वर्तमान समय में रोजगार और प्रवासन दोनों एक दूसरे के अभिन्न अंग बन गये हैं, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर किया जाने वाला प्रवासन। बेहतर रोजगार की तलाश में लोग अक्सर अपने मूल स्थान को छोड़कर अन्य शहर या किसी अन्य देश तक पलायन कर देते हैं। यह स्थिति किसी देश विशेष में नहीं वरन् सम्पूर्ण विश्व में है। वर्ष 2017 में भारत में प्रवासन के ऊपर किये गये इकोनॉमिक सर्वे से चौंकाने वाले आंकड़े सामने लाये। यदि 2001 में प्रवासियों की संख्या देखी जाए तो 31.45 करोड़ थी, जो वर्ष 2011 तक 13.9 करोड़ बढ़कर 45.36 करोड़ हो गयी। इन आंकड़ों की वृद्धि दर 1991-2001 तक 35.5% थी, जो 2001-11 तक बढ़कर 44.2% हो गयी।
भारत के कुल प्रवासन में अंतर-राज्य प्रवासियों का बहुत कम योगदान रहा है। 2001 की जनगणना के अनुसार अंतर-राज्य प्रवासियों ने कुल प्रवासन में 13% योगदान दिया। 2007-08 के लिए प्रवास पर अंतिम एनएसएस से पता चलता है कि अंतर-राज्य प्रवासियों की संख्या 11.5% थी, जो कि 1999-2000 में 10.3% थी। एनएसएस 2007-08 से पता चलता है कि सभी अंतरराज्य प्रवासियों में से 27% 20-29 वर्ष के हैं। कुछ अपरंपरागत सर्वेक्षण के आंकड़ों से ज्ञात हुआ है कि इन प्रवासियों में अधिकतम 20-29 आयु वर्ग थे, जिसमें अंतर-राज्यीय प्रवास लगभग 1.1करोड़ है। 2011 की जनगणना के अनुसार प्रवासन में शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में भिन्न दर देखी गयी। यदि रोजगार की दृष्टि से यह प्रवासन देखा जाए तो यह क्रमश: 56% और 31% रहा।
2001 तथा 2011 के मध्य रोजगार और शिक्षा के लिए पलायन करने वालों में महिलाओं की संख्या तेज़ी से बढ़ी है। इस अवधि में, काम के लिए प्रवास करने वाली महिलाओं की संख्या में 101% की वृद्धि हुई, जो पुरुषों की विकास दर (48.7%) से दोगुनी से भी अधिक है। जनगणना 2001 तथा 2011 के मध्य, शिक्षा के लिए पलायन करने वाले पुरुषों की संख्या में 101% की वृद्धि हुई, जो कि महिलाओं की तुलना (229%) में आधे से भी कम है। इससे पूर्व भारत में विशेषतः विवाह के उपरांत ही महिलाओं का प्रवासन देखा जाता था।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2GrWgpm
2. https://bit.ly/2RyJiL9
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