मौसम परिवर्तन के साथ प्रवासी पक्षीयों का प्रवासन प्रारंभ हो जाता है, वे अपने मूल स्थान से अनुकूलित वातावरण की ओर प्रवास करना प्रारंभ कर देते हैं। ये पक्षी सामान्यतः प्रवास भोजन, सुरक्षा और उपयुक्त वातावरण की तलाश में करते हैं। जिसमें कई कई मीलों की दूरी भी तय करते हैं। यह यात्रा दैनिक भी हो सकती है तो जीवन में मात्र एक बार भी। प्रवास यात्रा भटकना नहीं वरन् आंतरिक प्रेरणावश की जाने वाली यात्राएं होती हैं। प्रवासन यात्राएं वे होती हैं जिनमें जीव वापस उसी स्थान पर आता है जहां से उसने यात्रा प्रारंभ की थी।
प्रवासी पक्षियों का उल्लेख आज से नहीं वरन् हमारे प्राचीन वैदिक ग्रन्थों एवं महाकाव्यों (जैसे-महाभारत, रामायण आदि) में भी देखने को मिलता है साथ ही कालीदास, जयदेव, भवभूति, चरक, सुश्रुत के काव्यों में भी प्रवासी पक्षियों का उल्लेख किया गया है। इन ग्रन्थो पर प्रवासी पक्षियों से संबंधित वर्णन वर्तमान शोध और अनुसंधानों के परिणाम से पूर्णतः मेल खाते हैं। प्रवासी पक्षियों का उल्लेख भारतीय ऐतिहासिक ग्रन्थ ही नहीं वरन् विश्व के अन्य प्राचीन ग्रंथों में भी देखने को मिलता है। आज से लगभग दो हजार वर्ष पूर्व अरस्तू (यूनानी लेखक) ने जंतुओं का इतिहास नामक अपनी पुस्तक में पक्षियों के नियमित प्रवासन का उल्लेख किया है।
प्राचीन काल में लोंगों ने प्राकृतिक जन जीवन में विशेष रूचि ली किंतु मध्य युग तक इसके प्रति लोगों की उदासीनता बढ़ गयी। किंतु इनके जीवन पर सूक्ष्म मात्रा में ही सही, पर अध्ययन और लेखन जारी रहा। उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी में वैज्ञानिक पक्षियों की प्रवास यात्राओं पर विशेष रूचि लेने लगे। इसका कारण यह भी था कि अब तक इन्होंने अपने अध्ययन हेतु आवश्यक साधन जुटा लिये थे।
वर्तमान समय में भी इन प्रवासी पक्षियों पर अध्ययन जारी है, किंतु परिणाम सकारात्मक देखने को नहीं मिल रहे हैं, मौसम परिवर्तन प्रवासी पक्षियों के जीवन को कठिन बना रहा है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है यदि परिस्थितियां ऐसी ही बनी रही तो इन पक्षियों का जीवन संकट में आ सकता है। पारिस्थितिक असंतुलन के कारण 84 प्रतिशत पक्षियों की प्रजातियों (जैसे-यूरोप का चितकबरा फ्लाईकैचर, उप-सहारा अफ्रीका का विंटर्स, साइबेरिया की सारस आदि) को "प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण सम्मेलन" के तहत खतरे की सूची में सम्मिलित कर दिया गया है।
पिछले 50 वर्षों से दक्षिण यूरोप से उत्तरी यूरोप की ओर पलायन करने वाली 117 प्रवासी पक्षियों की प्रजातियों पर मिलन विश्वविद्यालय द्वारा अध्ययन किया गया। इस शोध में इन्होंने पाया कि वसंत ऋतु के आगमन में परिवर्तन हो रहा है, जिस कारण पक्षी कभी अपने मूल स्थान पर जल्दी वापस आ जाते हैं, जिससे इन्हें प्रतिकूल मौसम और खराब खाद्य आपूर्ति का सामना करना पड़ जाता है, परिणामतः इनकी स्थिति संवेदनशील बन रही है। इसके विपरित यदि वे देर से वापस आते हैं तो उन्हें अपने साथियों और क्षेत्रों के लिए प्रतिस्पर्धा करनी पड़ जाती है।
हस्तिनापुर के वन्यजीव अभयारण्य की आद्रभूमि में ‘आद्रभूमि दिवस’ के दिन पक्षी समारोह आयोजित किया गया जिसमें पक्षी प्रेमियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। यहां देश विदेश से आये प्रवासी पक्षियों का जमावड़ा देखने को मिला। किंतु जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में भी छोटे पक्षियों (ग्रेनशंक, कर्ल सैंडपाइपर) और बत्तख (फेरुगिनस, रेड-क्रेस्टेड पोचर्ड) जैसे प्रवासी पक्षियों की संख्या में भारी गिरावट आयी है। आर्द्रभूमि में कमी और व्यापक शिकार इसके प्रमुख कारण माने जा रहे हैं।
विश्व वन्यजीव कोष (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) के साथ मिलकर वन विभाग ने मेरठ के हस्तिनापुर क्षेत्र के ‘भिकुंड आद्रभूमि’ में पक्षी महोत्सव का आयोजन कराया, जिसमें दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों से लगभग 250 पक्षी विशेषज्ञों के साथ अन्य सभी आयु वर्ग के पक्षी प्रेमियों ने भाग लिया। यहां कुल मिलाकर, 58 प्रजातियों के 1,673 पक्षियों को देखा गया, जिनमें ग्रीलैग गूज, बार-हेडेड गूज, रडी शेल्डक, गैडवाल, यूरेशियन क्रेन आदि शामिल थे।
हाल ही में संपन्न पक्षी गणना में, बिजनौर में गंगा नदी के आर्द्रभूमि और बांध क्षेत्र में 62 प्रजातियों के कुल 19,000 पक्षी पाए गए थे। यह पहली बार है जब गंगा बैराज से सटी आद्रभूमि में पक्षी गणना की गई है। इसमें कुछ लुप्तप्राय प्रजातियों जैसे कि चित्रित सारस और क्रेन सहित अन्य 50 से अधिक पक्षियों के झुंड देखे गये थे। लेकिन दुर्भाग्य से हैदरपुर आर्द्रभूमि को अब तक एक अभयारण्य के रूप में विकसित नहीं किया गया है। यदि इसे पक्षियों के अनुकूल बनाया जाता है, तो इनकी संख्या तेजी से बढ़ेगी और यह क्षेत्र पड़ोसी क्षेत्रों के पक्षियों को भी आकर्षित करेगा।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2NKMNcV
2. https://bit.ly/2tPqolH
3. https://bit.ly/2UlVahC
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