एक विकसित राष्ट्र अपनी जनसंख्या के बल पर आगे बढ़ता है तो वहीं एक विकासशील राष्ट्र की कामयाबी उसकी जनसंख्या पर निर्भर करती है। विश्व की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या, भारत में निवास करती है। जो कि विश्व की कुल जनसंख्या का 17% है। संयुक्त राष्ट्र के एक अनुमान के अनुसार 2028 तक भारत की जनसंख्या चीन से भी आगे निकल जाएगी। यदि बात की जाए युवाओं की तो भारत विश्व में सबसे ज्यादा युवाओं की संख्या वाला राष्ट्र है। जिसे हम सोने पर सुहागा कह सकते हैं। किंतु वास्तव में देखा जाए युवाओं की वृद्धि दर आने वाले समय में भी यही रहने वाली है। शायद नहीं आज विभिन्न सरकारी नीतियों एवं अन्य सामाजिक कारणों से भारत की जनसंख्या नियंत्रित होने लगी है। जिस कारण आने वाले वर्षों में युवाओं की तुलना में वृद्धों की जनसंख्या बढ़ने की संभावना है। 2011 की जनगणना के अनुसार, कुल जनसंख्या का 8.6% बुजुर्गों की आबादी है और विशेषज्ञों का मानना है कि यह 2050 तक 20% तक जा सकता है। विश्व में 2015 से 2050 के मध्य 60 वर्ष से अधिक व्यक्तियों की जनसंख्या की स्थिति कुछ इस प्रकार होगी:
भारत में वह आबादी जो अभी 35 वर्ष से कम है, अगले 30 वर्षों या उससे अधिक में वो आबादी 60 वर्ष से अधिक उम्र की हो जायेगी। इस दर से, भारत जल्द ही बुजुर्गों की संख्या के मामले में चीन से आगे निकल जाएगा। पिछले 65 वर्षों में 80 वर्ष और उससे अधिक उम्र के बुजुर्गों का अनुपात दोगुने से अधिक हो गया है। भारत अनुमान से अधिक तेजी से बूढ़ा हो रहा है। जो भारत के भविष्य के लिए एक चुनौती बन रही है। दीर्घायु और गिरती प्रजनन क्षमता ने 60 वर्ष और उससे अधिक उम्र के व्यक्तियों की आबादी में अप्रत्याशित वृद्धि की है। वर्तमान समय में लोग शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो रहे हैं, जो किसी भी परिस्थिति में अपने भविष्य को पहले महत्व दे रहे हैं। जिससे जीवन प्रत्याशा में प्रत्यक्ष वृद्धि देखी जा रही है। जीवन प्रत्याशा में 1950 में 36.2 साल से बढ़कर 2015 में 67.5 साल और 2050 तक 75.9 साल होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
आज गर्भ निरोधकों तक बेहतर पहुंच, शादी के लिए बढ़ती उम्र, प्रजनन दर में गिरावट (विशेषकर महिलाओं के बीच); चिकित्सा, सार्वजनिक स्वास्थ्य, पोषण और स्वच्छता में प्रगति के कारण आयु में पुनः वृद्धि हो रही है। किंतु इन बढ़ती वृद्धों की संख्या हेतु जीवन जीने के लिए आवश्यक परिस्थितियां भी उपलब्ध हो रही हैं। शायद नहीं उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, भारत में 41.6% बुजुर्ग आज भी जीवित रहने हेतु कार्य करने के लिए विवश हैं। साथ ही उम्र बढ़ने के साथ साथ हृदय रोग, कैंसर, पुरानी सांस की बीमारियां, मधुमेह और आंखों की रोशनी में कमी जैसी स्वास्थ्य समस्याएं भी बढ़ रही हैं।
आज भारत में युवा तो हैं किंतु उसमें भी 65% गरीब हैं। वे अपने परिवार के भरण पोषण की ही उचित व्यवस्था नहीं कर पाते हैं, ऐसी स्थिति में अपने बुजुर्गों की देखरेख के लिए पर्याप्त सुविधाएं जूटा पाना उनके लिए कठिन हो जाता है। कई स्थानों पर आज भी यह स्थिति देखी जाती है, कि वृद्धों की सेवा में पर्याप्त युवा उपलब्ध नहीं होते हैं। माता-पिता के रखरखाव अधिनियम, 2007 के तहत माता पिता की देख रेख का दायित्व सरकार द्वारा संतानों को सौंपा गया है। लेकिन 7% से अधिक आबादी बेरोजगार है, जो अपने वृद्धों की सहायता करने में सक्षम नहीं है। जिस कारण इनकी स्थिति दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है। बुजुर्गों की बिगड़ती स्थिति को सुधारने के लिए सरकार को अहम कदम उठाने की आवश्यकता है। सरकार द्वारा कागजों पर तो बड़ी-बड़ी योजनाएं लागू की जा रहीं हैं किंतु उन्हें धरातलीय स्तर पर क्रियांवित करने की अवाश्यकता है। जिन्हें आज हम बुजुर्ग कह रहे हैं वे भी कभी युवा थे जिन्होंने वर्तमान भारत की छवि तैयार करने में अहम भूमिका निभाई। अतः यह उनका अधिकार है कि वे जीवन की इस अवस्था को अरामपूर्वक व्यतीत करें।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2Mr9KiW
2. http://ftp.iza.org/dp10162.pdf
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