बेल भारत के प्राचीन फलों में से एक है। इसकी जड़, छाल, पत्ते और फल औषधि रूप में मानव जीवन के लिये उपयोगी हैं। यह विभिन्न प्रकार की भूमि (बंजर, उष्ण, शुष्क एवं अर्धशुष्क) में वर्ष के किसी भी समय उगाया जा सकने वाला एक पोषण एवं औषधीय गुणों से भरपूर फल है। गरीब किसानों के लिए यह एक अच्छा विकल्प है, क्योंकि मेरठ क्षेत्र में बेल की खेती की अपार सम्भावनायें हैं, यहां इसकी व्यवसायिक खेती की जा सकती है। बेल वृक्ष का पैराणिक महत्व है, इसकी पत्तियों का उपयोग पारंपरिक रूप से भगवान शिव को चढ़ाने के लिये किया जाता है।
बेल या ऐग्ले मार्मेलोस (Aegle marmelos) के वृक्ष सारे भारत में, विशेषतः उत्तर-पूर्वी भारत और मध्य व दक्षिण भारत के शुष्क और पर्णपाती वन में, उत्तर भारतीय नदी क्षेत्रों और उप-हिमालयी इलाकों में 500 मीटर की ऊँचाई तक उगाया जाता है। इसके पेड़ प्राकृतिक रूप से भारत के अलावा दक्षिणी नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार, पाकिस्तान, बांग्लादेश, वियतनाम, लाओस, कंबोडिया एवं थाईलैंड में उगते हैं। इसके अलावा इसकी खेती पूरे भारत के साथ श्रीलंका, जावा एवं फिलीपींस तथा फीजी द्वीपसमूह में भी की जाती है। बेल की अनेक स्थानीय किस्में हैं परन्तु कुछ चयनित किस्मों की सिफारिश अक्सर खेती के लिये की जाती है।
कुछ प्रमुख किस्मे निम्न है:
• पंत सिवानी
• पंत अर्पणा
• पंत उर्वसी
• पंत सुजाता
• सी.आई.एस.एच-बी.-1
• सी.आई.एस.एच.-बी.-2
यह एक पतझड़ वाला वृक्ष है, जिसकी ऊंचाई 25 से 30 फीट तक होती है और इसके फूल हरे-सफ़ेद और मीठी सुगंध वाले होते हैं तथा 4 से 7 के समूहों में लगते हैं और मई और जून के महीने में फूल आते हैं। इसका तना छोटा, मोटा, कोमल होता है और शाखाओं में काटे होते हैं जो नीचे की ओर झुकी होती है। इसकी पत्तियाँ अण्डाकार, तीक्ष्ण और सुगंधित तथा 4-10 सेमी लंम्बी एंव 2-5 सेमी चौड़ी होती हैं, एवं पत्तियां 3 और 5 के समूह में होती है। इसके फल गोलाकार या अंडाकार होते हैं, जिनका व्यास 2 से 4 इंच होता है। फलों के छिलके कठोर होते हैं जो प्रारंभ में भूरे हरे रंग के होते है और पकने के बाद पीले और हल्के हरे पड़ जाते है। फल के गूदे में 8 से 15 खंड होते हैं जिसमें छोटे, कड़े तथा अनेक बीज होते है। इसको औषधीय पौधे के रूप में जाना जाता है। इसके हर एक अंश में लाभकारी गुण होते है।
इसके कुछ औषधीय लाभ निम्न है:
• बेल पाचन प्रक्रिया में सुधार लाता है और पाचन-सम्बंधित विकारों को शरीर से कोसों दूर रखता है।
• यह रक्त में उपस्थित हानिकारक एवं विषाक्त पदार्थों को दूर कर देता है और रक्त को साफ करता है। साथ ही साथ ये रक्त चाप को भी नियंत्रित करता है।
• बेल मधुमेह के रोगी के लिए उपयोगी माना जाता है।
• बेल के गूदे में काफी मात्रा में कैलोरी होती है और साथ ही प्रोटीन, आयरन, वसा, विटामिन ए, बी1 तथा सी, खनिज, फाइबर, निकोटिनिक एसिड, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, और फास्फोरस जैसे अनेक पोषक तत्व भी होते हैं जो उपापचयी क्रियाओं में सुधार लाते है और ऊर्जा प्रदान करते हैं।
• बेल वृक्क तथा यकृत से सम्बंधित विकारों के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।
• इसका प्रयोग सूक्ष्म-जीवों से बचाने, त्वचा और बालों के इलाज, मास-पेशियों के दर्द तथा सूजन के इलाज आदि के लिए किया जाता है।
• इनके आलावा इसमें शोधरोधी, ज्वरनाशक, पीड़ानाशक, इम्यूनोमॉड्यूलेटरी (Immunomodulatory), तथा घाव भरना आदि गुण पाए जाते हैं।
• बेल सबसे पौष्टिक फल होता है इसलिए इसका प्रयोग कैंडी, शरबत, टाफी तथा मुरब्बा के निर्माण में किया जाता है।
कृर्षि के लिये उपयुक्त जलवायु तथा मिट्टी
वैसे तो ये किसी भी मौसम और मिट्टी में उगाएं जा सकते हैं परंतु अधिकांशतः ये ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्रों अनुकूलित होते है। ये शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में अच्छे से उगते है। इसे दलदली, क्षारीय या पत्थरदार मिट्टी में अच्छी तरह से उगाया जा सकता है और मृदा का pH मान 5 से 8 होना चाहिए।
भूमि की तैयारी
बेल की खेती सीधे खेतों में भी की जा सकती है। भारत में इसकी तैयारी मार्च - अप्रैल से शुरू हो जाती है। याद रखे कि समान्यत: पौधो को 8m × 8m की दूरी पर लगाना चाहिए और खेत में 1m × 1m × 1m गहरे गडढ़े खोद लेना चाहिए। इस प्रक्रिया में रोपण से कुछ समय पहले गडढ़ों को इस उद्देश्य से खुला छोड़ा जाता हैं ताकि इनमें अच्छी तरह धूप और पानी लग जाए तथा गड्ढ़े भूमिगत कृमियों से मुक्त हो जाए। जुलाई - अगस्त माह में 3-4 अच्छी बारिश के बाद इन गड्ढ़ों में पौधों का रोपण तैयार किया जाता है।
सिंचाई
बेल एक अत्यधिक सहनशील पौधा होता है। यह बिना सिंचाई के भी रह सकता है। नये पौधो को नियमित रूप से पानी देने की आवश्यकता होती है परंतु पुराने पौधे में सिंचाई की आवश्यकता कम होती है।
कटाई और उपज
रोपण के 4-5 साल बाद इन वृक्षों पर फल लगने लगते हैं, समान्यत: फलों की तु़ड़ाई तब की जाती है जब फल हरे–पीले रंग के होते है। इन फलों को परिपक्व होने में 10-12 महीने लगते हैं। बेल का उपयोग संरक्षित भोजन के लिए किया जाता है। इसलिए इनकी तुड़ाई परिपक्व हरे होने पर उत्तम मानी जाती है। अच्छे प्रबंधन के तहत एक वृक्ष औसतन 150-200 फल देता है। फलों को कमरे के तापमान पर दो सप्ताह तक संग्रहीत किया जा सकता है।
संदर्भ:
1. https://www.ijcmas.com/6-3-2017/Neeraj,%20et%20al.pdf
2. https://www.agrifarming.in/wood-apple-farming/
3. https://www.slideshare.net/manasicar/bael-presentation
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.