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कभी हंसी मजाक के लिए शुरू हुई रैंगिंग आज कई विद्यार्थियों की जान पर आ गई है। रैगिंग आमतौर पर सीनियर विद्यार्थियों द्वारा कॉलेज में आए नए विद्यार्थी से परिचय लेने की प्रक्रिया हुआ करती थी। लेकिन अब इसके तौर तरीके इतने बदल गए हैं कि इसके कारण कई विद्यार्थी अपनी जान तक गंवा चुके हैं। इसलिए अब रैगिंग के नाम से ही डर लगने लगता है। वर्तमान में मेरठ में कई कॉलेज और शैक्षणिक संस्थान खुल चुकें हैं, लेकिन क्या वहाँ "रैगिंग" को नियंत्रित करने के लिए कोई कदम उठाया गया है। अप्रैल के इस नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत के साथ, मेरठ के कॉलेजों और शैक्षणिक संस्थानों पर एंटी रैगिंग कानून के नियमों की समीक्षा करना महत्वपूर्ण है।
हाल ही में मेरठ के एक संस्थान में कॉलेज के एलएलबी के तृतीय वर्ष के छात्रों द्वारा प्रथम वर्ष की छात्रा की कॉलेज की बस में रैगिंग ली गयी। वैसे तो छात्रा द्वारा इस रैगिंग की पुलिस में शिकायत दर्ज कर दी गई थी। वहीं आगरा और मेरठ के कई मेडिकल कॉलेजों में भी तृतीय वर्ष के छात्रों द्वारा जूनियर छात्रों से रैगिंग करने के मामले भी सामने आए हैं। कई छात्र डर और पीड़ा के कारण रैगिंग की शिकायत दर्ज नहीं करते हैं। सर्वोच्च न्यायालय (एससी) द्वारा किए गए एक अध्ययन में पूरे भारत में कई उच्च शैक्षणिक संस्थानों में रैगिंग के बारे में चौंकाने वाले खुलासे सामने आए हैं। जिसमें बताया गया कि देश के विभिन्न हिस्सों से 10,000 चुने गए छात्रों के आधार पर रैगिंग से पीड़ित 84% से अधिक छात्र अपने साथ हुई रैगिंग की शिकायत दर्ज नहीं करते हैं।
रैगिंग के खिलाफ शिकायत ना दर्ज कराने के पीछे के कई कारण हैं, जैसे गंभीर रैगिंग से हुए शारीरिक और मानसिक आघात के कारण भी छात्र इसकी शिकायत नहीं कर पाते हैं; न्याय प्रणाली पर विश्वास की कमी की वजह से भी छात्र चुप रहना ही बेहतर समझते हैं; कई छात्र रैगिंग को दुनिया की कठोर परिस्थितियों के लिए तैयार करने हेतु आवश्यक मानते हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित निष्कर्षों के अनुसार, लगभग 33% छात्र अपने वरिष्ठ छात्रों द्वारा की जाने वाली रैगिंग को आनंदमय मानते हैं, वहीं 40% का मानना है कि इसके अनुभव के बाद उन्हें एक मजबूत दोस्ती बनाने में मदद मिली। भारत भर में 37 संस्थानों से सर्वेक्षण में आए लगभग 62% छात्रों का कहना था कि जिन्होंने उनकी प्रथम वर्ष में रैगिंग ली थी, उन्होंने ही आने वाले वर्षों में पाठ्यक्रम संबंधी कार्यों में उनकी मदद की थी। वहीं कई मामलों में हल्की सी धमकी या चिढ़ाने के रूप में शुरू हुई रैगिंग अक्सर क्रूरतापूर्ण प्रयासों और मानसिक यातनाओं में बदल जाती है।
भारत के राष्ट्रीय एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन ने रैगिंग के कारण संकट में आने वाले छात्रों की मदद के लिए जून 2009 से ही कार्य करना शूरू कर दिया था। यदि किसी छात्र की कोई भी वरिष्ठ छात्र रैगिंग लेता है तो वे टोल फ्री नम्बर - 1800 - 180 – 5522 और ई-मेल - helpline@antiragging.in में अपनी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं। एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन के डेटाबेस के मुताबिक हेल्पलाइन ने कॉलेजों में सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करने में काफी मदद करी है। साथ ही कई मामलों में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग में उन कॉलेजों के खिलाफ शिकायत भेजी गई, जिन्होंने दोषियों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने से इंकार कर दिया था।