हम में से अधिकांश लोग शानदार आरवीसी केंद्र मेरठ के बारे में जानते हैं, जिन्होंने कुछ महान घुड़सवारों को प्रशिक्षित किया है, जिनमें से कुछ एशियाई खेल पदक विजेता भी हैं। इनके बारे में इस लिंक पर आप अधिक जानकारी भी पा सकते हैं: https://meerut.prarang.in/posts/1796/postname। लेकिन अब सोचने की बात यह है कि क्या इस तरह के खेलों के लिए किसी विशेष प्रकार के घोड़े की आवश्यकता होती है या किसी भी घोड़े को ऐसी प्रतियोगिताओं के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता है? तो आइए बताते हैं आपको इन प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने के लिए उपर्युक्त घोड़े के बारे में।
घोड़ों के 5 मुख्य प्रकार निम्न हैं:
शो पोनी (show pony) :-
शो पोनी की शो रिंग में जीतने के लिए 14.2hh(4.6फीट) से अधिक की ऊंचाई नहीं होनी चाहिए। आमतौर पर शो पोनी तीन लंबाई में पायी जाती है, 12.2hh( 4फीट), 13.2hh(4.3फीट) और 14.2 की लंबाई में। शो में आमतौर पर पोनी को उसकी रचना, स्वभाव, चलते समय उसकी क्रियाशीलता, दौड़ और चाल (उन्हें आमतौर पर कूदने की आवश्यकता नहीं होती है) पर आंका जाता है और कभी-कभार उन्हें किस तरह प्रस्तुत किया गया और घुड़सवारी को देखकर भी आंका जाता है।
वहीं एक हॉर्स शो में कई पोनिस होती हैं जो क्षतिरहित होती हैं, इसलिए उनमें से उत्कृष्ट को पहचानने के लिए उनके प्रदर्शन से आंका जाता है। और उनमें से जिनका चयन होता है उन्हें जब तक कि यह प्रारंभिक चयन प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती तब तक के लिए प्रतीक्षा करने के लिए पंक्तिबद्ध किया जाता है। चयन की गई पोनी में से दो पोनी का चयन उनकी चाल, दौड़ और न्यायाधीश द्वारा सभी कोणों से प्रत्येक पोनी का निरीक्षण और आमतौर पर उनके शरीर और पैरों पर अपना हाथ फैर कर किया जाता है। अंत में उन दो पोनी में से किसी एक का चयन उनके सूक्ष्म विवरण पर विचार करके किया जाता है।
एक उत्तम बच्चों की पोनी का चयन पोनी के रंग और नस्ल पर निर्भर नहीं होता है। हॉर्स शो में एक शो पोनी किसी भी नस्ल की हो सकती है। हालांकि एक शो पोनी को जितने के लिए सुरुचिपूर्ण और खूबसूरत दोनों होना चाहिए, आमतौर पर, जरूरी नहीं कि एक अच्छी नस्ल वाली पोनी ही होनी चाहिए।
शो जम्पर (show jumper) :-
शो जम्पर के लिए घोड़े का आकार, रंग, नस्ल या ऊंचाई इतनी महत्व नहीं होती, उसमें उसकी भयावह बाधाओं को कुद कर पार करने की क्षमता का महत्व होता है। एक सफल घोड़े को निर्भीक, बहादुर, अनुशासित होना चाहिए और उनमें अत्याधिक शक्ति होनी चाहिए। वहीं कई प्रतियोगिताओं में, गति भी एक कारक है। साथ ही शो जंपर्स को भी तीव्र मोड़ों और बाड़े को पार करने के लिए मुश्किल तरीकों का सामना करने में निपुण होना चाहिए। प्रतियोगिता में दर्शकों की प्रत्येक कूद में दी गई ऊह और आह की प्रतिक्रिया काफी अच्छी लगती है।
अच्छे शो जम्पर के घोड़ों को उनकी सुसंहति से गठन और उनके पट्ठे की शक्ति से प्रतिष्ठित किया जाता है। अधिकांश मोन्गलर कूदने में कुशल होते हैं, हालांकि हनोवेरियन, आयरिश घोड़े और हंटर टॉप रैंक्स में विशिष्ट हैं। 1902 में उत्तरी अमेरिका के हंटर हीदरब्लूम ने 8 फीट 3 इंच की आश्चर्यजनक ऊंचाई को पार किया था।
हंटर (hunter) :-
कोई भी घोड़ा जो लोमड़ी के शिकार के लिए उपर्युक्त हो हंटर कहलाता है। जैसे, यह निर्भीक, बुद्धिमान और विनयशील होना चाहिए, जो हर तरह की बाधा से निपटने में सक्षम हो। यह आंधी में दृढ़ और बिना 5 घंटे तक चलते रहने वाला होना चाहिए। शिकार किए गए देश के प्रकार के अनुसार हंटर भिन्न होते हैं। एक वजनी और शक्तिशाली घोड़े थकावट को सहन करने में सक्षम होते हैं, लेकिन कम वजन के घोड़े जल्द ही थक जाते है और लड़खड़ाने लगते हैं। घास के मैदान में, अच्छी नस्ल या अन्य कम वजन के घोड़े भारी घोड़ों के बीच से गुजर जाएंगे। भिन्नता घुड़सवार के वजन और शक्ति के अनुसार भी होती है, क्योंकि शिकार करने का कोई मतलब नहीं है, अगर घोड़ा आपके वजन को उठा ही नहीं सक रहा या घोड़ा इतना शक्तिशाली हो, की आप उसे नियंत्रण ही ना कर सको।
