चिकित्सीय रूप से कहें तो, हमारे शरीर को सूर्य के प्रकाश की ज़रूरत होती है, क्योंकि, सूर्य के प्रकाश के बिना, हम विटामिन डी (Vitamin D) को संश्लेषित नहीं कर सकते हैं, जो कैल्शियम (Calcium) चयापचय और नई हड्डीयों के निर्माण के लिए अति आवश्यक है। एक सदी पहले, औद्योगिक शहरों में सूर्य के प्रकाश की कमी के कारण विटामिन डी की कमी कई लोगों में देखी गई जिसके चलते लोगों में सुखंडी का रोग उत्पन्न होने लगा और उनकी हड्डियां कमजोर होने लगीं। तब डॉक्टरों ने महत्वपूर्ण विटामिन डी उत्पादन के लिए सुबह या शाम को लगभग 15 मिनट तक सीधे सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आने की सलाह दी। परंतु बाद में देखा गया कि ज़्यादा धूप में रहने से त्वचा पर अल्ट्रावायलेट (Ultraviolet) किरणों के दुष्प्रभाव पड़ रहे हैं।
कई लोगों की त्वचा धूप में ज्यादा रहने से जलने भी लगती है जिसे हम सनबर्न (Sunburn) भी कहते हैं, तो कुछ गोरे लोग धूप में काले भी हो जाते हैं। यहां तक कि कई लोगों को लू लगना और त्वचा के कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियां भी होने लगी थीं। इससे बचने के लिये कई उपाये अपनाये गये और इस प्रकार सनस्क्रीन लोशन (Sunscreen Lotion) के रूप में पहली बार ज़ैतून के तेल का उपायोग किया जाने लगा। इसका इस्तेमाल प्राचीन यूनानियों द्वारा किया जाता था, परंतु यह बहुत प्रभावी नहीं था। 20वीं शताब्दी तक कोई भी विश्वसनीय लोशन विकसित नहीं हुआ था। 1938 में, स्विट्जरलैंड के एक रसायन विज्ञान के छात्र, जो ऐल्प्स पर्वत में चढ़ने के दौरान गंभीर रूप से सूर्य के प्रकाश से जल गए थे, ने एक 'ग्लेशियर क्रीम' (Glacier Cream) को संश्लेषित किया। इसके नमूने अभी भी मौजूद हैं और परीक्षण में इसका सूर्य सुरक्षा कारक अर्थात सन प्रोटेक्शन फैक्टर (Sun Protection Factor) 2 पाया गया। दूसरे शब्दों में इस क्रीम के उपयोग के बिना आप बिना जले जितना समय धूप में व्यतीत कर सकते हैं उससे दुगुना समय आप इस क्रीम को लगा कर सकते हैं।
आप सोच रहे होंगे कि ये किस प्रकार निर्धारित होता है कि इस क्रीम को लगा कर हम इतना समय तक धूप में रहे सकते हैं या इनकी प्रभावशीलता को कैसे मापा जाता है? और ये सन प्रोटेक्शन फैक्टर क्या है? तो आइए जानते हैं आपके इन सवालों के जवाब। सनस्क्रीन, जिसे सनब्लॉक (Sunblock) या सनटैन लोशन (Suntan Lotion) के रूप में भी जाना जाता है, एक लोशन है जो सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों से आपकी त्वचा की रक्षा करता है। सनस्क्रीन में मुख्यतः दो तत्व होते हैं, एक केमिकल तत्व जो अल्ट्रावायलेट किरणों को सोख लेता है और दूसरा भौतिक तत्व जो इन किरणों को वापस उछाल देता है। कौन सी क्रीम आपको कितनी देर तक धूप से बचा सकती है इसका निर्धारण सन प्रोटेक्शन फैक्टर (एस.पी.ऍफ़.) के माध्यम से होता है।
एस.पी.ऍफ़. यह मापने की प्रक्रिया है कि बिना सनस्क्रीन की तुलना में सनस्क्रीन की उपस्थिति में किसी व्यक्ति की त्वचा पर सनबर्न होने के लिये कितनी सौर ऊर्जा की आवश्यकता होती है। जैसे-जैसे एस.पी.ऍफ़. का मान बढ़ता है, सनबर्न से सनस्क्रीन की सुरक्षा भी बढ़ जाती है। एस.पी.ऍफ़. को लेकर लोगों में अक्सर ये गलत धारणा होती है कि एस.पी.ऍफ़. का मान समय से संबंधित है। उदाहरण के लिये कुछ लोगों को लगता है कि एस.पी.ऍफ़. 15 सनस्क्रीन का मतलब है कि वे 15 घंटों तक धूप में रह सकते हैं, परंतु ऐसा नहीं है। एस.पी.ऍफ़. 15 का अर्थ है जो व्यक्ति 12 मिनट तक धूप में बिना सनबर्न रह सकता है वो एस.पी.ऍफ़. 15 सनस्क्रीन लगाने के बाद 15 × 12 मिनट अर्थात 3 घंटे तक बिना सनबर्न हुए धूप में रह सकता है। इसके अलावा, एस.पी.ऍफ़. केवल एक अनुमानित मार्गदर्शिका है। सनबर्न से सुरक्षा का वास्तविक स्तर उपयोगकर्ता की त्वचा के प्रकार, कितनी बार कितनी मात्रा में सनस्क्रीन लगाई गयी है, आप किस स्थान पर रहते हैं आदि कारकों पर भी निर्भर करता है।
एक शोध के अनुसार, उम्र से पहले त्वचा पर पडऩे वाली झुर्रियों का सबसे बड़ा कारण यू-वी ए किरणें होती हैं। UVA- तरंग दैर्ध्य 315-400 या 320-400 एनएम; 2004 के एक अध्ययन के अनुसार, UVA त्वचा के भीतर कोशिकाओं के डीएनए की क्षति का कारण बनता है, जिससे घातक मेलेनोमा कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। पहले एस.पी.ऍफ़. मापन के द्वारा त्वचा पर धूप से पडऩे वाली झुर्रियों के प्रभाव को मापा नहीं जा सकता था। एस.पी.ऍफ़. सनस्क्रीन बहुत कम यूवीए विकिरण को अवरुद्ध करते थे। परंतु बाद में विस्तृत-स्पेक्ट्रम सनस्क्रीन (Broad spectrum sunscreen) को यू-वी ए और यू-वी बी (UVB) दोनों से बचाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
संदर्भ:
1.https://www.fda.gov/aboutfda/centersoffices/officeofmedicalproductsandtobacco/cder/ucm106351.htm
2.https://en.wikipedia.org/wiki/Sunscreen
3.अंग्रेज़ी पुस्तक: Robinson, Andrew (2007). The Story of Measurement. Thames & Hudson
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