पृथ्वी के स्थलमंडल (lithosphere) में संगृहित ऊर्जा के अचानक उत्सर्जित होने से, यह ऊर्जा जमीन के भीतर तरंगों के रूप में फैलती हैं, जिसके परिणामस्वरूप भूकंपीय तरंगों का निर्माण होता है। कुछ भूकंप इतने हलके होते हैं कि उन्हें महसूस नहीं किया जा सकता है। वहीं कुछ भूकंप इतने भयावी होते हैं कि काफी अधिक नुकसान कर देते हैं। वहीं जब एक बड़े भूकंप का केंद्र समुद्र में स्थित होता है, तो वह सुनामी का कारण बनता है। भूकंप भूस्खलन और कभी-कभी ज्वालामुखीय गतिविधि को भी सक्रिय कर सकता है।
भूकंप के प्रकार निम्नलिखित हैं :-
आफ्टरशॉक (Aftershock) :- भूकंप के एक बड़े झटकों के बाद उसी क्षेत्र में होने वाले झटके।
ब्लाइंड थ्रस्ट भूकंप (Blind thrust earthquake) :- यह भूकंप थ्रस्ट फॉल्ट के कारण होता है, जिसके प्रभाव हमें पृथ्वी की सतह पर नहीं दिखाई देते हैं।
क्रायोसिज़्म (Cryoseism) :- यह भूकंपीय घटना एक जमी हुई मिट्टी या चट्टान के अचानक टूटने की क्रिया के कारण होती है।
डीप-फोकस भूकंप (Deep-Focus earthquake) :- यह भूकंप 300 किलोमीटर से अधिक की गहराई में उत्पन्न होता है और इसे प्लूटोनिक भूकंप भी कहा जाता है।
भूकंप का झुंड :- ऐसी घटनाएँ जहाँ कम समय में एक ही क्षेत्र में कई भूकंपों के क्रम का अनुभव होना।
फोरशॉक (Foreshock) :- यह भूकंप एक बड़े भूकंप के आने से पहले महसूस होता है।
मेगाथ्रस्ट भूकंप (Megathrust earthquake) :- यह भूकंप सबडक्शन ज़ोन के विनाशकारी अभिसरण प्लेट सीमाओं पर आता है, जहाँ एक टेक्टोनिक प्लेट को बलपूर्वक दूसरे के नीचे किया जाता है।
सुनामी भूकंप :- यह भूकंप एक तीव्र सुनामी को सक्रिय करता है, जो भूकंप के परिणाम से कई ज्यादा भयावी होता है।
ज्वालामुखी विवर्तनिक भूकंप :- यह भूकंप मैग्मा की गति से प्रेरित होता है।
अब आप ये सोच रहे होंगे कि भूकंप होता कैसे है, तो आइए जानते हैं भूकंप के कारण, जो निम्न हैं :-
भ्रंश गति :- भ्रंश गति के दौरान जब भौगोलिक प्लेटें दबाव या तनाव के कारण असंतुलित हो जाती हैं, तब प्लेटों में खिंचाव अधिक बढ़ जाता है, जो उनकी सहन शक्ति के बाहर होता है, जिस कारण शिलाएं प्रभावित होकर टूट जाती हैं। एक ओर की शिलाएँ दूसरी ओर की शिलाओं की अपेक्षा नीचे या ऊपर चली जाती हैं। जो भूकंप का कारण बनता है।
ज्वालामुखी विवर्तनिकी भूकंप :- यह भूकंप मैग्मा की गति से प्रेरित होता है। मैग्मा में दबाव के कारण चट्टानों में परिवर्तन होता है। कई बार चट्टाने टूट या हिल जाती हैं, जो भूकंप का कारण बनते हैं।
प्रेरित भूकंप :- प्रेरित भूकंप आमतौर पर मामूली भूकंप और झटके होते हैं, जो मानव गतिविधि के कारण पृथ्वी की पृष्ठभाग पर दबाव और खिंचाव से सक्रिय होते हैं।
