इस आधुनिक दौर में जहाँ सब कुछ ऑनलाइन उपलब्ध होता है, वहाँ कई भारतीय महिलाएं आज भी मोबाइल फोन के उपयोग से वंछित हैं। तो आइए इसके पीछे के कारणों को जाने ताकि हम इस बारे में कुछ सोच सकें।
हार्वर्ड विश्वविद्यालय में जॉन एफ कैनेडी स्कूल ऑफ गवर्नमेंट के एक नए अध्ययन से यह पता चलता है कि मोबाइल फोन के व्यक्तिगत स्तर पर उपयोग के लिए भारत में 33 प्रतिशत का लिंग अंतर है जो पुरुष-महिला के बीच असमानता को और बढ़ा रहा है। इससे महिलाओं को कमाई और नेटवर्किंग के अवसरों और सूचना तक पहुंच नहीं मिल पा रही है। वहीं प्रबल सामाजिक मानक, रीति-रिवाज और व्यक्तिगत मान्यताएं ‘आर्थिक चुनौतियों’ का सामना करने वाली महिलाओं के लिए मोबाइल फोन के व्यक्तिगत स्तर पर उपयोग और उसके संचालन में अधिक बाधाएं पैदा करता है।
71% पुरुषों की तुलना में भारत में 38% से अधिक महिलाओं के पास खुद का मोबाइल फोन नहीं है। हालांकि यह आंकड़े विभिन्न सामाजिक-आर्थिक समूहों और राज्यों में व्यापक रूप से भिन्न होते हैं। लेकिन विकास के समान स्तर वाले दक्षिण एशियाई देश जैसे भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में लिंग के आधार पर मोबाइल फोन के व्यक्तिगत स्तर पर उपयोग में ‘स्पष्ट अंतर’ है, इन देशों में विश्व में सबसे ज्यादा लिंग अंतर शामिल है।
यदि मोबाइल फोन तक पहुंच में सुधार हो जाएं तो सभी समुदायों के बीच जानकारी का प्रसार बढ़ सकता है, जिसमें बाजार की कीमतें, नौकरी के अवसर और स्वास्थ्य देखभाल और वित्तीय सेवाओं पर सलाह भी शामिल हैं। महिलाएं पुरुषों के मुकाबले व्यक्तिगत रूप से मोबाइल फोन रखने की श्रेणी में पुरुषों और प्रत्येक जनसांख्यिकीय से कम से कम 10 प्रतिशत अंक से पुरुषों से पीछे हैं।
उप-जनसंख्या समूहों के बीच भिन्नताएं प्रमुख सामाजिक-जनसांख्यिकीय कारकों को उजागर करती हैं जो महिलाओं के व्यक्तिगत मोबाइल उपयोग पर बहुत बड़ा प्रभाव डालती है। उदाहरण के लिए, ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी क्षेत्रों की तुलना में अंतर अधिक रहता है। शहरी क्षेत्रों में उच्च शिक्षा प्राप्त किए हुए पुरुषों और महिलाओं के बीच 13 प्रतिशत अंक पर सबसे कम लिंग अंतर है। वहीं बिना शिक्षा प्राप्त करे हुए पुरुषों और महिलाओं के बीच ग्रामीण इलाकों में, स्वामित्व अंतर 30 प्रतिशत था, जबकि शहरी क्षेत्रों के लिए यह अंतर 39 प्रतिशत था।
वहीं शिक्षा के स्तर में अंतर मोबाइल फोन स्वामित्व की संभावना पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं, जबकि प्राथमिक और माध्यमिक स्तर की शिक्षा वाले लोगों के बीच लिंग अंतर, 33 प्रतिशत और 29 प्रतिशत था, उच्च शिक्षा वाले लोगों में 16 प्रतिशत का लिंग अंतर था। कुछ हद तक, आर्थिक रूप से विकसित राज्यों में पुरुषों के बीच मोबाइल फोन स्वामित्व की उच्च दर को देखा गया है, यह दर्शाता है कि अर्थिक स्थिति सुदृढ़ होने पर फोन को खरीद सकते हैं।
कर्नाटक और पंजाब में जहां प्रति व्यक्ति आय 132,880 रुपये और 114,561 रुपये है, वहाँ लिंग अंतर में 37 और 39 प्रतिशत अंक पाए गए हैं, जो प्रति व्यक्ति आय स्तर के समान राज्यों जैसे कि गुजरात (28) और महाराष्ट्र (29) से पीछे है। राजस्थान के उत्तरी राज्यों (45), हरियाणा (43) और उत्तर प्रदेश (40) में उच्चतम लिंग अंतर पाए जाते हैं। ये राज्य परंपरागत रूप से सबसे ज्यादा रूढ़िवादी दृष्टिकोण रखने के लिए जाने जाते हैं।
महिलाएं मोबाइल से वंछित सामाजिक दृष्टिकोण से भी रहती हैं। वर्ष 2012 में आयोजित मानव विकास सर्वेक्षण के आंकड़ों के मुताबिक, 10 साल की उम्र की लगभग 20 फीसदी लड़कियां मोबाइल फोन का उपयोग करती हैं जबकि लड़कों के आंकड़े 27 फीसदी थे। वहीं किशोरावस्था के मुकाबले युवावस्था में ज्यादा अंतर देखने को मिलता है। वहीं कई लोगों का मानना है कि मोबाइल फोन का उपयोग करने से लड़कियाँ पथभ्रष्ट हो जाती है। जिस वजह से कई माता-पिता अपनी लड़कियों को मोबाइल का उपयोग करने से रोकते हैं। वहीं अगर महिलाओं की सुरक्षा और कल्याण को ध्यानपूर्वक देखा जाए तो सामाजिक दृष्टिकोण को बदलने आवश्यकता हैं।
संदर्भ :-
1. https://bit.ly/2tVvgFC
2. https://bit.ly/2UoayKp
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