प्रत्येक वर्ष 23 मार्च को शहीद दिवस उन तीन स्वतंत्रता सेनानियों की याद में मनाया जाता है, जिन्होंने देश के लिए अपना बलिदान दिया था। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 23 मार्च 1931 को अंग्रेजों द्वारा लाहौर जेल में फांसी की सजा दी गई थी। ब्रिटिश भारत में पंजाब में 28 सितंबर 1907 को जन्मे, भगत सिंह एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे, इन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। तो आइए इस शहीद दिवस पर भारत के युवा क्रांतिकारी भगत सिंह जी के विचारों के बारे में बताते हैं, जिनसे आज के युवा भी प्रेरणा ले सकते हैं।
1) “राख का हर कण मेरी गर्मी से गतिमान है। मैं एक ऐसा पागल हूं जो जेल में भी आजाद है।”
2) “किसी को क्रांति शब्द की व्याख्या शाब्दिक अर्थ में नहीं करनी चाहिए। जो लोग इस शब्द का उपयोग या दुरुपयोग करते हैं, उनके फायदे के हिसाब से इसे अलग अर्थ और मतलब दिए जाते हैं। शोषण करने वाली स्थापित शाखाओं के लिए यह खून से सना हुआ खौफ का अहसास कराता है। क्रांतिकारियों के लिए यह एक पवित्र वाक्यांश है।”
3) “मैं इस बात पर जोर देता हूं कि मैं महत्वाकांक्षा, उम्मीद और जिंदगी के प्रति आकर्षण से भरा हूं। लेकिन मैं जरूरत पड़ने पर ये सब त्याग सकता हूं और वही सच्चा बलिदान है। ये चीजें कभी भी मनुष्य के रास्ते में बाधा नहीं बन सकती, बशर्ते वह एक आदमी होना चाहिए। आने वाले भविष्य में आपके पास इसका व्यावहारिक प्रमाण होगा।”
4) “अगर बहरों को सुनाना है तो आवाज को बहुत तेज होना चाहिए। जब हमने बम गिराया तो हमारा मकसद किसी को मारना नहीं था। हमने अंग्रेज हुकूमत पर बम गिराया था। अंग्रेजों को भारत छोड़ना होगा और उसे स्वतंत्र करना होगा।”
5) “प्रेमी, पागल और कवि एक ही मिट्टी के बने होते हैं।”
6) “जो भी विकास के लिए खड़ा है उसे हर रूढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी, उसमें अविश्वास करना होगा और उसे चुनौती देनी होगी”
7) “क्रांति बम और पिस्तौल से नहीं वरन मानव के मस्तिष्क और विचारों से उत्पन्न होती है।”
8) “जिंदगी तो सिर्फ अपने ही दम पर जी जाती है, दूसरों के कंधे पर तो सिर्फ जनाजे उठाए जाते हैं।”
9) “जरूरी नहीं था कि क्रांति में अभिशप्त संघर्ष शामिल हो। यह बम और पिस्तौल का पंथ नहीं था।”
10) “चीजें जैसी हैं, आमतौर पर लोग उसके आदी हो जाते हैं और बदलाव के विचार से ही कांपने लगते हैं। हमें इसी निष्क्रियता को क्रांतिकारी भावना से बदलने की जरूरत है।”
11) “अहिंसा तो आत्मबल के सिद्धांत का समर्थन है, जिसमें प्रतिद्वंद्वी पर जीत की आशा में कष्ट सहा जाता है। लेकिन तब क्या हो, जब ये कोशिश नाकाम हो जाए? तभी हमें आत्मबल को शारीरिक बल से जोड़ने की जरूरत पड़ती है ताकि हम अत्याचारी और क्रूर दुश्मन के रहमोकरम निर्भर न रहें।”
12) “किसी भी कीमत पर बल का प्रयोग न करना काल्पनिक आदर्श है और नया आंदोलन जो देश में शुरू हुआ है और जिसके आरंभ की हम चेतावनी दे चुके हैं, वो गुरुगोविंद सिंह और शिवाजी, कमाल पाशा और राजा खान, वाशिंगटन और गैरीबाल्डी, लफायेते और लेनिन के आदर्शों से प्रेरित है।”
13) “इंसान तभी कुछ करता है जब वो अपने काम के औचित्य को लेकर सुनिश्र्चित होता है, जैसे कि हम विधानसभा में बम फेंकने को लेकर थे।”
14) “व्यक्तियों को कुचलकर, वे विचारों को नहीं मार सकते।”
15) “कानून की पवित्रता तभी तक बनी रह सकती है, जब तक वो लोगों की इच्छा की अभिव्यक्ति करें।”
16) “क्रांति मानव जाति का अपरिहार्य हक है। आजादी सबकी कभी न खत्म होने वाला जन्मसिद्ध अधिकार है। श्रम समाज का वास्तविक निर्वाहक है।”
17) “निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम लक्षण हैं।”
18) “वे मेरा कत्ल कर सकते हैं, मेरे विचारों का नहीं। वे मेरे शरीर को कुचल सकते हैं लेकिन मेरे जज्बे को नहीं।”
संदर्भ :-
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