 
                                            समय - सीमा 266
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                                            रामपुर की रज़ा पुस्तकालय में एक बेशकीमती संग्रह, “तारेक्ष”(Astrolabe) मौजूद है। 1218 ई. में ‘सिराज दमिश्क’ द्वारा बनाया गया यह तारेक्ष, पुस्तकालय की पुरानी कला वस्तुओं और दुर्लभ खगोलीय उपकरणों में से एक है। कई बार लोग तारेक्ष और ग्लोब के बीच भ्रमित हो जाते हैं, तो आइए तारेक्ष के बारे में विस्तार से जाने।
तारेक्ष का उपयोग समय, सूर्य और सितारों की स्थिति से संबंधित समस्याओं को सुलझाने के लिए किया जाता रहा है। न केवल इन समस्याओं को सुलझाने के लिए अथवा इनका सर्वेक्षण, भूगोल और खगोल विज्ञान में भी किया जाता है। इसका सबसे प्रसिद्ध उपयोग नौपरिवहन (Navigation) है क्योंकि तारेक्ष का उपयोग करके आप यह निर्धारित कर सकते हैं कि एक विशिष्ट स्थान पर उस समय आकाश का एक निश्चित बिंदु कैसा दिखता है। चूँकि यह वास्तव में आकाश का एक प्रत्यक्ष मानचित्र है, यह खगोलीय समीकरणों में अत्यंत मददगार साबित होता है।
तारेक्ष का आविष्कार लगभग 200 ईसा पूर्व में किया गया था, और ग्रीक खगोल विज्ञानी हिप्पार्कस (Hipparchus) को इसके अविष्कार का श्रेय जाता है। तारेक्ष को एक खोखले डिस्क (disk) से बनाया जाता है, जिसे "मैटर (mater)" के रूप में जाना जाता है। मैटर कई समतल चादरों [जिन्हें " तिम्पाना (tympana)" या "क्लाइमेट(climate)" के रूप में भी जाना जाता है] को पकड़ सकता है। प्रत्येक तिम्पाना को एक विशिष्ट अक्षांश (latitude) के लिए बनाया होता है।
कई यूनानी विद्वानों द्वारा तारेक्ष के बारे में विस्तार से ग्रंथ और आलेख लिखे गए थे। विश्व भर में तारेक्ष का किस तरह से उपयोग किया गया, के विषय में भारत में कई ग्रंथ भी लिखी गई थी। भारत में पहली बार तारेक्ष को ‘फिरोज शाह तुगलक’ के शासन काल में पेश किया गया था और महेंद्र सूरी द्वारा तारेक्ष पर पहला संस्कृत ग्रंथ ‘यंत्र-राज’ लिखा गया था। उनके बाद में पद्मनाभ द्वारा तारेक्ष पर एक विशेष लेख ‘यंत्र-राज अधिकार’ लिखा गया था। साथ ही रामचंद्र ने तारेक्ष के बारे में विस्तार में वर्णन करते हुए ‘यंत्र-प्रकाश’ को लिखा था। सर्वप्रथम विश्वव्यापी (universal) तारेक्ष का आविष्कार इस्लामिक विद्वान अबू इशाक इब्राहिम अल-जरकावी ने किया था। इस तारेक्ष का उपयोग एक विशिष्ट अक्षांश के बजाए विश्व भर के किसी भी स्थान पर किया जा सकता था। वहीं नाविक तारेक्ष का उपयोग ध्रुव तारे या सूर्य की ऊंचाई से जहाज के अक्षांश को निर्धारित करने में मदद करने के लिए किया गया था। इसकी तुलना में खगोलीय ग्लोब एक प्रारंभिक खगोलीय उपकरण है, जो आकाश और तारों का एक यथार्थवादी दृश्य देता है और खगोलीय गति का अनुकरण कर सकता है, लेकिन इसके कुछ नुकसान भी हैं जैसे कि निर्माण, परिवहन और माप को लेने में कठिनाई होती है।
संदर्भ :-
1. https://www.universetoday.com/41624/astrolabe/
2. https://www.researchgate.net/publication/266065015_Early_history_of_the_astrolabe_in_India
3. https://brill.com/abstract/journals/me/23/1-5/article-p124_124.xml
4. http://razalibrary.gov.in/AstronomicalInstruments.html
5. https://www.rmg.co.uk/discover/explore/what-mariners-astrolabe
 
                                         
                                         
                                         
                                         
                                        