भूकंप द्वारा उत्पन्न कंपन को सिस्मोग्राफ (seismograph) द्वारा रिकॉर्ड किया जाता है। वहीं सिस्मोग्राफ द्वारा बनाई गई ज़िग-ज़ैग रेखा (सीस्मोग्राम) पृथ्वी की सतह में हो रहे कंपन की बदलती तीव्रता को दर्शाती है। सीस्मोग्राम में व्यक्त आंकड़ों से, वैज्ञानिक समय, भूकंप के केंद्र, फोकल की गहराई, और भूकंप के प्रकार का निर्धारण करके यह अनुमान लगाते हैं कि कितनी ऊर्जा उत्सर्जित हुई होगी। भूकंप का आकार भ्रंश के आकार और भ्रंश पर स्लिप की मात्रा पर निर्भर करता है, लेकिन इसे वैज्ञानिक माप नहीं सकते हैं, क्योंकि भ्रंश पृथ्वी की सतह से कई किलोमीटर गहरे हैं। वे सिस्मोग्राफ रिकॉर्डिंग का उपयोग यह जानने के लिए करते हैं कि भूकंप कितना बड़ा था। सीस्मोग्राम की रेखा यदि छोटी है तो यह छोटे भूकंप को संदर्भित करती है और वहीं बड़ी सीस्मोग्राम रेखा बड़े भूकंप को दर्शाती है। सीस्मोग्राम रेखा की लंबाई भ्रंश के आकार पर और सीस्मोग्राम रेखा का आकार स्लिप की मात्रा पर निर्भर करता है।
भूकंप परिमाण पैमाने
मेरठ को भूकंप ज़ोन 4 में वर्गीकृत किया गया है जो ‘उच्च जोखिम क्षेत्र’ है, तो आइए जानते हैं विभिन्न भूकंप क्षेत्रों के बारे में :-
ज़ोन-5
इस ज़ोन में सबसे अधिक जोखिम वाले क्षेत्र आते हैं, जो तीव्रता MSK IX या उससे अधिक के भूकंप से ग्रस्त हो सकते हैं। आईएस कोड(IS Code) फैक्टर 0.36 को ज़ोन 5 के रूप में इंगित करता है। संरचनात्मक डिज़ाइनर ज़ोन 5 में भूकंप प्रतिरोधी घर बनाने के लिए इस फैक्टर का उपयोग करते हैं। 0.36 का फैक्टर इस क्षेत्र में प्रभावी (शून्य अवधि) स्तर के भूकंप का संकेत देता है। इसे बहुत अधिक नुकसान जोखिम क्षेत्र (Very High Damage risk zone) कहा जाता है। कश्मीर, पश्चिमी और मध्य हिमालय, उत्तर और मध्य बिहार, उत्तर-पूर्व भारतीय क्षेत्र, कच्छ का रण और अंडमान और निकोबार समूह इस क्षेत्र में आते हैं।
ज़ोन-4
इस क्षेत्र को उच्च क्षति जोखिम क्षेत्र कहा जाता है और इसमें तीव्रता VIII वाले क्षेत्र आते हैं। आईएस कोड फैक्टर 0.24 को ज़ोन 4 के रूप में इंगित करता है। जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, मेरठ, उत्तराखंड, सिक्किम, भारत-गंगा के मैदानों (उत्तरी पंजाब, चंडीगढ़, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, तराई, उत्तर बंगाल, सुंदरबन) के कुछ हिस्सों और देश की राजधानी दिल्ली ज़ोन 4 में आते हैं।
ज़ोन-3
इस क्षेत्र को मध्यम क्षति जोखिम क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया गया है जो तीव्रता VII के भूकंप से ग्रस्त होते हैं। आईएस कोड फैक्टर 0.16 को ज़ोन 3 के रूप में इंगित करता है।
ज़ोन-2
इस क्षेत्र को कम नुकसान जोखिम क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया गया है जो तीव्रता VI के भूकंप से ग्रस्त है। आईएस कोड(IS Code) फैक्टर 0.10 को ज़ोन 2 के रूप में इंगित करता है।
संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/Earthquake
2.http://nidm.gov.in/easindia2014/err/pdf/earthquake/earthquakes_measurement.pdf
3.http://www.geo.mtu.edu/UPSeis/magnitude.html
4.https://en.wikipedia.org/wiki/Earthquake_zones_of_India
5.http://nidm.gov.in/safety_earthquake.asp
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