पृथ्वी के निर्माण से ही वन जीवित प्राणियों का हिस्सा और खंड रहा है। प्राचीन काल से ही भारत में विशाल वन क्षेत्र है। विभिन्न धार्मिक पुस्तकों और महाकाव्यों में वनों को भूमि की मुख्य विशेषताओं में से एक के रूप में वर्णित किया गया है। भारतीय उप-महाद्वीप को विश्व के कई विभिन्न धर्मों और शासकों द्वारा शासित किया गया है। भारत के वनों ने स्थानी राजाओं की रियासतों के साथ-साथ ब्रिटिश सरकार की सम्राज्ञी को देखा है। भारत के वनों में प्राचीन काल से लेकर वर्तमान समय तक काफी परिवर्तन हुआ है।
वर्तमान समय में पौधों की 3 लाख से अधिक प्रजातियां हैं। वे रूपों और जीवन शैली की एक विस्तृत विविधता दिखाते हैं। वहीं भारत का इतिहास विकास के उत्कृष्ट उदाहरण प्रदान करता है। हालिया पुरातात्विक शोध के अनुसार, अनाज की खेती दक्षिणी एशिया में 7000 ईसा पूर्व के आसपास शुरू हुई थी। आज जैसे मनुष्यों द्वारा वनों का दोहन होता आ रहा है, प्राचीन काल में लोग वनों के गुण गाते थे और वे पेड़ों को अपने भगवान के रूप में पूजते थे। विष्णु पुराण में भी भारत में मौजूद वन का उल्लेख है। बृहद आरण्यक उपनिषद में मनुष्य की तुलना एक पेड़ से की गई है। जिसके बाल पत्ते हैं और जिसकी त्वचा पेड़ की बाहरी छाल है। वहीं स्वयं भगवद् गीता में बरगद के पेड़ का एक विशेष स्थान है।
पेड़, पौधों और वन्य जीवन का समुदाय पर पड़ने वाले महत्व का विस्तृत विवरण हमें हिंदू धर्म के साहित्य से भी मिलता है। ऋग्वेद में जलवायु को नियंत्रित करने, बढ़ती प्रजनन क्षमता और मानव जीवन में सुधार के लिए प्रकृति की क्षमताओं पर प्रकाश डाला गया है। अथर्ववेद में पेड़ों को विभिन्न देवी-देवताओं का निवास स्थान माना गया है।
भारत और उसमें स्थित लोगों ने कई शासकों का सामना किया है, जिनमें से कुछ ने हरियाली में सुधार किया था और कुछ ने हरियाली को नष्ट कर दिया था।
भूवैज्ञानिक युग में: पुरावनस्पति विज्ञान के साक्ष्य से यह पता चलता है कि पर्मियन काल (250 मिलियन वर्ष) में भारत में घने जंगल हुआ करते थे। रानीगंज कोयला क्षेत्र में पाए जाने वाले एक पेड़ का जीवाश्म तना लगभग 30 मीटर लंबा और 75 सेंटीमीटर व्यास के सिरे से और शीर्ष सिरे पर 35 सेंटीमीटर का है, जिसे अब कोलकाता में भारतीय संग्रहालय में रखा गया है। प्लेलेस्टोसिन युग की शुरुआत में मनुष्य का विकास लगभग दस लाख साल पहले हुआ था। उस समय भारत में राजस्थान और पंजाब के कुछ हिस्सों को छोड़कर घने जंगल पाए जाते थे।
मौर्य राजवंश: चाणक्य के प्रधान मंत्री पद पर मौर्य काल में वनों को धर्म के अध्ययन के लिए अलग रखा गया; वनोपज की आपूर्ति के लिए आरक्षित किया गया; शाही हाथियों के चरने के लिए वन अलग रखे गए; राजाओं द्वारा शिकार के लिए वनों को आरक्षित किया गया; शिकार के लिए आम लोगों के लिए वनों को खुला रखा गया और आदि रूपों में वनों को वर्गीकृत किया गया था। अशोक के राज काल में पशुओं की हत्या और वृक्षों के रोपण और संरक्षण के लिए कदम उठाए गए थे। गुप्त साम्राज्य के समाप्त होने के बाद भारत फिर से मौर्य साम्राज्य की स्थापना से पहले की स्थिति में आ गया था। भारत को कई छोटे राज्यों में विभाजित कर दिया गया था और कई युद्ध भी होने लगे थे। युद्धों में पराजित लोग मौजूद जंगलों में शरण लेने लगे और वनों का दोहन करना आरंभ करने लगे। हर नया युद्ध एक नए जंगल की ओर रूख लेने लगा।
मुगल काल: मुगलों द्वारा वन संरक्षण के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए थे, शायद इसलिए क्योंकि वे स्वयं शुष्क भूमि से आए थे और वन संरक्षण का महत्व नहीं जानते थे। केवल शेरशाह सूरी के समय में ही दिल्ली पटना हाईवे के किनारे वृक्षारोपण किया गया था। हालांकी वे वन संरक्षण की ओर इतने आकर्षित नहीं थे, परंतु उन्होंने उत्तम बगिचों का निर्माण करवाया था। सम्राट जहाँगीर द्वारा भी कश्मीर की घाटी में प्रसिद्ध चिनार के पेड़ को पेश किया था। मुगल शासन में कुछ स्थिर सरकार के तहत जल्द ही तेजी से आबादी बढ़ने लगी और जंगलों का अंधाधुंध विनाश शुरू हुआ, खासकर गंगा, यमुना, चंबल और नर्मदा जैसी महत्वपूर्ण नदियों के घाटियों के आस-पास।
ब्रिटिश काल: जहाँ मुगलों द्वारा वनों का कोई संरक्षण नहीं हुआ, वहीं ब्रिटिश काल में वनों की बहुत दुर्गति हुई। ब्रिटिश द्वारा भारतीय जंगलों को नावों और व्यापक रेलवे लाइनों को बिछाने के लिए काटना शुरू हो गया। ब्रिटिश काल में मिश्रित वनों को कुछ एकल प्रजातियों जैसे कि सागौन, साल और देवदार से प्रतिस्थापित कर दिया था। उन्होंने वनों के साथ-साथ जंगली प्रजातियों को भी मारना शुरू कर दिया। भारत में ऐसा पहली बार हुआ था क्योंकि इससे पहले भारत के किसी भी शासक ने कभी भी किसी भी प्रजाति का विनाश करने का प्रयास नहीं किया था।
वनों का हर काल में विभिन्न रूपों से उपयोग किया गया, मानव द्वारा अपनी आवश्यकता की पुर्ति के लिए जंगलों का इस्तेमाल किया गया। वन गुफाओं के निवासियों और वर्तमान पीढ़ी के लिए एक अंतिम सहारा रहा है। युद्ध और प्राकृतिक आपदाओं के समय भी वनों ने मातृ देखभाल के साथ मनुष्य का पोषण किया है। हम निम्नलिखित चरणों में प्राचीन भारत से ब्रिटिश शासन के अंत तक जंगलों के प्रमुख उपयोगों का पता लगा सकते हैं:
विभिन्न युगों में वनों का उपयोग
संदर्भ :-
1. https://bit.ly/2TGwIuc
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