पिछले कुछ वर्षों से भारत में अपराध की समस्या तीव्र गति से बढ़ती जा रही है। आए दिन दिन दहाड़े डकैती, अपहरण, हत्या, दहेज के लिए बहू को परेशान करना, जालसाजी इत्यादि की खबरें आती रहती हैं। यदि 2016 में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (National Crime Records Bureau), भारत सरकार द्वारा प्रकाशित क्राइम इन इंडिया रिपोर्ट (Crime in India Report) के राज्यवार आपराधिक गतिविधियों के आंकड़ें देखें जाए, तो संज्ञेय अपराधों में दिल्ली तथा अपराधिक घटनाओं (% में) में उत्तर प्रदेश का नाम शीर्ष स्थान पर रहा।
2016 तक, दिल्ली में सबसे अधिक 974.9 (प्रति 100,000 व्यक्ति) की संज्ञानात्मक अपराध दर है और उत्तर प्रदेश में अपराध की उच्चतम प्रतिशत घटनाए बताई गयी है। उत्तर प्रदेश की जनसंख्या सबसे अधिक है और इसलिए यहाँ अपराध की उच्चतम मात्रा है, लेकिन जनसंख्या के प्रतिशत के रूप में, यह देश के आराधिक औसत से बेहतर है।
हालांकि आराधिक दर के आधार पर उत्तर प्रदेश 26वें स्थान पर रहा, किंतु फिर भी आराधिक गतिविधियों की दृष्टि से उत्तर प्रदेश का मेरठ शहर देश में अत्यंत नाज़ुक स्थिति पर खड़ा है। वर्ष 2018 के आंकड़े इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं, आकड़ों के अनुसार औसतन प्रतिदिन पुलिस की अपराधियों से लगभग दो मुटभेड़ हुयी, जिसमें पूरे साल में लगभग 22 लोगों की मौत तथा 400 लोग घायल हुए, इसके अतिरिक्त पुलिस विभाग में एक की मृत्यु तथा 123 घायल हुए। इनमें से कई मुटभेड़ों के प्रति राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के आक्रोश का भी सामना करना पड़ा। एडीजी कार्यालय द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, 2018 में 696 पुलिस मुठभेड़ों में कुल 1,303 अपराधियों को गिरफ्तार किया गया। इनमें से 638 के सिर पर इनाम भी रखा गया था।
उत्तर प्रदेश में आपराधिक गतिविधियां बढ़ने के कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं:
कुशल शासन योग्य विभाजन का अभाव : उत्तर प्रदेश में रूस, कनाडा और कुछ हद तक ऑस्ट्रेलिया की कुल जनसंख्या के बराबर जनसंख्या निवास करती है। किंतु इस विशाल जनसंख्या वाले राज्य में शासन की दृष्टि से उचित विभाजन देखने को नहीं मिलता है, जबकि स्वतंत्रता के दौरान के अन्य राज्य जैसे - मद्रास, बॉम्बे, पंजाब, बंगाल को पिछले 70 सालों में विभाजित कर दिया गया था साथ ही यहां आवश्यक विकास भी देखने को मिला।
विशिष्ट पहचान की कमी: प्रत्येक विकसित देश राष्ट्रवाद और गौरव के साथ शीर्ष पर पहुंचता है। विकास हेतु नागरिकों का गौरव और उनकी क्रियाशीलता दोनों आवश्यक हैं, अत्यधिक एकजुट राज्य में भी गौरव के अभाव में, जातीय और धार्मिक विभाजन मजबूत हो जाते हैं।
शहरी विकास: ब्रिटिश राज के दौरान उत्तर प्रदेश को अधिकांशत: नजरअंदाज किया गया और हमारे वर्तमान गणराज्य में इसको निरंतर रखा गया। पिछले 400 वर्षों में वहाँ कोई नया शहर नहीं बना है, नोएडा या गाजियाबाद बने भी हैं तो उन्हें अक्सर दिल्ली के उपनगरों में गिना जाता है। दूसरी ओर, दक्षिण के लगभग सभी प्रमुख शहर जैसे- चेन्नई, बैंगलोर, हैदराबाद पिछली 3 शताब्दियों में काफी विकसित हुए हैं। लगभग 20 करोड़ से अधिक आबादी वाले इस राज्य में कोई महानगर नहीं है।
सीमित पुलिसकर्मी : यहां के पुलिसकर्मियों के अनुसार यहां संयुक्त राष्ट्र द्वारा अनुशंसित औसत की तुलना में बहुत कम पुलिसकर्मी हैं। जिनमें से कुछ को अनियमित वेतन, खराब शस्त्र और खराब प्रशिक्षण दिया जाता है। इस स्थिति में सीमित संख्या और हथियारों के बल पर वे कैसे माफियाओं और गुंडों को पकड़ सकते हैं, यह उनके लिए आत्महत्या करने के समान होगा।
उत्तर प्रदेश को अपराध मुक्त बनाने के लिए इसमें विशेष प्रबंधनीय इकाइयों के विभाजन की आवश्यकता है तथा साथ ही प्रत्येक इकाई को विश्व स्तर के उत्कृष्ट शहरों की सुविधा उपलब्ध करानी होगी।
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