भारत के अधिकांश परिवारों में लड़कियों के 20 पार करते ही परिवार वालों को उसके भविष्य से ज्यादा उसकी शादी की चिन्ता होने लगती है, जिस कारण अक्सर लड़कियों की जल्दी शादी करा दी जाती है। शादी का मतलब केवल प्यार नहीं, बल्कि उत्तरदायित्व और जीवन के अन्य फैसलों से भी होता है, जिनका अनुभव केवल शादी के बाद ही किया जा सकता है। आजीवन वचनबद्धता के लिए आपका मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक रूप से पूरी तरह तैयार होना बहुत जरूरी है। शादी की सही उम्र के विषय में जानने वाले लोगों को स्वयं से अपनी वर्तमान मनः स्थिति का आकलन करना चाहिए और इस निर्णय को लेना चाहिए कि आप वास्तव में शादी के लिए तैयार भी हैं या नहीं। यदि भारतीय समाज की बात की जाये तो यहां विवाह के लिए सही उम्र के फैसले लेने में परिवार तथा माता पिता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके अतिरिक्त, यदि कोई कुवारी लड़की 30 वर्ष की आयु पार करती है तो उसके चरित्र पर प्रश्न उठाने शुरू कर दिये जाते हैं। जबकि पुरुषों को अक्सर इस प्रकार के किसी दबाव का सामना नहीं करना पड़ता है। जिस तरह के समाज में आज हम रह रहे हैं, यहां अक्सर देखा जाता है यदि कोई लड़का किसी काम का नहीं है तो माता पिता उसे सही रास्ते पर लाने के लिए शादी के बंधन में बांध देते हैं। वे अपने स्वार्थ के कारण शायद भूल जाते हैं कि वे एक नहीं वरन् दो जिंदगियां बर्बाद कर रहे हैं।
आज के शिक्षित युवा वर्ग विशेषकर शहरी क्षेत्रों के यदि किसी से शादी करना भी चाहते हैं, तो वे पहले अपने करियर को महत्व देते हैं, उसके बाद शादी का निर्णय लेते हैं। वास्तव में होना भी यही चाहिए एक सुखद भावी जीवन व्यतीत करने के लिए शादी से पहले करियर का निर्माण करना अत्यंत आवश्यक है। किंतु यहां भी प्रश्न वही उठता है कि शादी के लिए कौन सी आयु तय की जाए, क्योंकि जरूरत से ज्यादा देरी भी आपके भविष्य में विपरीत प्रभाव डाल सकती है। अध्ययनों से पता चला है कि परिपक्व अवस्था या 25 साल की उम्र के बाद शादी करने वाले जोड़ों की तलाक लेने की संभावना कम हो जाती है साथ ही इनके मध्य नोक-झोंक भी कम होती है। इसके अतिरिक्त, यदि महिला शिक्षित है तो वह अधिक आत्मविश्वासी तथा परिवार के उत्तरदायित्वों को भलि भांति निभा सकती हैं। हिंदू विवाह के अधिनियम के तहत भारतीय कानून में लड़के की शादी की उम्र 21 वर्ष तथा लड़की की शादी की उम्र 18 रखी गयी है। अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि भारत में पुरुषों के लिए योग्य औसत आयु 26 वर्ष और महिलाओं के लिए 22.2 वर्ष है। ग्रामीण और शहरी भारत में विवाहित होने की आयु के बीच अधिक अंतर दिखता है। जहां शहरों में न्यूनतम आयु 21 वर्ष होती है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में 18-20 देखी गयी है। पांच भिन्न भिन्न आयु में विवाह करने के लाभ और हानि:
20-25 वर्ष
लाभ : यदि वर और वधु दोनों युवा हैं, तो वे दोनों समान दिशा में एक साथ विकास कर सकते हैं। साथ ही यदि आप जल्दी परिवार प्रारंभ करते हैं, तो आपकी 40 वर्ष की अवस्था में आने तक आपके बच्चे कॉलेज जाने वाले हो जाएंगे तथा आप माता-पिता होने के बावजूद भी एक जोड़े के रूप में जीवन के नये अनुभव भी ले सकते हैं।
हानि: 20 से 25 की उम्र ऐसी होती है जब आपको स्वयं के बारे में ही ज्यादा पता नहीं होता है यहां तक कि जिसे आप जीवन-साथी के रूप में चुनना चाहते हैं, उसके विषय में भी कोई विशेष योजना नहीं होती है। अधिकांश लोग 20 के दशक से उभरने के बाद बदलने लगते हैं, जो आपकी शादी में विपरित प्रभाव भी डाल सकता है।
भारत में 20 वर्ष से कम उम्र में हुऐ विवाह में तलाक की संभावना 50% तक होती है, जबकि 20-23 की आयु सीमा में यह 34% तक हो जाती है तथा उम्र बढ़ने के साथ इसकी संभावना में कमी आती है। यदि आप घर रहकर सिर्फ एक माता की भूमिका निभाती हैं तो आप अपनी वास्तविक पहचान खो देती हैं, अंततः बच्चे भी बेहतर भविष्य की तलाश में घर से बाहर चले जाते हैं।
