सेंट जॉन बैपटिस्ट चर्च (St. John the Baptist church) उत्तर प्रदेश राज्य के मेरठ शहर के छावनी क्षेत्र में स्थित उत्तर भारत के सबसे प्राचीन चर्चो में से एक है। इसमें अभी भी एक विशाल लेकिन अकार्यशील संगीत उपकरण पाइप ऑर्गन (pipe organ) है, जो मैन्युअल रूप से संचालित बेलो (घंटियों) को नियोजित करता है। लकड़ी के बेंच, पीतल का ईगल लेक्टर्न, गिलास की खिड़कियां लगभग दो शताब्दियों की तारीखें बयान करते है और इसमें तत्कालीन फर्नीचर एवं दीवारों पर लगे शिलालेख आज भी देखे जा सकते हैं। मेरठ के दर्शनीय स्थल में यह चर्च काफी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस चर्च में प्रवेश करने पर इंग्लैंड के बड़े चर्च में होने का अहसास होता है।
यह चर्च दिल्ली के सेंट जेम्स चर्च से भी पुराना है, जिसकी स्थापना कर्नल जेम्स स्किनर (1778-1841), जो की एक इरेगुलर कैवेलरी (irregular cavalry) जिसे स्किनर्स हॉर्स (Skinner's Horse) के नाम से भी जाना जाता है के सैन्य अधिकारी थे, ने करवायी थी, एवं इसका निर्माण 1836 में लगभग पूरा हुआ था। यह भारत के प्राचीनतम गिरजाभरों में से एक है। परंतु इस से भी पुराना चर्च मेरठ का सेंट जॉन बैपटिस्ट चर्च है। इस चर्च को सन 1819 में ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर से छप्पन हजार की लागत पर 'रेव हेनरी फिशर' ने स्थापित किया था तथा इसका निर्माण कार्य 1821 तक चला था। रेव हेनरी फिशर, ब्रिटिश सेना चैपलैन और इंग्लैंड की एक चर्च में पादरी थे , जो भारत के मेरठ में तैनात थे। इस वीडियो (https://www.youtube.com/watch?v=toQ-D_bai_A) में आप इसके इतिहास से जुड़े कई तथ्यों के बारे में जान सकते है।
यह चर्च 1800 के दशक की शुरुआत में एक एंग्लिकन पैरिश चर्च का एक अच्छा उदाहरण है। इसका आर्किटेक्चर (architecture) पैरिश चर्च के अनुरूप है और इसमें भी गोथिक रिवाइवल शैली देखी जा सकती है। इस विशाल चर्च में दस हज़ार लोगों के बैठने की क्षमता है। चर्च परिसर में सुंदर लॉन, हरियाली और शांत वातावरण है। चर्च के परिसर में प्राचीन सिमेट्री (cemetery) है, जो ऐतिहासिक है, क्योंकि 10 मई 1857 में भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में मारे गए ब्रिटिश सैन्य अफसरों व सिपाहियों को यहीं पर दफनाया गया था। सेंट जोंस सिमेट्री कई एकड़ में फैली है और यहां बहुत सी कब्रें भी हैं, जिनमें से कुछ कब्रें शताब्दी से अधिक पुरानी हैं। इनमें उत्कीर्ण हेडस्टोन, नक्काशीदार खंभे और कुछ बहुत ही सुरुचिपूर्ण पुरानी कब्रें भी शामिल हैं, जोकि उचित रखरखाव ना मिलने के कारण तथा मौसम की मार से ये कब्रें खंडहर में बदलती जा रही हैं, इन पर झाड़ियां, पौधों आदि उग आये हैं।
संदर्भ:
1.https://bit.ly/2Ad8cWr
2.https://bit.ly/2RlrVwY
3.https://www.youtube.com/watch?v=toQ-D_bai_A
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