होली का त्यौहार केवल रंगों तक सीमित नहीं है, इस त्यौहार की जड़े बुराई पर अच्छाई की जीत के जश्न पर आधारित है। साथ ही यह प्राचीन हिंदू धार्मिक विश्वास को दर्शाता है कि भगवान के प्रति अगाध आस्था और भक्ति सभी को मोक्ष दिला सकती है। वहीं अन्य सभी हिंदू त्यौहारों की तरह, होली का त्यौहार कई पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है। हालांकि होली की सटीक उत्पत्ति ज्ञात नहीं है, लेकिन कई इतिहासकारों का दावा है कि होली का त्यौहार आर्यों द्वारा ही शुरू किया गया है। वहीं होली से जुड़ी कुछ सामान्य किंवदंतियाँ निम्न हैं:
प्रहलाद और होलिका की कथा:
प्राचीन काल में अत्याचारी राक्षसराज हिरण्यकश्यप ने स्वर्ग, पृथ्वी और अधोलोक की तीनों दुनिया पर विजय प्राप्त कर ली थी और इस तरह वो काफी घमंडी हो गया था। गर्व में डूबे हुए हिरण्यकश्यप को यह लगने लगा कि वह भगवान विष्णु को भी पराजय कर सकता है और इस विचार में उसने अपने राज्य के लोगों को विष्णु भगवान की पूजा करने से मना कर दिया और अपनी (हिरण्यकश्यप) आराधना करने के लिए विवश कर दिया। लेकिन उनका छोटा बेटा प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था, इसलिए उसने इस आदेश का पालन करने से इंकार कर दिया। इससे हिरण्यकश्यप काफी क्रोधित हो गया और उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि प्रहलाद को पहाड़ से नीचे फेंक कर मार दिया जाएं। प्रहलाद द्वारा विष्णु भगवान् की प्रार्थना करना जारी रहा और उसने खुद को भगवान विष्णु के समक्ष छोड़ दिया, भगवान विष्णु अंतिम क्षण में प्रकट हुए और प्रहलाद को बचा लिया, उपरोक्त चित्र में प्रहलाद को भगवान् विष्णु की आराधना करते हुए दिखाया है जब प्रह्लाद अग्नि से घिर गये थे।
इसके बाद परेशान होकर हिरण्यकश्यप ने अपनी राक्षसी बहन होलिका से मदद मांगी, होलिका को किसी भी प्रकार की अग्नि भस्म नहीं कर सकती थी, ऐसा वरदान प्राप्त था। हिरण्यकश्यप द्वारा प्रहलाद को होलिका के साथ आग में भेजा गया, परंतु उस वक्त ये दोनों भाई-बहन ये भूल गए थे कि होलिका अग्नि से बिना भस्म हुए तभी बहार आ सकती थी, यदि वो अग्नि में अकेले प्रवेश करें। इस प्रकार होलिका तो अग्नि में भस्म हो गई और प्रहलाद को भगवान विष्णु द्वारा फिर से बचा लिया गया। तब से आज भी लोग अग्नि जला कर होलिका दहन मनाते हैं।
राधा और कृष्ण की कथा:
इस कथा में राधा और कृष्ण के अमर प्रेम को दर्शाया गया है। एक बार बालपन में भगवान कृष्ण ने अपनी माँ यशोदा से अपने सांवले रंग के बारे में शिकायत की और राधा का गोरा रंग होने के पीछे का कारण पूछा। और इस पर माँ यशोदा ने भगवान कृष्ण को राधा के चेहरे पर अपना पसंदीदा रंग लगाने की सलाह दी और बोला कि इससे राधा का रंग भी बदल जाएगा। इसके बाद भगवान कृष्ण ने राधा और गोपियों पर रंग डाल दिया। इस प्रकार रंग के त्यौहार होली को उत्सव के रुप में मनाया जाने लगा।
कामदेव की कथा:
होली के त्यौहार से भगवान शिव का गहन संबंध है, ये तब की बात है जब देवी सती के मृत्यु उपरांत भगवान शिव तपस्या में लीन हो गए थे, लेकिन इससे पृथ्वी पर असंतुलन पैदा हो गया था। इस बीच देवी सती का पुनर्जन्म हुआ और उन्होंने शिव को जगाने और उनका दिल जीतने के लिए अनेक प्रयास करें, पर सारे विफल रहें। अंतः उन्होंने कामदेव से मदद मांगी और कामदेव द्वारा शिव पर पुष्पबाण चलाया गया, जिससे उनकी तपस्या भंग हो गई। तपस्या भंग होने से भगवान शिव काफी क्रोधित हो गए और उनकी तीसरी आंख खूल गई, जिससे अग्नि बाहर आई और कामदेव उसमे जलकर भस्म हो गये। बाद में जब भगवान शिव का क्रोध शांत हुआ तो उन्होंने अपनी भूल को समझा और कामदेव को दूसरा जीवन प्रदान किया और अदृश्य रूप में अमर रहने का वरदान दिया। इसलिए कई लोग होली का उत्सव कामदेव के बलिदान के लिए मनाते हैं।
संदर्भ :-
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