25-30 वर्ष
लाभ : यह वह अवस्था होती है जब आप स्वयं को जानने लगते हैं तथा अपने भावी जीवन साथी की छवि भी अपने मन में तैयार करने लगते हैं। इस अवस्था में आप उसका चयन करते हैं, जिसकी विचारधारा आपकी विचाधाराओं से मिलती हों। आप दोंनों के पास घर बसाने से पूर्व एक दुसरे को समझने का पर्याप्त समय मिल जाता है।
हानि: एक पेशेवर या प्रोफेसनल महिला यदि 30 वर्ष के बाद विवाह करती हैं, तो इस उम्र तक उनकी वित्तीय क्षमता काफी मजबूत हो जाती हैं। किंतु यदि वे बच्चे के पालन-पोषण हेतु अपने व्यवसाय से कुछ समय विराम लेती हैं, तो यह उनके करियर पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है।
30-35 वर्ष
लाभ : इस अवस्था में आप पूर्णतः परिपक्व हैं, अब आप एक किशोर की भांति नहीं वरन् एक वयस्क युवा की भांति सोचना प्रारंभ कर देते हैं तथा आपका व्यक्तिगत करियर तथा आर्थिक स्थिति दोंनों काफी सुरक्षित हो गयी होती है। एक विवाह अनुसंधान के अनुसार, 30 से अधिक उम्र की महिलाओं के तलाक की संभावना केवल 8% होती है।
हानि: 30-34 की उम्र के मध्य महिलाओं को गर्भधारण से संबंधित समस्याऐं बढ़ जाती हैं तथा बांझपन जैसी समस्या की संभावना 8-15% तक दोगुनी हो जाती है। कुछ समस्याएं तो हैं किंतु इसका अर्थ यह नहीं की आप संतान सुख से पूर्णतः वंचित हो जाएंगें, आप अभी भी माता बन सकती हैं।
35-40 वर्ष
लाभ : इस उम्र में की गयी शादी आपकी पहली और आखरी शादी होगी तथा आप इस अवस्था में पहुंचने के बाद आप आर्थिक रूप से स्थिर भी हो जाते है तो आप अपने इच्छा अनुसार विवाह कर सकते है, जिसमें आपके माता पिता को भी शायद कोई आपत्ति ना हो।
हानि : अब गर्भधारण की समस्या एक गंभीर समस्या हो सकती है, क्योंकि बांझपन की संभावना 15-32% से बढ़ जाती है; इस उम्र में आपके गर्भवती होने की 33% संभावना रह जाती है।
40 वर्ष के बाद
लाभ: अब तक आप जीवन के लभगभ सभी पड़ावों से गुजर चूके होंगें, इतना ही नहीं, आपने संभावित रूप से पार्टी करने, डेटिंग करने, यात्रा करने, कैरियर बनाने और अपने माता-पिता तथा भाई-बहनों के साथ सुखद जीवन व्यतित करने की अपनी सभी इच्छा पूरी कर चूके हैं। अब आप किसी के साथ बस जाते हैं तो इसका आपको या आपके परिवार को कोई पछतावा नहीं होगा।
हानि: यदि आप इस अवस्था में बच्चों को जन्म देने की सोच रहें हैं तो आपको चिकित्सीय सहायता की आवश्यकता होगी। लेकिन आप बाद के जीवन में माता-पिता के पास आने वाली चुनौतियों को संभालने के लिए आर्थिक और भावनात्मक रूप से काफी सुरक्षित होंगे।
उपरोक्त विवरण से यह तो ज्ञात हो ही गया है कि अक्सर कम उम्र या अपरिपक्व अवस्था में किया गया विवाह भविष्य में तलाक का कारण बन जाता है। हाल ही में, भारत (प्रमुख रूप से भारतीय महानगरों) में असफल विवाह और तलाक की दरों में वृद्धि देखी गई है। भारत में 13.6 लाख लोग तलाकशुदा हैं। यह विवाहित आबादी के 0.24% और कुल आबादी का 0.11% के बराबर है।
उत्तर-पूर्व के राज्यों में तलाक की दर भारत में अन्य जगहों की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक है: मिजोरम में तलाक की दर (4.08%) सबसे अधिक है, जो नागालैंड से चार गुना अधिक है, जो की दूसरी उच्चतम दर (0.88%) है। 1 करोड़ से अधिक की आबादी वाले बड़े राज्यों में तलाक के अधिकांश मामलों की रिपोर्ट करने वालों में पहला स्थान गुजरात का है - इसके बाद असम, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और जम्मू और कश्मीर आते हैं। हालिया अध्ययन में पाया गया मात्र दिल्ली के 40 % विवाह तलाक की ओर बढ़ रहे हैं। भारत में तलाक लेने वाले अधिकांश दंपत्ति उच्च-मध्यम वर्गीय परिवार से होते हैं, जिसमें दोनों काम करने वाले होते हैं तथा इस स्थिति में व्यभिचार और असंगति इनके मध्य तलाक का कारण बन जाता है।
संदर्भ:
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