भारत की नदियों का देश के आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास में प्राचीनकाल से ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। यह नदियां प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से संपूर्ण भारत को पोषित कर रही हैं, जिन क्षेत्रों में नदियां बहकर नहीं जाती हैं, वहां नहरों के माध्यम से इनका पानी पहुंचाया जाता है। जिनमें उत्तर भारत की ऊपरी गंगा नहर का भी विशेष स्थान है, इसके निर्माण की योजना 1837-38 के दौरान आये भीषण अकाल के बाद बनायी गयी। अलकनंदा और भागीरथी नदी के देवप्रयाग में संगम से गंगा नदी का उद्भव होता है। जो बहते हुए हरिद्वार में प्रवेश करती है, हरिद्वार में हर की पौड़ी से ऊपरी गंगा नहर को निकाला गया है, जो मेरठ, बुलंदशहर से अलीगढ़ में स्थित नानू तक जाती है, जहां से यह कानपुर और इटावा शाखाओं में बंट जाती है, यही मूल गंगा नहर है। भोगनीपुर शाखा, कानपुर और इटावा शाखाओं को निचली गंगा नहर के नाम से जाना जाता है।
गंगा नहर गंगा नदी और यमुना नदी के दोआब क्षेत्र में सिंचाई प्रणाली के उद्देश्य से विकसित की गयी। 1837-38 के अकाल जिसमें करीब 800,000 लोग मारे गये थे, में राहत दिलाने हेतु लगभग एक करोड़ का खर्चा तथा ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के राजस्व घाटे को देखते हुऐ ब्रिटिश सरकार ने एक सुचारू सिंचाई प्रणाली विकसित करने का निर्णय लिया। जिसे पूरा करने में कर्नल प्रोबी कॉटली का विशेष योगदान रहा, इनके अटल विश्वास से ही लगभग 500 किलोमीटर लंबी इस नहर का निर्माण संभव हो पाया। परियोजना को पूरा करते समय इन्हें विभिन्न भौतिक (पहाड़ी अवरोध, धरातलीय), वित्तीय, धार्मिक मान्यताओं के अवरोधों का सामना करना पड़ा। नहर की खुदाई का काम अप्रैल 1842 में शुरू हुआ तथा इसमें प्रयोग होने वाली ईंटों के निर्माण हेतु कॉटली ने ईंटों के भट्टे भी बनवाये, इसमें भी हरिद्वार के हिंदू पुजारियों ने इनका विरोध किया, इनकी मान्यता थी कि गंगा नदी को कैद कराना अनुचित होगा। कॉटली ने इन्हें गंगा नदी के धारा को निर्बाध रूप से प्रवाहित करने के लिए, बांध में एक अंतराल छोड़ने का आश्वासन दिया साथ ही इन्होंने पुजारियों को खुश करने के लिए नदी किनारे स्थित स्नान घाटों की मरम्मत कराने का भी वादा किया। कॉटली ने नहर निर्माण कार्य का उद्घाटन भी भगवान गणेश की वंदना से किया।
8 अप्रैल 1854 को नहर औपचारिक रूप से खोला गया, यह वाहिका 560 किमी लंबी तथा इसकी शाखाएं 492 किमी लंबी थी एवं विभिन्न उपशाखाएं लगभग 4,800 किमी लंबी थी। मई 1855 में सिंचाई शुरू कर दी गयी, जिसमें 5,000 गांवों में 767,000 एकड़ (3,100 वर्ग किमी) से अधिक भूमि को सिंचित किया गया। 1877 में नहर प्रणाली में कुछ मौलिक परिवर्तन किये गये। मूल रूप से इस नहर को 6750 घनफुट क्षमता (192 m3/s) के शीर्ष बहाव के साथ डिजाइन किया गया था, जिसे बाद में 1938 में 8500 घनफुट (242 m3/s) तक बढ़ा दिया गया था और 1951-1952 में इसे फिर से 10,500 घनफुट (300 m3/s) बढ़ा दिया गया था। यह नहर मुख्यतः सिंचाई नहर है, किंतु इसके कुछ हिस्सों में जल यातायात भी किया जाता है, विशेषकर इसकी निर्माण सामग्री के परिवहन हेतु। इस नहर प्रणाली में नाव के लिए जल यातायात सुगम बनाने हेतु अलग से जलपाश युक्त नौवहन वाहिकाओं का निर्माण किया गया है। इस गंगा नहर प्रणाली की खास बात यह है कि नहर जिसे लगभग 154 साल पहले योजनाबद्ध किया गया था, आज भी लगभग उतनी ही विशाल जनसंख्या की जरुरतों को पूरा करने में सक्षम है।
यूजीसी(UGC) (ऊपरी गंगा नहर) नहर की लंबाई
आरएपी के संकेतकों से अतिरिक्त यूजीसी द्वारा सूचित की गई मुख्य विशेषताएं निम्नानुसार हैं:
1) जल तो पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है लेकिन धरातलीय जल वितरण में असमानता है।
2) खेती तो काफी अच्छी है, जिसमें उच्च गहन फसलें (2 से 3 फसलें/वर्ष); वित्तीय फसलें (गन्ना 70%; चावल 20%; अन्य 10%) प्रमुख हैं।
3) वितरण के शीर्ष के कोई संचालन नहीं किया गया था, बंद द्वारों को खोल दिया गया था।
4) वितरण और लघु स्थानों में जल नियंत्रण नहीं था।
5) कुछ लघुशाखा अपनी लंबाई के केवल 50% तक ही पानी देते थे।
6) केवल वितरण के प्रमुख का मापन किया गया (कई खराब स्थिति में थे)।
7) पानी की बचत के लिए सीसी-लाइन को वितरित किया गया था।
8) शहरीकरण टोल: 2 लघु को छोड़कर।
9) जल के विभिन्न उपयोग: दिल्ली और आगरा के भीतर और बड़े शहरों में पानी बाँटना।
10) एमयूएस (MUS): सीए (CA) में मवेशियों का महत्व।
11) कई यूजीसी पर बिजली का उत्पादन करना।
12) आगरा की सिंचाई नहरों पर जल प्रदान करना।
मेरठ से लगभग 44 किमी. की दूरी पर गंगा नदी के किनारे बसा पौराणिक नगर गढ़मुक्तेश्वर विशेष धार्मिक महत्व रखता है। ऊपर दिखाया गया चित्र गढ़मुक्तेश्वर का ही है। यहाँ कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाला गंगा स्नान पर्व उत्तर भारत का सबसे बड़ा मेला माना जाता है। यह नगर राष्ट्रीय राजमार्ग 09 पर स्थित है, जो राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से जुड़ा है। भागवत पुराण व महाभारत के अनुसार यह क्षेत्र कुरु की राजधानी हस्तिनापुर का भाग था। भारत पाकिस्तान विभाजन के दौरान, नवंबर 1946 में इस शहर में उग्र मुस्लिम विरोधी हिंसा देखी गयी। मुक्तेश्वर शिव का एक मन्दिर और प्राचीन शिवलिंग कारखण्डेश्वर, गंगा और ब्रह्मा की सफेद पत्थर की मूर्ति यहीं पर स्थित हैं साथ ही प्राचीन गंगा मंदिर की 100 सीढ़ियों में से 85 आज भी यहां मौजूद है। इस प्रकार के विभिन्न धार्मिक स्थल इस क्षेत्र की आध्यात्मिकता को और अधिक बढ़ा देते हैं।
संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/Ganges_Canal
2.http://www.fao.org/3/a-bc050e.pdf
3.https://en.wikipedia.org/wiki/Garhmukteshwar
4.https://goo.gl/3fusQ4
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