अक्सर पौराणिक कथाओं में हमें ऐसे पशुओं का उल्लेख मिलता है, जिनकी उपस्थिति वास्तविक जगत में शायद असंभव है। कामधेनु, नरसिंह, गरूड़, हनुमान, यूनान के सेंटूर और मिस्र के स्फिंक्स आदि कुछ ऐसे ही अद्भूत जीव हैं। महाभारत में भी कई ऐसे विचित्र जीवों का वर्णन किया गया है, आज हम इन्हीं जीवों में से एक नवगुंजर के विषय में उल्लेख कर रहे हैं। नवगुंजर का जिक्र मात्र उड़ीसा की महाभारत में देखने को मिलता है, अन्यत्र महाभारत के किसी भी संस्करण में इसका कोई उल्लेख नहीं किया गया है। यहां तक कि महाभारत के प्रमुख क्षेत्र हस्तिनापुर और इसके आस पास के इलाके के लोग इस जीव से अनभिज्ञ हैं।
सरला दास द्वारा लिखित महाभारत में अर्जुन निर्वासन के दौरान मणिभद्र की पहाड़ी में तपस्या कर रहे थे, तभी वे एक अनोखे जीव को देखते हैं। जिसका पूरा शरीर नौ पशुओं से मिलकर बना था अर्थात सिर- मूर्गे का, गर्दन-मौर की, कूबड़- बैल का, कमर-शेर की, तीन पैर क्रमशः हाथी, बाघ और घोड़े के तथा चौथा मानव का हाथ था, जिसमें कमल का फूल पकड़ा हुआ है, इस पशु की पूंछ सांप की थी। प्रारंभ में, अर्जुन इसे देखकर घबरा गये और इसे मारने के लिए धनूष उठा लिया। किंतु कुछ क्षण बाद उन्हें एहसास हुआ कि इस प्रकार का विचित्र जीव इस पृथ्वी में कैसे जीवित रह सकता है। जब वे इस पशु के हाथ में कमल देखते हैं, तब उन्हें आभास होता है कि यह और कोई नहीं वरन् भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण हैं तथा वे झूककर उनसे आर्शीवाद लेते हैं। फिर भगवान श्री कृष्ण प्रकट होकर बताते हैं कि भगवद्गीता के विराटस्वरूप के समान ही नवगुंजर भी उनका ही एक स्वरूप है।
जगन्नाथ मंदिर, पुरी के उत्तरी भाग में नवगुंजर और अर्जुन के चित्र को उकेरा गया है। गंजिफा प्लेइंग कार्ड में भी नवगुंजर का उल्लेख देखने को मिलता है इसमें राजा के कार्ड में नवगुंजर का तथा मंत्री के कार्ड में अर्जुन का चित्र उकेरा गया है। उड़ीसा के कुछ हिस्सों में विशेषकर पुरी जिले में इस सेट को नवगुंजर के नाम से जाना जाता है।
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