जहाँ बॉलीवुड आज एक उत्कृष्ट स्तर पर पहुंच चुका है, वहीं कई क्षेत्रीय फिल्म उद्योगों ने भी अपनी बनाई जाने वाली फिल्मों की गुणवत्ता और प्रकार में काफी विकास कर लिया है और साथ ही उन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान भी मिल रही है। मेरठ का एक छोटा-सा फिल्म उद्योग मॉलीवुड, भी समय के साथ-साथ फलता-फूलता जा रहा है, लेकिन भारत के अन्य क्षेत्रीय फिल्म उद्योगों, जैसे बंगाली, या तेलगु की फिल्मों के स्तर पर पहुंचने के लिए इसे काफी लंबा रास्ता तय करना है।
भारत विश्व के उन कुछ देशों में से एक है जहाँ हॉलीवुड का सर्वोच्च स्थान नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि फिल्म उद्योग अपने दर्शकों के लिए भारतीय संवेदनाओं और सांस्कृतिक जटिलताओं को केंद्र में रखते हुए फिल्में बनाते हैं। वहीं अब बात करें मेरठ की तो मेरठ का एक अपना सिनेमा उद्योग है, जिसे वहां के लोगों ने ‘मॉलीवुड’ या देहाती सिनेमा इंडस्ट्री नाम दिया हुआ है। वहीं यहां पर बनने वाली फिल्में सिनेमाघरों में नहीं बल्कि सीडी के माध्यम से प्रसारित की जाती है, और इन फिल्मों की एक सीडी 25 से 40 रूपये में दर्शकों को उपलब्ध कराई जाती थी।
वहीं बिना सिनेमाघरों में रिलीज हुए भी मॉलीवुड की तमाम फिल्मों ने लाखों रुपये का कारोबार किया है। साथ ही इन फिल्मों का स्थानीय लोगों में लोकप्रिय बनने के पीछे का कारण उनके द्वारा बोली जाने वाली भाषा, उनके गांव और स्थानीय हीरो-हीरोइन का उपयोग किया जाना है। ठेठ खड़ी बोली यानी हरियाणवी में बनने वाली यहां की फिल्में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों के अलावा दिल्ली के बाहरी इलाकों और राजस्थान के कुछ शहरों के दर्शकों के बीच भी काफी लोकप्रिय हैं।
2006 में आउटलुक मैगजीन की एक रिपोर्ट के अनुसार, बाजार विशेषज्ञों का यह मानना है, चूंकि ये फिल्में हिंदी फिल्मों की तरह सिनेमाघरों में रिलीज नहीं होतीं हैं, इसलिए इनसे होने वाली आय का सटीक अंदाजा लगा पाना मुश्किल है, लेकिन ये फिल्में तकरीबन 100 करोड़ रुपये के आसपास की कमाई कर लेती हैं। वहीं 2007 में दैनिक जागरण में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि मॉलीवुड का कारोबार बढ़कर 100 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है और टेक्नीशियन और डिस्ट्रीब्यूशन से जुड़े लोगों को मिलाकर लगभग 5000 लोग इस इंडस्ट्री से जुड़े हुए हैं। प्रत्येक वर्ष लगभग 300 फिल्में रिलीज होती हैं।
वर्ष 2004 में “धाकड़ छोरा” नामक एक फिल्म रिलीज हुई थी, यह एक भारतीय हरियाणवी फिल्म है, जिसमें मुख्य भूमिका में उत्तर कुमार एवं सुमन नेगी हैं और इसके निर्देशक दिनेश चौधरी हैं। लगभग चार लाख की लागत में बनी इस फिल्म ने करोडों रुपये का कारोबार किया। मॉलीवुड में आज भी ये फिल्म काफी प्रसिद्ध है और अपनी भव्य कमाई की वजह से इसे मॉलीवुड में बॉलीवुड की फिल्म शोले का भी खिताब मिला हुआ है। वहीं इसके हीरो उत्तर कुमार और हीरोइन सुमन नेगी स्थानीय युवक-युवतियों के आदर्श बन गए थे। उत्तर कुमार मॉलीवुड के सलमान खान के रूप में चर्चित हैं और सुमन को इंडस्ट्री की ऐश्वर्या राय कहा जाता है।
वहीं इस फिल्म को शादियों में उपयोग होने वाले हैंडीकैम पर शूट किया गया था। वहीं इस फिल्म के आने के बाद फिल्म की तकनिकों में काफी सुधार होने लगा था। इसके बाद आई कई फिल्मों जैसे, कर्मवीर, ऑपरेशन मजनू, बुद्धुराम, पारो तेरे प्यार में, मेरी लाड्डो, रामगढ़ की बसंती की शूटिंग में अच्छी तकनीक वाले वीडियो कैमरों का प्रयोग किया गया। एक समय में जहाँ पोस्ट प्रोडक्शन का काम केवल दिल्ली और दूसरे शहरों में होता था, वो भी मेरठ में ही होने लगा। मेरठ में कई सारे स्टूडियो खुल गए जहां इन सीडी फिल्मों की एडिटिंग से लेकर डबिंग और बैकग्राउंड म्यूजिक देना शुरू हो गया था।
इन फिल्मों की शूटिंग पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गांवों से निकलकर उत्तराखंड के तमाम शहरों में होने लगी। शूटिंग में सहयोग के लिए मुंबई और दिल्ली से तकनीशियन बुलाए जाने लगे। गीत-संगीत और कहानी के लिहाज से इन फिल्मों का स्तर सुधरने लगा था। लेकिन मॉलीवुड की सफलता कुछ ही साल तक बरकरार रही वर्ष 2007-08 तक इसने सफलता का जो स्वाद चखा वह वर्ष 2009 तक आते-आते रूखा हो गया। जो सीडी में लगने वाली पाइरेसी के कारण हुआ था, पाइरेसी की वजह से मॉलीवुड में फिल्म निर्माण का कारोबार लगभग रुक सा गया था। लेकिन अंतः फिल्मों के निर्माण को लेकर तैयारियां शुरू की गई और उन्हें सिंगल स्क्रीन थियेटरों में रिलीज किया गया।
संदर्भ :-
1. https://thewire.in/culture/meerut-film-industry-mollywood
2. https://bit.ly/2WutN5L
3. https://theculturetrip.com/asia/india/articles/the-rise-of-regional-cinema-in-india/
4. https://meerut.prarang.in/posts/1892/postname
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