कुष्ठ विकृति को पुनर्वास और सामाजिक अस्थिरता का मुख्य कारण माना गया है। विकृति की रोकथाम को कुष्ठ नियंत्रण कार्यक्रम के सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्यों में से एक माना जाता है। कुष्ठ नियंत्रण कार्यक्रम के मूल्यांकन में नए मापदंडों और उनके संभावित अनुप्रयोग को विकसित करने का प्रयास किया गया है। स्वास्थ्य विभाग ने राज्य के स्थानिक जिलों से कुष्ठ रोग को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए एक केंद्रित उन्मूलन कार्यक्रम की योजना बनाई है। चूंकि मल्टी-ड्रग थेरेपी(multi—drug therapy) के साथ यह बीमारी ठीक हो सकती है , और 1995 से दुनिया के हर मरीज को दवाएं मुफ्त दी जा रही हैं।
अज्ञानता और मिथक
रोग को खत्म करने के लिए सबसे बड़ी शेष बाधा अज्ञानता और मिथक है। लोगों को पता नहीं है कि दवाएं उपलब्ध हैं, और लोग उपचार लेने से डरते हैं। भारत में, जहाँ दुनिया के 60 प्रतिशत कुष्ठ रोगी रहते हैं, कुष्ठ रोग को वंशानुगत या भगवान के अभिशाप के रूप में देखा गया है।जो लोग बीमारी से पीड़ित हैं, वे न तो शादी कर पाते हैं और न ही परिवार बना पाते है । उन्हें अस्थिर करने के लिए मजबूर किया जाता है और इस कारण से लोग शुरुआती लक्षणों को छिपाते हैं और परामर्श नहीं करते हैं जिसके परिणामस्वरूप अपरिहार्य विकृति और दुखदायी हो जाती है। कुष्ठ रोग का कलंक इस रोग से प्रभावित लोगो के शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और आर्थिक कल्याण को प्रभावित करता है ।
आप अपना योगदान कैसे दे सकते है?
• कुष्ट रोग के बारे में खुद को शिक्षित करें और दोस्तों और परिवार के साथ साझा करें कि कुष्ठ एक साध्य बीमारी है।
• कुष्ठ रोग के बारे में खुद को और दूसरों को शिक्षित करने से कुष्ठ रोग की एक सकारात्मक छवि को चित्रित करने और आपके समुदाय में इसके बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद मिलती है।
• कुष्ठ रोग की सकारात्मक छवि को बढ़ावा देने से विकलांगता के बजाय प्रभावित व्यक्तियों की क्षमताओं पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है।
संदर्भ:-
1. https://bit.ly/2GyGPbO
2. https://bit.ly/2L8epLA
3. https://bit.ly/2ZrsR4p
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Leprosy
5. https://www.cdc.gov/features/world-leprosy-day/index.html
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