विश्‍व प्रसिद्ध ईसाई धर्म प्रचारक स्‍टेनली पर गांधी जी का प्रभाव

मेरठ

 24-12-2018 10:00 AM
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

1963 में एक विश्‍व प्रसिद्ध ईसाई धर्म प्रचारक को गांधी शांति पुरस्कार से नवाजा गया। इन्‍होंने गांधी जी को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के लिए प्रयास किये लेकिन असफल रहे, किंतु अपने जीवन में इन्‍होंने गांधी जी से बहुत कुछ सीखा। ये गांधी जी से बहुत प्रभावित थे तथा उनकी मृत्‍यु के बाद इन्‍होंने उनके जीवन पर जीवनी भी लिखी, जिसने मार्टिन लूथर किंग को अमेरिका के नागरिक अधिकार आंदोलन में अहिंसा के लिए प्रेरित किया। हम यहां बात कर रहे हैं एली स्टेनली जोन्स (1884-1973) की जो 20वीं सदी के मेथोडिस्ट ईसाई प्रचारक तथा थेअलोजियन (theologian) थे। स्टेनली 1907 के दौरान भारत आये थे, इनके द्वारा विश्‍व शांति के लिए कड़ी मेहनत की गयी थी। गांधी जी और स्टेनली के मध्‍य घनिष्ठ मित्रता थी। स्‍टेनली को अपने प्रयासों के लिए नोबेल पुरस्‍कार के लिए भी नामित किया गया था।

गांधी जी और जोन्‍स की पहली मुलाकात 1919 में दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज में हुयी। जहां इन्‍होंने भारत में ईसाई धर्म को स्‍वभाविक बनाने के मुद्दे पर विचार विमर्श किया। जिस पर गांधी जी ने कहा यदि भारत में ईसाई धर्म को सार्थक करना है तो सभी को ईसाई प्रचारक को यीशु की तरह जीना होगा तथा ईसा मसीह के गिरि प्रवचन का पालन करना होगा, जिस पर जोन्‍स ने भी सहमति दिखाई। अपनी गांधी जी से पहली मुलाकात में जोन्‍स इनकी ईसाई विचारधारा के प्रति निष्ठा देखकर काफी प्रभावित हुए।

इनकी अगली मुलाकात पुणे में 1924 में हुयी। जब गांधी जी को ऑपरेशन के लिए अस्‍थायी रूप से जेल से रिहा किया गया था। इस मुलाकात में हमें ईसाई जीवन को कैसे जीना चाहिए? पर जोन्‍स ने गांधी जी को एक संदेश देने के लिए कहा जिसे वे अपने साथ पश्चिम ले जा सकें। इस पर गांधी जी ने जवाब दिया कि यह संदेश शब्‍दों में बयान नहीं किया जा सकता यह तो मात्र जिया जा सकता है। गांधी जी के इस जवाब से जोन्‍स काफी प्रभावित हुए, उन्‍होंने गांधी जी से अपने अहिंसा आंदोलन में यीशु को केन्‍द्र बनाने के लिए आग्रह किया, जिससे उन्‍हें अपने आन्‍दोलन के लिए पश्चिमी जगत की सराहना मिल जाएगी। साथ ही वे गांधी जी द्वारा मसीह के प्रति व्‍यक्तिगत निष्‍ठा को प्रकट कराना चाहते थे, वे बतिस्‍मा (ईसाई धर्म में इन्सानों के माथे पर पानी छिरक के उसे इस धर्म में हमेशा प्रवेश और गोद लेने का एक ईसाई अनुष्ठान है) के माध्‍यम से गांधी जी को ईसाई नहीं बनाना चाहते थे। इसका निर्णय उन्‍होंने गांधी जी पर छोड़ दिया था। जोन्‍स गांधी जी से थोड़ा मायूस हुए क्‍योंकि गांधी जी ने उनकी बात नहीं मानी।

जोन्‍स गांधी जी से ऐसे ही प्रभावित नहीं थे, इन्‍होंने गांधी जी के प्रत्‍येक शब्‍द और कार्यों की ईसाई-सुसमाचारवादी दृष्टिकोण से समीक्षा की थी। जोन्‍स कोलकाता की युवा महिलाओं के ईसाई संघ (YWCA) में गांधी जी के हिन्‍दुत्‍व के प्रति दृष्टिकोण को देखकर काफी उत्‍तेजित हुए। गांधी जी और अन्‍य श्रेष्‍ठ हिन्‍दुओं से मिलकर जोन्‍स ने देखा कि ईसाई मत यीशु के सिद्धान्‍त और इनके नैतिक मूल्यों का संदर्भित करता है। धर्म परिवर्तन के सवाल पर गांधी और जोन्स ने कई बिंदुओं पर एक ही विचार साझा किया। गांधी जी ने ईसाई धर्म प्रचारकों द्वारा परोपकारी कार्यों को धर्म परिवर्तन का माध्‍यम बनाने पर उनकी कड़ी अवहेलना की। इसके प्रति जोन्‍स का थोड़ा भिन्‍न दृष्टिकोण था वे यदि अस्‍पताल या विद्यालय के माध्‍यम से धर्म प्रचार को अनुचित नहीं मानते थे, इसके लिए ये स्‍वतंत्र हैं। जोन्‍स का कहना था कि गांधी जी ईसा मसीह और ईसाई मतों की गहराई को नहीं समझ पाएंगे किंतु फिर भी इन्‍होंने अपने जीवन में मसीह के क्रूस (ईसा मसीह का क्रॉस – यहाँ पर इसका मतलब उनके सिद्धान्तों से है) को गहनता से उतारा है।

सी.एफ़. एंड्रयूज, एस.के. जॉर्ज और स्टेनली जोन्स गांधी जी के करीबी ईसाई मित्र थे तथा इनका मानना था कि गांधी जी ने अपने जीवन में एक सच्चे ईसाई धर्म को प्रकट किया था। गांधी जी का ईसाई धर्म के प्रति विचारधारा थी कि इसे एक धर्म की अपेक्षा यीशु के नैतिक मूल्यों के आधार पर अपनाया जाये। इन्‍होंने स्‍वयं अपने व्‍यवहारिक जीवन में यीशु के सिद्धान्‍तों को अपनाया था। गांधी जी के संपर्क में आने के बाद इन प्रचारकों के विचार में भी परिवर्तन आया तथा इन्‍होंने स्‍वीकार किया कि ईसाईयों को धर्म की बजाय इसके व्‍यवहारिक पहलुओं पर विशेष ध्‍यान देना चाहिए। स्‍वयं जोन्‍स ने धर्म परिवर्तन को मात्र बतिस्‍मा ग्रहण करने की प्रक्रिया के रूप में नहीं देखा।

संदर्भ:
1.https://bit.ly/2T5IOcr
2.https://community.logos.com/forums/t/98565.aspx
3.https://en.wikipedia.org/wiki/E._Stanley_Jones

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