एक हंटर घोड़े में दृढ़ता, धीरज, बुद्धि, कूदने की क्षमता, अच्छे शिष्टाचार, एकसा स्वभाव और आंतरिक बल जैसे आवश्यक गुण होने चाहिए। एक शो रिंग में, हंटर को आकार, अच्छे व्यवहार और शांतिप्रद क्रिया पर आंका जाता है। शो हंटर को वजन के अनुसार 5 श्रेणियों में विभाजित किया जाता है, 175 पोंड (हल्के), 196 (मध्यभार), 196 से अधिक (भारी) और छोटे (14.2-15.2 ऊंचाई)। हंटर में सबसे उत्कृष्ट घोड़ा आयरिश घोड़ा है जो, एक आयरिश ड्राफ्ट या क्लीवलैंड वे घोड़ी की मिक्सड नस्ल है।
रेसहॉर्स (race horse) :-
हालांकि अच्छी नस्ल के घोड़े को ही रेसहॉर्स बोला जाता, इसका ये मतलब नहीं की अच्छी नस्ल के घोड़े ही तेज दौड़ सकते हैं। घोंड़ों की गति की जाँच के लिए परीक्षण 5,000 से अधिक वर्षों से पहले भी हुआ करते थे। तब अच्छी नस्ल के घोड़े विकसित भी नहीं हुए थे और ऐसी संभावना है कि कई शताब्दियों या सहस्राब्दियों में दौड़ आयोजित की जाती थी। माना जाता है कि दौड़ के बहुत प्रारंभिक रूपों में घोड़ों को तब तक पानी नहीं दिया जाता था, जब तक कि उन्हें बहुत अधिक प्यास ना लगें और फिर उन्हें पानी के सामने ले जाकर खोला जाता है, यह देखने के लिए की कौन सबसे पहले पानी के पास पहुंचेगा।
आधुनिक-युग की दौड़ में वैसे तो सभी नस्ल के घोड़े उत्तम होते हैं, लेकिन अच्छी नस्ल के घोड़ों ने अपने पैर के अनूठे घुमाव के साथ रेसहॉर्स का शीर्षक जीत लिया है। अच्छी नस्ल के घोड़ों को विश्व के हर रेसहॉर्स में लाया जाता है। वहीं उनका प्रदर्शन हर देश में भिन्न होता है।
पोलो पोनी (polo pony) :-
पोलो पोनी आमतौर पर 15(5.6फीट) या थोड़े ओर अधिक की ऊंचाई के होते हैं, ये पोनी नहीं होते हैं। इन्हें तेज, निर्भीक, बुद्धिमान और अत्यंत निपुण होना चाहिए। इनमें से अधिकांश असली अच्छी नस्ल वाले वंश के होते हैं। उन्हें प्रशिक्षण देने के लिए समय और धैर्य होना चाहिए।
वहीं पोलो की उत्पत्ति अस्पष्ट है। पूर्वी एशिया में कई शताब्दियों से इसका उपयोग किया जा रहा है, और चीन और मंगोलिया जैसे देशों में हाल ही में इसकी लोकप्रियता कम हो गई है। असम में 1859 में स्थापित सिलचर क्लब दुनिया का सबसे पुराना पोलो क्लब है और इसके नियमों ने आधुनिक पोलो को आधार प्रदान किया। वहीं पोलो को भारत से इंग्लैंड तक ब्रिटिश रेजिमेंटों द्वारा पहुंचाया गया, और इसे जल्द ही हुरलिंगम क्लब (1870 के दशक) में आश्रय मिला। वहाँ से सफलतापूर्वक यह संयुक्त राज्य अमेरिका में फैले, और 1945 में अर्जेंटीना ने उत्तरी अमेरिका के वर्चस्व को समाप्त किया और आज दुनिया के अधिकांश पोलो पोनीज़ अर्जेंटीना में पाले जाते हैं, और यहाँ विश्व के किसी भी अन्य राष्ट्र से लगभग तीन गुना पोलो खिलाड़ी हैं।
भारत में घुड़सवारी का खेल प्राचीनतम समय से ही खेला जा रहा है। घुड़सवारी गतिविधियों और इस खेल के साक्ष्य मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई, नक्काशी और सिक्के में भी पाए गए हैं। रामायण काल और वैदिक काल (2500 ईसा पूर्व - 600 ईसा पूर्व) से ही भारत में रथों की दौड़ सबसे लोकप्रिय खेलों में से एक थी और आज भी इस खेल की लोकप्रियता बनी हुई है। वर्तमान में घुड़सवारी प्रतियोगिताओं में तीन गेम ड्रेसेज (Dressage), क्रॉस कंट्री (Cross Country) और शो जंपिंग (Show Jumping) शामिल होते हैं।
संदर्भ:
1.अंग्रेज़ी पुस्तक: Silver, Caroline. Guide to the horses of the world. 1976 Elsevier Publishing Projects S.A ., Lausanne
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