ओलावृष्टि क्‍यों बन रही है विश्‍व के लिए एक चिंता का विषय?

मेरठ

 21-02-2019 11:55 AM
जलवायु व ऋतु

वसंत ऋतु आ गयी है लेकिन सर्दी जाने का नाम ही नहीं ले रही है, पहाड़ों में बर्फबारी तो शहरों में ओलावृष्टि देखने को मिल रही है। जो किसी देश विशेष के लिए नहीं वरन् संपूर्ण विश्‍व के लिए एक चिंता का विषय है। इस प्रकार की असमय होने वाली बर्फबारी और ओलवृष्टि पर्यावरण मे प्रत्‍यक्ष क्षरण को दर्शा रही है। यह तो सर्वविदित है कि बर्फ जल की ही ठोसावस्‍था है, यदि बात की जाए ओलों की तो यह बर्फ का ही संघनित रूप है। जब ओले गिरते हैं, तो बादलों में गड़गड़ाहट और बिजली की चमक बहुत अधिक होती है। यह ओलवृष्टि कहीं बहुत हल्की तो कहीं बहुत भारी भी होती है।

समुद्र के किनारे से जैसे-जैसे ऊंचाई की ओर बढ़ते हैं तापमान भी घटता जाता है, जब जल वाष्पित होकर वर्षा के बादल के रूप में ऊंचाई की ओर बढ़ते हैं तो ऊंचाई के साथ तापमान भी घटता जाता है या शून्य डिग्री से भी कम हो जाता है जिससे वहां हवा में मौजूद पानी की छोटी-छोटी बूंदें जम जाती हैं। इन जमी हुई बूंदों पर और पानी जमता जाता है। धीरे-धीरे ये बर्फ के गोलों का रूप धारण कर लेते हैं। जब ये गोले ज्यादा वजनी हो जाते हैं तो नीचे गिरने लगते हैं। गिरते समय वायुमंडल की गरम हवा से टकरा कर बूंदों में बदल जाते हैं। लेकिन अधिक मोटे गोले जो पूरी तरह नहीं पिघल पाते, वे बर्फ के गोलों के रूप में ही धरती पर गिरते हैं। इसी को हम ओलवृष्टि कहते हैं। इन ओलों को सामान्‍यतः 5 मिलीमीटर (0.2 इंच) और 15 सेंटीमीटर (6 इंच) व्यास के मध्‍य मापा जाता है। ओलावृष्टि मैदानों की अपेक्षा पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक होती हैं क्‍योंकि यहां गरज के साथ प्रबल ऊपरी हवाएं तीव्र होती हैं।

अब तक की सबसे घातक ओलवृष्टि मुरादाबाद, उत्‍तर प्रदेश (1988) में हुयी, इसमें लगभग 246 लोगों की मृत्‍यु हुयी जिसकी पुष्टि संयुक्त राष्ट्र के मौसम विभाग द्वारा की गयी। चीन, मध्य यूरोप और दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया में भी ओलावृष्टि देखी जाती है। अत्‍यधिक ओलावृष्टि से ऑटोमोबाइल, विमान, रोशनदान, कांच से बनी संरचनाएं (जैसे वाहनों के शीशे, भवनों की दीवार इत्यादि), पशुधन और सबसे अधिक फसलों को हानि पहुंचती है। घरों की छतों पर दरारें तथा टपकने की समस्‍या हो जाती है। ओलवृष्टि का सबसे घातक खतरा वज्रपात का होता है।

विगत कुछ समय पूर्व हुयी भारी बर्फबारी से तापमान में कमी आयी जिस कारण लोगों द्वारा अनुमान लगाया जा रहा है कि यह ग्‍लोबल वार्मिंग में कमी का परिणाम है किंतु वास्‍तव में देखा जाए तो यह इसके विपरित है ग्‍लोबल वार्मिंग ने अपना प्रभाव दिखाना प्रारंभ कर दिया है बर्फबारी और ओलवृष्टि इसका प्रत्‍यक्ष प्रमाण है। अभी कुछ समय पूर्व दिल्‍ली में देखी गयी ओलवृष्टि ग्‍लोबल वार्मिंग का ही एक हिस्‍सा थी। वैज्ञानिकों का कहना है कि समय समय पर अत्‍यधिक सर्दी की आशा की जाती है। इस तरह का मौसम तभी होता है जब मानव निर्मित ग्रीनहाउस गैसें पृथ्‍वी के वायुमंडल पर दीर्घकालिक वार्मिंग प्रवृत्ति को उत्‍पन्‍न करती हैं। जिसके परिणामस्‍वरूप "बर्फबारी" और ठंडे तापमान में वृद्धि होती है, क्योंकि वार्मिंग के कारण वायुमंडल से अधिक मात्रा में पानी वाष्पित होता है, सर्दियों के दौरान जब दक्षिण में वायु दाब अधिक होता है, तो हवा बादलों को जमा देती है जिससे बर्फबारी और ओलवृष्टि होती है। इसलिए सर्दी में इस प्रकार की वृद्धि संतुष्टि का नहीं वरन् चिंता का विषय है जो कि ग्‍लोबल वार्मिंग के कारण उत्‍पन्‍न हुयी है। अब तक होने वाली प्राकृतिक आपदाओं को हमारे द्वारा नजरअंदाज किया जा रहा था किंतु मेरठ के निकट हुयी ओलवृष्टि ग्‍लोबल वार्मिंग की दृष्टि से गंभीर चिंता का विषय बन गयी है।

ग्‍लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए सख्‍त कदम उठाने की आवश्‍यकता है वरना हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए स्‍वच्‍छ पर्यावरण जैसा कुछ भी नहीं रह जाएगा। इसके लिए हम कुछ इस प्रकार कदम उठा सकते हैं:
1. पर्यावरण को साफ रखना।
2. हमारे पास शेष बचे पर्यावरण को स्‍वच्‍छ ओर संरक्षित रखने के लिए आलस्‍य त्‍यागना होगा तथा तीव्रता से नष्‍ट होती पृ‍थ्‍वी को बचाने के लिए जागृत होना होगा।
3. पृथ्‍वी को बचाने का सबसे कारगर उपाय है अधिक से अधिक वृक्ष लगाए जाएं तथा वनों को बचाया जाए।
4. अनवीकरणीय संसाधन का उपयोग सीमित करना होगा तथा नवीनीकरणीय ऊर्जा के स्‍त्रोतों की ओर आगे बढ़ना होगा।

संदर्भ
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Hail
2. https://pmm.nasa.gov/education/content/how-does-hail-form
3. https://www.freepressjournal.in/webspecial/vasant-panchami-2019-snowfall-india-spring-hailstones-delhi-mumbai-weather-snow-winter/1455965
4. https://www.dfordelhi.in/snowfall-delhi-ncr-noida/
5. https://in.askmen.com/news-1/1121514/article/its-snowing-in-noida-and-its-time-for-the-climate-gods-to-in

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