रॉबर्ट और हेरिएट टाइटलर द्वारा 1858 में ली गई अबू के मकबरे की तस्वीर में उन्होंने अबू के मकबरे को मस्जिद कहा था, उन्होंने तस्वीर के निचे लिखा था कि "मेरठ की यह मस्जिद विद्रोहियों के प्रमुख आश्रय के लिए जानी जाती थी"। इस तस्वीर को आप नीचे दिए गए फोटो में देख सकते हैं। लेकिन वास्तव में अबू का मकबरा एक मस्जिद नहीं, बल्कि नवाब अबू मोहम्मद खान कंबोह द्वारा अपने पिता (जिनकी मृत्यु 1639 में मेरठ में हुई थी) के लिए बनाया गया मकबरा है। नवाब अबू को भी बाद में इसी मकबरे में दफनाया गया था।
नवाब अबू द्वारा काली नदी से मेरठ शहर में पानी लाने के लिए एक अबू नाला (ताजे पानी के नहर) बनवाया गया, जिसके माध्यम से आज भी इनका नाम प्रसिद्ध है। वहीं पिछले 100 वर्षों में जनसंख्या में वृद्धि के साथ इस नाले को भी बड़ा कर दिया गया है। सिर्फ अबू नाले से ही नहीं मेरठ के सबसे प्रसिद्ध बाजार - अबू लेन और कम्बोह गेट (जिसे अब आम तौर पर घंटा घर कहा जाता है) में भी नवाब अबू का नाम प्रसिद्ध है।
वर्तमान में इस मकबरे की स्थिती बहुत खराब हो चूकी है, इसके चारो ओर लोगों ने अपने घरों का निर्माण कर दिया है, जिस कारण से वर्तमान में इसके चारो ओर रॉबर्ट और हेरिएट टाइटलर द्वारा ली गई अबू के मकबरे की तस्वीर में दिखाया गया खुला मेदान देखने को नहीं मिलता है, अब मकबरे के आसपास और स्वयं मकबरे की स्थिती काफी खराब हो चूकी है।
अबू के मकबरे की तस्वीर खींचने वाले रॉबर्ट क्रिस्टोफर टाइटलर एक ब्रिटिश सैनिक, प्रकृतिवादी और फोटोग्राफर थे। उन्होंने अपनी दूसरी पत्नी हैरियट, जो दिल्ली की घेराबंदी में मौजूद थी, की मदद करने के लिए फोटोग्राफी सीखी थी, ताकि वह दिल्ली में ही उस महल की मनोरम पेंटिंग बना सके जिसकी वह तैयारी कर रही थी। रॉबर्ट ने फोटोग्राफी करना जॉन मरे और फेलिस बीटो से सीखी थी तथा उसके बाद रॉबर्ट द्वारा 1857 के विद्रोह के स्थानों की कई अद्भुत तस्वीर भी ली गई। रॉबर्ट और हेरिएट ने छ: महीने के अंतराल में पांच सौ से अधिक निगेटिव का संग्रह कर लिया था। इस संग्रह को जब उन्होंने फोटोग्राफिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल की एक बैठक में दिखाया तो 1857 के विद्रोह के हर दृश्य “मेरठ के घुड़सवार सेना से लेकर लखनऊ की रेजीडेंसी” ने कलकत्ता में निर्विवाद रूप से बेहतरीन प्रदर्शन के रूप में प्रशंसा पायी।
1857 के विद्रोह की उनकी तस्वीरों में कई दर्द भरे दृश्य शामिल थे, जैसे उस घाट के जहाँ नावों पर हमला किया गया था और घर के उस हिस्से की जिस में महिलाओं और बच्चों की हत्या हुई थी। 1857 के विद्रोह के दौरान उन्होंने अंतिम मुगल सम्राट, बहादुर शाह जफर द्वितीय की उल्लेखनीय तस्वीर भी खींची थी। अंततः उन्हें कर्नल के रूप में पदोन्नत किया गया और अप्रैल 1862 से फरवरी 1864 तक अंडमान द्वीप समूह के पोर्ट ब्लेयर में दीक्षांत निपटान के अधीक्षक के रूप में उन्हें नियुक्त कर दिया गया था।
1.http://www.luminous-lint.com/app/vexhibit/_TALK_Early_Conflict_Photography_01/6/56/6535700412838652093915/
2.https://en.wikipedia.org/wiki/Robert_Christopher_Tytler
3.http://www.ranadasgupta.com/printer_friendly.asp?pagetype=N&id=73
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