अपरिचित है मेरठ की भोला बियर की कहानी

मेरठ

 20-04-2019 09:00 AM
उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक

विश्व की सबसे पुरानी मदिरा सम्भवतः बियर है और इसका प्रमाण इतिहास में मेसोपोटामिया(mesopotamia) और प्राचीन मिस्र की सभ्यताओं से भी मिलता है। बियर अन्य मदिराओं की अपेक्षा काफ़ी कम समय में तैयार हो जाती है और अपेक्षाकृत सस्ती भी होती है। पर आश्चर्य कि बात ये है कि 1830 के दशक मे मेरठ में बनती थी देसी बियर जिसको लोग मिस्टर भोले बियर (Mr. Bhole beer) के नाम से जानते थे।

मेरठ मे बनती ये देसी बियर यूरोपीय सैनिकों को बहुत आकर्षित करती थी, यहाँ तक की कई ब्रिटिश और यूरोपीय अखबारों और पत्रिकाओं में इसकी प्रशंसा भी की गई थी। कैंट में ज्यादातर रम, और ब्रांडी का सेवन बियर के साथ ही होता था। कैंट के अंदर पुरुषों को भुगतान के अनुसार मदिरा का सेवन करने की अनुमति थी।परंतु इसके नकारात्मक प्रभाव ये पड़ा कि अफ़सर नशे के कारण अपने कर्तव्य नहीं निभाते थे इसलिए मेरठ कैंट में भोले बियर का सेवन प्रचलित होने लगा। मेरठ कि ये देसी बियर स्वाद मे बढ़िया, पौष्टिक तथा सेहत को नुकसान न पहुचाने वाली थी। भोले बियर का उपयोग सामान्य रूप से संतुलित पुरुषों द्वारा किया जाता था और इसके उपभोक्ताओं में बेहोशी के बहुत कम मामले सामने आए थे।

ऊपर दिया गया चित्र भोले की झाल का वर्तमान चित्र है ।

लेकिन 1839 मे ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) के डॉक्टर, जॉन मरे (John Murray) ने अपनी रिपोर्ट ‘ऑन द टोपोग्राफी ऑफ़ मेरठ’ (On the topography of Meerut) मे कैंट के अंदर इस बियर के सेवन पर रोक लगा दी और साथ ही इसके सेवन के प्रभावों पर नकारात्मक रूप से टिप्पणी भी की थी। वहीं फ़ॉलस्टफ(Falstaff) का कहना था कि

यह बियर खट्टी, अत्यधिक गैस वाली और पेट व स्वास्थ्य में विपरीत असर डालने वाली थी।

पर क्या आपने कभी सोचा कि भोला बियर के मिस्टर भोले के नाम पे ही तो भोले कि झाल का नाम नही पड़ा। हम जानते है मेरठ के पास सिसोला खुर्द नामक एक गाँव है जो अपनी मशहूर भोले कि झाल के लिए जाना जाता है। यह केवल एक सैर-सपाटे की ही जगह न होकर शहरवासियों के लिए गंगाजल और बिजली परियोजनाओं का विकल्प भी है। भोले की झाल को सलावा की झाल के नाम से भी जाना जाता है। इस नहर पर डैम भी बनाया गया है जिससे बड़े स्तर पर शहर की बिजली आपूर्ति की जा रही है। मेरठ से गुज़रती हुई ऊपरी गंगा नहर परियोजना के बारे में और अधिक आप हमारी प्रारंग की इस लिंक पर क्लिक करें

संदर्भ :-

1. https://bit.ly/2IubqL9
2. https://archive.org/details/b22274789/page/14
3. https://bit.ly/2XrLNOi
4. https://meerut.prarang.in/posts/2259/upper-ganga-canal-traversing-meerut

RECENT POST

  • आधुनिक हिंदी और उर्दू की आधार भाषा है खड़ी बोली
    ध्वनि 2- भाषायें

     28-12-2024 09:28 AM


  • नीली अर्थव्यवस्था क्या है और कैसे ये, भारत की प्रगति में योगदान दे रही है ?
    समुद्री संसाधन

     27-12-2024 09:29 AM


  • काइज़ेन को अपनाकर सफलता के शिखर पर पहुंची हैं, दुनिया की ये कुछ सबसे बड़ी कंपनियां
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     26-12-2024 09:33 AM


  • क्रिसमस पर लगाएं, यीशु मसीह के जीवन विवरणों व यूरोप में ईसाई धर्म की लोकप्रियता का पता
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     25-12-2024 09:31 AM


  • अपने परिसर में गौरवपूर्ण इतिहास को संजोए हुए हैं, मेरठ के धार्मिक स्थल
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     24-12-2024 09:26 AM


  • आइए जानें, क्या है ज़ीरो टिलेज खेती और क्यों है यह, पारंपरिक खेती से बेहतर
    भूमि प्रकार (खेतिहर व बंजर)

     23-12-2024 09:30 AM


  • आइए देखें, गोल्फ़ से जुड़े कुछ मज़ेदार और हास्यपूर्ण चलचित्र
    य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला

     22-12-2024 09:25 AM


  • मेरठ के निकट शिवालिक वन क्षेत्र में खोजा गया, 50 लाख वर्ष पुराना हाथी का जीवाश्म
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     21-12-2024 09:33 AM


  • चलिए डालते हैं, फूलों के माध्यम से, मेरठ की संस्कृति और परंपराओं पर एक झलक
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     20-12-2024 09:22 AM


  • आइए जानते हैं, भारत में कितने लोगों के पास, बंदूक रखने के लिए लाइसेंस हैं
    हथियार व खिलौने

     19-12-2024 09:24 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id