बौद्धों धर्म के लोगों को चमड़े के जूते पहनने से प्रतिबंधित क्यों किया गया?

मेरठ

 19-03-2019 07:04 AM
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

तीसरी-चौथी शताब्दी ईस्वी के दौरान की कई बौद्ध मूर्तियों से यह स्पष्ट होता है कि बौद्ध द्वारा पहनी जाने वाली खड़ाऊ काफी साधारण थी, परंतु इस साधारण खड़ाऊ का भी धार्मिक अर्थ है। ये काफी साधारण प्रकार की थी, जिसमें तला और एक पट्टी जो अंगुठे और पैर की बड़ी उंगली के बीच से पैर के ऊपरी भाग से होकर गुजरती है। तो आइए जानते हैं बौद्ध काल के दौरान के विभिन्न खड़ाऊ के बारे में।

बुद्धा की मुर्तियों में देखी जाने वाली खड़ाऊ को लगभग दो सहस्राब्दी बाद महात्मा गांधी द्वारा थोड़े विभिन्न स्वरूप में विकसित किया गया था। वर्तमान में हमें उस समय के लोगों द्वारा पहनी जाने वाली चप्पलों के विषय में मठ के नियमों और प्रतिबंधों से पता चलता है, खासकर बौद्ध और जैन धर्मों की तपस्वी प्रणाली से। जैन और बौद्ध पंथ से संबंधित भिक्षुओं को पैरों में जुते या चपल पहनना वर्जित था, जिसका मुख्य कारण यह था कि गायों और अन्य जानवरों की खाल से उत्पादित चमड़े की इन चपलों का उपयोग बौद्ध और जैन धर्मों में अनुचित माना था। वहीं किसी कठोर धातु से बने जुते-चपलों के निचे अक्सर कई कीड़े और अन्य छोटे जीव आ जाते थे, जिससे अहिंसा के नियमों का उल्लंघन होता था। साथ ही यह भी माना जाता था कि बिना जुतों के चलने वाला व्यक्ति कांटों, पत्थरों और सड़कों पर अन्य बाधाओं को ध्यान से देख कर चलेगा, जिससे उसे छोटे जीवों का पता लगाने में आसानी होगी। केवल उन भिक्षुओं को जो किसी गंभीर बीमारी, चोट या खराब मौसम से ग्रस्त हों के लिए जुते पहनने की अनुमति थी।

बौद्ध ग्रन्थ “महावग्ग” से यह स्पष्ट होता है कि प्रारंभिक काल के दौरान लोगों द्वारा अक्सर विभिन्न जानवरों की खाल का इस्तेमाल कपड़ों के लिए या शयन पर बिछाने के लिए या सोने के लिए किया जाता था। चूंकि एक जीवित प्राणी को उसके जीवन से वंचित करना अपराध होता है, इसलिए बुद्ध ने बौद्ध भिक्षुओं के लिए खाल और खाल से निर्मित वस्तुओं के उपयोग पर रोक लगा दी थी। वहीं जैन और बौद्ध भिक्षुओं और मठवासिनी को आधुनिक पोशाक या जुते पहनने की अनुमति नहीं थी, उन्हें साधारण जीवन व्यतीत करने की सलाह दी गई थी। क्योंकि बौद्ध और जैन शिक्षाओं के मूल सिद्धांतों के अनुसार, लालच और आकांक्षाएं दुख का प्रमुख कारण है। इसलिए उन्हें साधारण चपल-जुते और एकल तल वाले जुते पहनने की अनुमति थी।

अन्य समुदाय में उपयोग किए जाने वाले जुते, जिन्हें बौद्ध भिक्षुओं के लिए निषिद्ध किया हुआ था निम्न हैं: एड़ी का आवरण करने वाले जुते; मोकासिन; फितों वाले जुते; कपास की परत वाले जुते; रंगीन जुते, जैसे की तीतर के पंख; भेड़ और बकरियों की सींग से बने नोकदार जुते; बिच्छू की पूंछ से अलंकृत जुते और मोर के पंख से सिले हुए जुते।

वहीं एक विशिष्ट स्वच्छता प्रयोजनों के लिए ठोस या स्थिर मोज़री का उपयोग किया जाता था। जिसका वर्णन हमें बौद्ध ग्रंथों से भी मिलता है, इन मोज़री में दो पत्थर के स्लैब शामिल थे जो जमीन पर एक ही स्थान पर स्थिर रहते थे। महावग्ग में कहा गया है कि इन पादुकाओं का उपयोग बाहर ले जाने के लिए नहीं किया जाता था। वहीं बुद्ध द्वारा लकड़ी, खजूर के वृक्ष के पत्ते से बने जुते पहनना भी वर्जित था।

संदर्भ :-
1. Neubauer,Jutta Jain Feet & Footwear in Indian Culture(2000) The Bata Shoes Museum,Toronto Canada

RECENT POST

  • अपने युग से कहीं आगे थी विंध्य नवपाषाण संस्कृति
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:28 AM


  • चोपता में देखने को मिलती है प्राकृतिक सुंदरता एवं आध्यात्मिकता का अनोखा समावेश
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:29 AM


  • आइए जानें, क़ुतुब मीनार में पाए जाने वाले विभिन्न भाषाओं के शिलालेखों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:22 AM


  • जानें, बेतवा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित, हमीरपुर शहर के बारे में
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:31 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस के मौके पर दौरा करें, हार्वर्ड विश्वविद्यालय का
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:30 AM


  • जानिए, कौन से जानवर, अपने बच्चों के लिए, बनते हैं बेहतरीन शिक्षक
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, उदासियों के ज़रिए, कैसे फैलाया, गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और सच्चाई का संदेश
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:27 AM


  • जानें कैसे, शहरी व ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के बीच अंतर को पाटने का प्रयास चल रहा है
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:20 AM


  • जानिए क्यों, मेरठ में गन्ने से निकला बगास, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए है अहम
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:22 AM


  • हमारे सौर मंडल में, एक बौने ग्रह के रूप में, प्लूटो का क्या है महत्त्व ?
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:29 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id